Thursday, February 27, 2025

Seeta in the realm of Maithili literature : Dilip Kumar Jha

मैथिली साहित्यमे सीता



सीताक जन्मक बिषयमे रामायणमे वाल्मीकीजी लिखैत छथि,
"अथ मे कृषत:क्षेत्रे लाङ्गलादुत्थिता तत:।।
क्षेत्रं शोधयता लब्धा नाम्ना सीतेती विश्रुता।
भूतला दुत्थिता सा तु व्यवर्धयत् ममात्मजा।।
एक दिन यज्ञक लेल भूमिशोधन करैतकाल खेतमे राजा जनक ह'र  जोतैत छलाह ओहि समय ह'रक अगिला भाग जकरा फार वा फाल  सँ किछु ठेकैत अछि ओहि कालमे भूमिसँ एकटा सुन्दर कन्या प्रगट भेलीह (घिचल रेख जकरा सीता कहल जाइत छलैक) सीता सँ उत्पन्न हेबाक कारणें कन्याक नाम सीता राखल  गेल। धरतीसँ प्रकट भेल कन्या बढ़ि क' आब सियान भ' गेलीह‌।
संसार भरिमे अनेकानेक भाषामे रामायणमे सीताक विराट चरित्रक चित्रण भेल अछि।मैथिली भाषा साहित्यमे सेहो सीताक बहुत विस्तृत वर्णन कयल गेल अछि।जाहिमे सभसँ पहिने हम चन्दा झा विरचित 'मिथिला भाषा रामायण'क चर्चा करब उचित बुझैत छी।महाकवि चन्दा झा जानकीक जन्मक बिषयमे लिखैत छथि---
'कन्या रमा-समा मिथिलेश। तप-बल पाओल तिरहुति देश।।
धरणी तनया अति सुकुमारी।छविमय रति विजय अवतारि।।
त्रिभुवन देखल सुनल नहि कान।वनिताजन विरचल विधि आन।।
आगत नृपवर जनक समाज।जनकक कहल सुनल हो काज
शिवक धनुष भञ्जन कर जैह।वैदेही व'र होयताह सैह।।
मिथिला भाषा रामायण सेहो आने रामायण जकाँ  सम्पूर्ण रूपसँ रामकथा पर आधारित अछि तेँ एतहुँ सीता सभठाम उपस्थित छथि।प्राय:रामकथा मे सीता  धनुष  यज्ञ के समय प्रकट होइत छथि मिथिला भाषा रामायण मे सेहो तहिना छथि।सुन्दरकांड मे सीताक वर्णन बहुत फरीछ सँ आयल अछि। जानकीकें अपना जन्मभूमि सँ बहुत लगाव छनि।अपन  परिचयमे अपन माता-पिता,पति, देओर के नाम तँ लैते छथि संगहि अपन नैहरक नाम लेब नहि बिसरैत छथि।
जनक जनक जननी अवनि,रघुनन्दन प्राणेश।
देवर लक्ष्मण हमर छथि,नैहर मिथिला देश।।
हुनका गर्व छलनि जे हमर जन्मभूमि मिथिला अछि एहन गर्व हमरो सभकें हेबाक चाही।से कियैक नहि अछि ?ताहिपर हम सोचैत रहैत छी।कवीश्वर चन्दा झा अपन रामायणक सुन्दरकाण्डमे सीताक उपस्थापन बहुत महत्वपूर्ण ढंग सँ कयलनि अछि।।एना कहल जाय जे एहि कांडक मुख्यपात्र सीते छथि।हेबाको चाही से बिभिन्न रामायणमे सैह अछि‌।सुन्दरकाण्डक रचनाक मूलमे अछि सीताक खोज करब।जखन हनुमानजी सीताकें तकै लेल लंका विदा होइत छथि तँ सीताक दर्शन लेल हनुमानजी व्याकुल भ' उठैत छथि--
'वैदेही हम देखब आज।दोसर गहन आन की काज
(सुन्दरकाण्ड पृष्ठ-187)
