दु:स्वप्नक बाद -कवि रमण कुमार सिंह
कवि गाछ बनय चाहैत छथि,ओहेन गाछ जे केहनो अन्हर- बिहारिमे ठठल रहैत अछि।कवि गाछे जकाँ ककरो सँ घृणा नहि करैत छथि परञ्च ढेप फेकनिहारो के फल दैत छथि।ओ गाछ कियेक बनय चाहैत छथि ?नवका पातक स्वागतमे समर्पित करबाक लेल सभटा पुरना पात। कवि घृणाक वातावरण समाप्त करबाक लेल गबै छथि प्रेमगीत, कारण लोहा सँ लोहा कटबाक तकनीकि भ' गेल बड़ पुरान।से कवि थिका भाई रमण कुमार सिंह जे एहने कविता सभ लिखिलनि अछि, जकरा संग्रहित क' प्रकाशित कयलनि अछि किसुन संकल्पलोक,सुपौल। कविता संग्रह नाम थिक 'दु: स्वप्नक बाद'।
कवि रमण कुमार सिंह मैथिलीक महत्वपूर्ण कवि छथि एहि सँ पूर्ब हिनक" फेर सँ हरियर" नाम सँ कविता संग्रह आयल रहनि। आजुक समयमे जखन कविता मठ मठाधीशक निकट ओझरा क' रहि गेल अछि कवि कतेको सामाजिक,राजनीतिक मुद्दापर सत्ता सँ टकराइत भेटैत छथि।अपन कविते मे कियेक नीजी व्यक्तित्वमे सेहो पसरल भ्रष्ट आचरणक खोज खबरि लैत भेटैत छथि।हिनक व्यक्तित्व क्रान्तिधर्मी छनि से हिनक कविता स्वयं बजैत छनि।मुदा क्रान्ति गोली बन्दुक सँ नहि प्रेम सँ करय चाहैत छथि । ओ घृणाक उतारा सेहो प्रेम सँ देबय चाहैत छथि तेँ कहैत छथि,"विकटे समय मे उपजैत अछि प्रेम/आगिपर चलनिहारे बचा सकैत अछि प्रेम।
एकटा कविता छनि'हे हमर प्रिया'- " बाट चलैत केओ धांगि कें /मारि सकैत अछि हमरा/मुदा हे हमर प्रिया/ जा धरि अहाँक हाथ मे अछि हमर हाथ/ तखन डरबाक अछि कोन बात।
युवक कोनो समाजक कर्णधार छथि।'यौवन' एकटा महत्वपूरण कविता अछि एहि संग्रहमे जाहिमे कवि कहैत छथि जवानी मात्र एकटा बहिक्रमक कालखंड नहि ओ थिक एकटा प्रवृत्ति जे कुव्यवस्थाक प्रति बनबैत अछि विद्रोही जाहिमे एकटा चिनगी सँ बनाओल जा सकैछ एकटा नबका बाट।युवावस्था मे कोनो युवक के निन्न कम आ सपना बेसी देखबाक चाही।
स्त्री लोकनिक दशापर एखनो समाजमे पसरल हुनका लोकनिक प्रति अनादर भाव सँ कवि दुखी होइत छथि मुदा ईहो कहैत छथि अहां के अपने सँ लेब' पड़त अपन अधिकार।हँ,जखन साइकिल सँ गामक बचिया सभकेँ इसकूल जाइत देखैत छथि त' बेस प्रसन्न होइ छथि--
"ई भोरक सभसँ सुन्दर दृश्य अछि/जे साइकिल सँ इसकूल जा रहल अछि लड़की/ सड़कपर भ' केँ बेफिकर।
तहिना माय के समर्पित कवितामे ठीके कहैत छथि मायक जगह आन केओ नहि ल' सकैत अछि। समयक बदलाव समाज के कोना फोंक क' देने अछि सभ अपनामे मस्त मुदा सभ अपना जीवन सँ असंतुष्ट। एगो समय छलै जहिया लोक देखैत छल सझिया सपना। रोग,शोक खुशी मिलि बैस क' बँटैत छल। कवि के अपन नेनपनक दिन मोन पड़ैत छनि जाहि कंसार मे ओ भूजा भुजबैत छलाह से मोन पड़ैत छनि मुदा आजुक धिया पुता कोन तरहक स्मृति के संयोगि क' राखत। 'बलात्कारी हँसि रहल अछि' बेवस्थापर प्रश्न उठबैत एकटा धरगर कविता अछि।
