भाग २
साँझ पड़ैत देरी पुकारे झा आओर हुनक संगी सभ रतुका बुतातक आटा,अल्लू-पियाजु आओर किछु हरियर तीमन- तरकारी नेने डेरापर जुमि गेलाह।
अबिते मातर मनोहर आओर देबूक हालचाल लेखिन।
'की यौ मनोहर! केहन रहलै अजुका दिवस।दुनू गोटा आराम केलहुँ ने।
हँ,भैया रेलक झमारल रही से खूब निन्न भेल।दुनू गोटा खूब आराम केलहुँ।
मनोहर !तखन जाउ नीचाँमे मदर डेयरीक दोकान छै एक लीटर दूध नेने आउ। पहिने एक कप गरमागरम चाह भ' जाय। तखन गामक गपसप।हे लिअ ई टाका।
'ठीक छै भैया।'
मनोहर दूध ल'क' आबि गेलाह-' हे लिअ भैया दूध'
सबगोटा हाथ पैर धो लिअ।हम चाह बना रहल छी।-पुकारे झा बजलाह।
पुकारे झा देबू सँ पुछलखिन-'की यौ देबू !अहाँ किछु बजैत नहि छी।
सब अपने गाम घरक लोक सब छथि।दू तीन गोटे अपने पड़ोसिया गामक छथि। दू गोटे दोसरो जिलाक छथि।
देबू उतारा दैत कहलखिन-, नै भैया एहन कोनो बात नै छै।अहाँ छी तँ हमरा सभकें बहुत बल भेटल अछि।
पुकारे झा सभक हाथमे चाहक गिलास दैत कहलखिन- भाइ लोकनि! ई दुनू गोटा मनोहर आओर देबू हमर गौंवा छथि।उमेरमे दुनू गोटे छोट छथि तें भैयारी इलाकामे छोट भैयारिये भेलाह। दुनू पढ़ल-गुनल छथि।पढ़ले नहि छथि बहुत व्यवहारिक छथि,सामाजिक छथि।एहन युवा सबहक लेल हमरा मोन मे बड़ इज्जति अछि।
देबू आओर मनोहर दिश ईसारा करैत पुकारे झा बजलाह-
हे ई छथि कामेश्वर भगत ,हिनक घ'र बरदेपुर छनि।ई भेलाह नबोनाथ झा ,हिनक घर भेलनि हरिपुर मालटोल।ई छथि कमलेश सिंह हिनक घर भेलनि नरार।आओर ई छथि सुधीर पासवान घर छनि बेलमोहन।ई छथि गुरशरण कामति घर भेलनि सुपौल जिला आओर ई छथि गोरख राय घर छनि मानिक चौक सीतामढ़ी।
'फेर पुकारे झा बजलाह!एकदम मिझ्झर छी हमसब।गामक भोजक डालना बुझू।'
चाहे पीबैत -पीबैत पुकारे झा देबू आ मनोहरसँ गामक गपसप करय लगलाह।गप बड़ीकाल धरि चलैत रहलै।
------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
भाग ३
पुकारे झा देबु सँ पुछलनि-' देबु! गाम घरक हाल-चाल कहु!'
केहन समय-साल बीत रहलए मिथिलाक?
देबु उतारा दैत कहलनि- 'गाम घरक हाल -चाल नीक नहि अछि भैया! '
पछिला पांच बर्षसँ नीकसँ धान नहि उपजल अछि।दू बर्ष बाढ़िक छछकालमे सबटा जजाति दहा गेल।तीन बर्षसँ पानिए ने ठीकसँ भ' रहल अछि। अपना ओतुका मुख्य जे फसिल छल धान से प्राय: नहिये जकाँ उपजि रहल अछि।तखन दमकल- बोरिंगसँ जेना तेना जे किसान रोपनी क' लयै तँ किछु ने किछु उपजिये जाइ छै। मुदा रब्बीक फसिल धरि नीक उपजयै। मोटामोटी ई बुझू भैया जे किसानी के भरोसे अहाँ गाममे नहि टिक सकैत छी।
हे यौ देबु ! 'सगर संसारमे जलवायु परिवर्तन भ'रहल अछि।मिथिलामे सेहो जलवायु बहुत तेज गतिये बदलि रहल अछि।एहि बातकें जतेक जल्दीअकानि लेत मिथिलाक लोक ततेक जीवन सुगम रहतै।ओना अबैवला समय हमरा आर भयावह बुझाइत अछि। '
'देबू! अच्छा ई कहु जे गामक कीर्त मंडली चलयै ने!'
नै भैया! अपन गामक कीर्तन मंडली तँ कहिया ने बन्न भ' गेल।
पुकारे अफसोच! करैत देबु सँ पुछलनि-' से एना कियै भेल देबु?