सीता अशोक वाटिका मे बहुत डेरायल सहमलि बैसल  रहैत छथि।
तकर वर्णन कवीश्वर एकटा गीतक माध्यम सँ कयलनि अछि।केहन मार्मिक वर्णन छै से देखल जाय
'हा रघुनाथ अनाथ जकाँ दशकंठ पुरी हम आयल छी।
सिंहक त्रास महावनमे हरिणीक समान डेरायल छी।।
चन्द्र चकोरि अहैंक सदा हम शोक-समुद्र  समाइलि छी।
देवर दोष कहू हम की अपन अपराध सँ काइलि छी।
(सुन्दरकांड,पृष्ठ-198)
रमेश्वर चरित मिथिला रामायणमे महाकवि लालदास सीताकें लक्ष्मीक अवतार रूमे प्रतिष्ठित कयलनि अछि।एकटा अद्भुत् बात एहि रामायणक ई जे एहि रामायणमे सीताक महत्ताकें हुनक चरित्रक विराट फलककें पं.लालदास बहुत प्रमुखता सँ वर्णन कयलनि अछि।रामायणक नामो तँ मिथिला रामायण अछि तखन सीताक प्रधानता कोना नहि रहतनि।मङ़्लाचरण मे लालदास सीताकें लक्ष्मी आओर कालीक रूपमे  वर्णन करैत छथि।
'प्रणमों लक्ष्मीक दश विधि रूप।पुरथु मोर अभिलाष अनूप।।
सीता प्रथमा काली नाम।कृत सहसासन-पुर संग्राम।।
दोहा--'मूल प्रकृति लक्ष्मी जनिक,सीता रूप प्रधान।
तनिक नाम जपि पाब नर, दुहु लोकक कल्याण।।
महाकवि सीता नाम जपक अमित प्रभावक बखान करैत कहैत छथि--
'सीता नामक अमित प्रभाव।चतुरवर्ग फल जातक पाव।।
सीता जन्मक बिषयमे महाकवि वाल्मीकिजीसँ किछु फराक कथा कहैत छथि।हुनक कहब छनि जे जखन रावन  तीनू लोकपर विजय प्राप्त क' लेलक तखन ओ सुर,नर,मुनि सभकें  अपार कष्ट देबय लागल।एकबेर ओ दण्डकारण्यमे मुनि सभसँ कर मंगलक ,मुनि सभ लग की रहनि जे दितथिन से मुनि सभ अपना शरीरक शोणित पाचि क' द' देलथिन।ओ सभटा शोणितकें घटमे जमा क' लेलक।ओकर एहि कुकृत्य  सँ  मुनि सभ बहुत क्रुद्ध भ' गेलथि आओर कहलनि जे  रावण ई शोणित घट तोहर विनाशक कारण बनतौ। मिथिलाक महान  विद्वत् परंपरा सँ रावण बहुत क्रुद्ध छल से ओ सोचलक कियै ने एहि घट कें मिथिलेमे गड़वाय दी।बुझथु मिथिलाक लोक बड़ ज्ञानी बनैत छथि से आब हिनका सभक विनाश हेतनि। एहि विचार सँ ओ घट दूतक माध्यमसँ मिथिलामे गड़बाय देलनि--
'बड़ पंडित कहबथि मिथिलेश बुझता जखन विनाशत देश।।
ई विचार द्रूत दूत पठाय। मिथिलामे घट देल गड़बाय।।
एहि विधि किछु दिन बीतल जखन।अनावृष्टि मिथिलामे तखन।।
ज्योतिष पंडित सम्मति देल।जनक स्वयं हर कर गहि लेल।।जोतय लगला जेहि खन भूमि।बहरायल घट तेहि खन घूमि।।
घटसौं ज्योति विनर्गत भेल।तेजमयी कन्या लखि लेल
विस्मय मानव जनक नरेश। गगन गिरा तगनहि भेल बेश
ई कन्या लक्ष्मी अवतार सीता नाम करब परचार।।
भेल वृष्टि सूख लक्ष्मीक दृष्टि।बाँचल मिथिला भूमिक सृष्टि।।