कवि रमण कुमार सिंह मैथिलीक महत्वपूर्ण कवि छथि एहि सँ पूर्ब हिनक" फेर सँ हरियर" नाम सँ कविता संग्रह आयल रहनि। आजुक समयमे जखन कविता मठ मठाधीशक निकट ओझरा क' रहि गेल अछि कवि कतेको सामाजिक,राजनीतिक मुद्दापर सत्ता सँ टकराइत भेटैत छथि।अपन कविते मे कियेक नीजी व्यक्तित्वमे सेहो पसरल भ्रष्ट आचरणक खोज खबरि लैत भेटैत छथि।हिनक व्यक्तित्व क्रान्तिधर्मी छनि से हिनक कविता स्वयं बजैत छनि।मुदा क्रान्ति गोली बन्दुक सँ नहि प्रेम सँ करय चाहैत छथि । ओ घृणाक उतारा सेहो प्रेम सँ देबय चाहैत छथि तेँ कहैत छथि,"विकटे समय मे उपजैत अछि प्रेम/आगिपर चलनिहारे बचा सकैत अछि प्रेम।
एकटा कविता छनि'हे हमर प्रिया'- " बाट चलैत केओ धांगि कें /मारि सकैत अछि हमरा/मुदा हे हमर प्रिया/ जा धरि अहाँक हाथ मे अछि हमर हाथ/ तखन डरबाक अछि कोन बात।
युवक कोनो समाजक कर्णधार छथि।'यौवन' एकटा महत्वपूरण कविता अछि एहि संग्रहमे जाहिमे कवि कहैत छथि जवानी मात्र एकटा बहिक्रमक कालखंड नहि ओ थिक एकटा प्रवृत्ति जे कुव्यवस्थाक प्रति बनबैत अछि विद्रोही जाहिमे एकटा चिनगी सँ बनाओल जा सकैछ एकटा नबका बाट।युवावस्था मे कोनो युवक के निन्न कम आ सपना बेसी देखबाक चाही।
स्त्री लोकनिक दशापर एखनो समाजमे पसरल हुनका लोकनिक प्रति अनादर भाव सँ कवि दुखी होइत छथि मुदा ईहो कहैत छथि अहां के अपने सँ लेब' पड़त अपन अधिकार।हँ,जखन साइकिल सँ गामक बचिया सभकेँ इसकूल जाइत देखैत छथि त' बेस प्रसन्न होइ छथि--
"ई भोरक सभसँ सुन्दर दृश्य अछि/जे साइकिल सँ इसकूल जा रहल अछि लड़की/ सड़कपर भ' केँ बेफिकर।
तहिना माय के समर्पित कवितामे ठीके कहैत छथि मायक जगह आन केओ नहि ल' सकैत अछि। समयक बदलाव समाज के कोना फोंक क' देने अछि सभ अपनामे मस्त मुदा सभ अपना जीवन सँ असंतुष्ट। एगो समय छलै जहिया लोक देखैत छल सझिया सपना। रोग,शोक खुशी मिलि बैस क' बँटैत छल। कवि के अपन नेनपनक दिन मोन पड़ैत छनि जाहि कंसार मे ओ भूजा भुजबैत छलाह से मोन पड़ैत छनि मुदा आजुक धिया पुता कोन तरहक स्मृति के संयोगि क' राखत। 'बलात्कारी हँसि रहल अछि' बेवस्थापर प्रश्न उठबैत एकटा धरगर कविता अछि।
हँ एकटा कविता जे 'मिथिला मे क्रान्ति उर्फ जखने पूत परदेस गेल' ताहि कविताक माध्यम सँ मिथिलाक पलायन के कवि एकटा क्रान्ति मानलनि अछि ताहि सँ हम सहमति नहि रखैत छी। ई पलायन विशेषक'पेट पोसबाक लेल भेल अछि। मिथिलाक गाम उजड़ि गेल एकरा बसब' पड़तै।एकरा हम क्रान्ति कोना कहि सकैत छी!
समकालीन मैथिली कवितामे ई एकटा महत्वपूर्ण संग्रह आयल अछि ।कविक हम हार्दिक स्वागत करैत शुभकामना दैत छियनि।
समकालीन मैथिली कवितामे ई एकटा महत्वपूर्ण संग्रह आयल अछि ।कविक हम हार्दिक स्वागत करैत शुभकामना दैत छियनि।