'की कहु भैया ! गामक अवस्था आब ओ नहि रहलै।गाममे आब सामाजिकताक नामपर भोज छोड़ि क'किछु गतिविधि नहि होइत अछि।
पंचायतीराजक राजनीति आओर जातीय गोलबन्दी चरमपर अछि।स्थिति एहन अछि जे समाजिकताक नामपर दस गोटे कतहुँ एक जगह बैसत से आब मोसकिल अछि। गामक कीर्तन मंडली समाप्त अछि।सामूहिक जे ढोल-झालि छल से भगतजी ओतय पड़ल अछि।भगतजी सेहो आब कतहुँ नहि जाइत छथि।भोर -साँझ अपने दूरापर हरमुनिया ल'क' भजन गबैत रहैत छथि।
'एँ यौ देबु! तखन तँ आब फागुनमे फगुआ गायन सेहो बन्न भ' गेल हैत!
'पुकारे भैया! आब गाममे फगुआ गायन तँ दूर,गाममे आब फगुआ कियो नहि खेलाइत अछि। अहाँ सभक बैच जखन रहै ,केहन गुलजार रहै गाम। तहिया हमसब ओतेक छेटगर नहि भेल रही मुदा सबटा मोन अछिये।वसंत पंचमी दिनसँ मंदिरपर फगुआ शुरूह भ' जाइ।अहाँक बैचक लोकसब गाम छोड़लनि सबटा खतम।'
'ओह की कहु देबू ! बहुत व्यथित छी-पुकारे बजलाह'
दबू! हमर आत्मा तँ आइयो गाममे बसैत अछि।हम कहियो गाम नहि छोड़य चाहैत रही।मुदा उपाये की रहय? 'पापी पेट का सबाल है।'
दूबू पुकारे झा सँ कहैत छथि--
'भैया अहुँ तँ आब बड़ कम गाम अबैत छी।
हँ देबु; सत पुछै छी तँ आब गाम जेबाक मोने नहि करयै।जँ गामोमे दिल्लीए जकाँ भरिदिन कोठरीमे बन्न भ' क' रहय पड़य तँ गाम कियैक जाउ?गाम जाइत छी तँ गामक हालत कें देखैत माय सप्पत द' दयै जे तों गामक कोनो बातचीतमे नहि परिह'।गामक संस्था बड़ खराप छै।तोँ गाममे नहि रहैत छह,चारि दिन लेल एलह अछि तँ गामक झमेलमे कियै पड़बह?
से देबू भाइ!एहन हालतमे गाम जेबाक मोन नहि करयै।
एहिबेर जे छठिमे गाम जायब तँ दिलखुश आओर ओकर मायकें सेहो आनि लेबै।हमर पत्नी अपन बेटाक प्रति बड़ साकांक्ष छथि।
कहै छथि-'हमर सबहक जीवन जे भेल से भेल मुदा अपन बेटाक जीवन हम बर्बाद नहि होब' देब।हमहुँ दिल्ली जायब।ओतहि जेना तेना गुजर करब।अहाँ काज करिते छी।हमहुँ किछु काज करब।बेटाकें पढ़ायब।काबिल बनायब।'
'देबू!चिंता एके बातक अछि जे माय-बाबू आब बूढ़ भ' गेल छथि ओ दुनूगोटा कोना रहतथि।मुदा कयै कि सकैत छी।दस बर्षसँ पत्नीक बात टारि रहल छी।आब विद्रोहक स्थिति अछि।बात मानयै पड़त।मायो कहैत रहयै-'कनियाँ जे कहै छथुन सैह करह।समय बड़ खराप छै।हमर सबहक चिंता जुनि करह।जाबे हाथ-पयर चलैत अछि कोनो चिंता नहि।जखन समांग जबाब देत अहाँ सबकें भार उठबयै पड़त ।कहैत छथि दिल्ली आब पयर त'र छै।एक जाइ छै,एक अबै छै।मोन उबिआयत तँ रेल धरब आ हमहुँ सब पहुँच जायब दिल्ली।
देबू पुकारेक बात सुनि कहैत छथि-'पुकारे भैया! हम तँ अपन जीवनक तीस बर्ष गामेमे बितौलहुँ अछि।काकी सही कहेत छथि।जँ अपन काज राज करैत गाममे शांतिससँ जीवन बितबय चाहैत छी ,से आब गाममे शाइत संभव नहि अछि।गाममे अनेक गोल छै।सबहक अपन नेता छै।सबहक अपन गोलैसी छै।गाममे रहबाक अछि तँ कोनो ने कोनो गोलमे शामिल रहू।गोलैसीमे सक्रिय रहू।मासमे दू चारि दिन काजक हर्जाना क'क' ब्लौक-थाना,कोट-कचहरी जेबाक लेल अपन ढौआ-कौड़ीक संग तैयार रहू।तखन तँ ठीक अन्यथा अहाँ कोपभाजन बनबे करब।'
देबूक बात सुनि क'पुकारे बजलाह,' देबू एहन स्थितिमे गाम कियैक जाउ?
एटका बात कहै छी देबू! दक्षिणी दिल्लीक संगम विहार इलाकामे जे एकटा नबका जे जे कालोनी बनि रहल छै ओतय पचास गज जमीनक हमरो जोगार लागि गेल अछि।किछु टाका अग्रिम देने छियै।इच्छा अछि हमहुँ आब दिल्लीए बैसि जाइ।
.png)
No comments:
Post a Comment