सुख ऋद्धि सभ सिद्धि।होमय लागल मिथिलामे वृद्धि।।
सीता लक्ष्मीक अवतार छलथि से महाकवि लालदास लिखैत कहैत छथि।सीता शक्ति स्वरूपा छथि तें ने जाहि धनुषकें केहन-केहन योद्धा  टकसा नहि सकल तकरा सीता वाम कर सँ  उठा क'  ओतय ठांवबाट कय लेलनि।
अनायासहि निपितहि धनु धाय।बामहि करसौं लेल उठाय।।
बाम हाथ धनु अवनत माथ।नोचथि तृण कुश दहिना हाथ।।
अयला नृप कयनहि अस्नान।देखि चकित कृत मन अनुमान।।
शिवधनु उठ नहि ककरो बूत।से सीता धयलनि अजगूत।।
जानकी जन्म प्रसंग कविवर सीताराम झाक रचित महाकाव्य छनि 'अम्बचरित'।अम्ब चरित मे सेहो सीताक जन्मक रोचक कथा अछि जे लालदास कृत रमेश्वर चरित रामायणसँ  थोड़ेक फराक अछि।अम्ब चरितमे कविवर लिखैत छथि सीताक जन्म रावनक पत्नी  मंदोदरीक गर्भ सँ  भेल छलनि।अम्ब चरितमे कहल गेल अछि गृत्समद नामक मुनि अपना पत्नीक आग्रह पर  एकटा कन्याक उत्पत्ति हेतु एकटा नव कलश कें अभिशिक्त क' ओहिमे गाइक दूध ढारलनि आओर पत्नीकें कहलथिन जे आजुक दशम दिन जे  स्त्री एहि दूध कें पीबि लेती तिनका गर्भसँ स्वयं  लक्ष्मी अवतार लेतीह।ओहि कालमे महाविनाशक रावण ओतय पहुंचि गेल।ओ मुनिजन सँ करक रूपमे हुनका लोकनिक रक्त पाचिक' ओहि दूधवला कलशमे राखि घट सहित लंका उड़ि गेल।ओहि घटमे राखल द्रवकें मनदोदरी पीबि लेलनि आओर ओ गर्भवती भ' गेलीह।रावण देशाटन पर गेल छलाह।से ओ लोकापवाद सँ बचबाक लेल मिथिलामे आबि शिशुकें जन्म देलनि आओर अमृत छीटि ओहि शिशु कें मंजुषामे राखि धरती त'रमे गाड़ि देलनि ।राज जनक जखन यज्ञक लेल ह'र जोति रहल छलाह तँ अनायासे सिराउर पर ह'रसँ  मंजुषा  ठेकलनि आओर ओहिमे सँ एकटा दिव्य कन्या बहरयलि।
'पढ़ि स्वस्तिवचन कहि श्रीगणेश
लगला जोतय यागक प्रदेश
लगिचौलनि चास बचाय  ठेस
ता भेल शुभद नवमी -प्रवेश
गम्भीर सिराउर लागि फार
उखरल पेटी शोभा-अगार 
ताहिमे राखल कन्या अनूप
नवजात चकितचित देखि रूप
ई दृश्य जखने उपस्थित भेल सभ आश्चर्यचकित भ' गेल। कविवर सीताराम झा एहि दृश्यक वर्णन एहि तरहें कयल अछि।
'छल निर्निमेष तत जनक दृष्टि
ता भेल गगन सौं सुमन वृष्टि
बिनु देहक वानी भेल व्यक्त
हेभूप! अहाँ छी परम भक्त
रहितहु नित निज कर्तव्य-शक्त
छी भेल करृमफल सँ विरक्त
छी बनल अछैतहुँ तन विदेह
तैं मानि  पितावत् सहित नेह
लक्ष्मी अवतरली स्वयं  जाय
होइछ सुकृतीकेँ सब सहाय
नहि विघ्न बुझू मंगल मनाउ
सकुशल उठाय लय भवन जाउ
छी धन्य अहाँ रिजर्षि- रत्न
ऐली कमला घर बिना यत्न
कविवर सीताराम झा  जानकी जन्मक बहुत रोचक कथा कहलनि अछि।सीताक अवतरणक कथा मे कविवर जी सीताक बाल्यकाल,किशोरी रूप आओर हुनक विवाह द्विरागमनक  बहुत सुन्दर वर्णन कयने छथि।ओ कहैत छथि सीता साक्षात् श्री स्वरूप छलथि।ओ विशेष उद्येश्यसँ मनुक्खक रूपमे अवतरित भेल छलीह।अम्बचरित जानकी जन्म कथाक महत्वपूर्ण महाकाव्य थिक।
'सीतायन' मैथिली साहित्यक अनमोल निधि अछि।सात खंड आओर उनचास सर्ग मे विभक्त एहि विशाल महाकाव्यक रचियता छथि वैद्यनाथ मल्लिक'विधु'।सीतायन महाकाव्यमे सीताक जन्म सँ ल'क' हुनक पाताल प्रवेश धरिक कथाक सांगोपांग वर्णन कयल गेल अछि। अछि ।पहिल सर्ग मिथिला दर्शनमे  जे मिथिला प्रदेशक वर्णन अछि ,से  जनमानसक मोनमे मिथिला प्रदेशक चित्र उपस्थित करैत अछि।मिथिलाक रीति रेवाज,कला संस्कृतिक , अध्यात्मिक उन्नति, कर्म प्रधान मिथिलाक वर्णन सीतायन महाकाव्यक एकगोट महत्वपूर्ण विशेषता अछि।सीता नारी शक्तिक प्रतीक छथि।सीताक बहन्ने महाकाव्यमे नारी शक्तिकें बहुत महत्वपूर्ण स्थान देल गेल अछि।सीतायण महाकाव्यमे पौराणिक कथाकें नवीनत शील्प ओ सौन्दर्यक संग जनमानसक समक्ष अनलनि अछि मल्लिक जी।समस्त संसारक साहित्यक इतिहासमे सीतासन शीलवान,गुणगरि नारी चरित्रक वर्णन  स्त्री जातिक लेल उत्कर्ष, प्रतिष्ठा ओ परम सम्मानक ओ आदरक बात अछि।द्रष्टव्य सीतायनक ई पांती--
'वाचक सीतायन ई शुचि सीताक चरित्रक
महामानवी एक तनिक कृतिकेर शुभ चित्रक
मर्यादा केर मूर्ति प्रिया मृणमयी सुखधामक
प्राणवल्लभा मर्यादा पुरोषत्तम रामक
शुभ चरित्र केर चित्र ई रामायण लिखि देल अछि
किछु करता राम से मुनि पहिनहि कहि देल।'
महकवि लालदास जकाँ मल्लिकजी सेहो सीताकें आदि शक्ति अवतार मानलनि अछि।सीताकें काली,पार्वती, लक्ष्मी,सरस्वती आदिक रूप मानलनि अछि।ईहो सीताकें जन्मना अयोनिजा कहलनि अछि जन्म कथाक वर्णन एना अछि--
'उद्भव शीतल कय जग,सीतोत्पत्ति शुभ प्रेम सं।
तनिक नाम सीता जपत,रहत सदा से क्षेम सँ।
सुखकर सुन्दर नाम सुनल षब कयल समर्थन।
जय सीता जय जनक करथि जयकार सकल जन।
सीताक जन्म सँ  ल' धनुषयज्ञ,विवाह, दूरागमक वर्ण भेबे कयल अछि राम द्वारा सीताक परित्याग करबा सँ कवि दुखी छथि।ई हिनक बिषादक भाव समस्त मिथिलाक भाव अछि।जे आइ धरि समस्त मिथिलावासीकें कचोटैत रहैत छनि।आइयो सीताक परित्याग कथा सुनि समस्त मैथिल संतानक देह सिहरि जाइत छनि।मन हाकरोश क' उठैत अछि।आक्रोश सँ भरि जाइतज अछि। सीतायन महाकाव्य मे सेहो एहि कृत्यक प्रति आक्रोन पकट कयल गेल अछि--
' सीता त्याग अति निन्दा छल
सीताक सुकीर्तिक वर्णन छल
मुनि बालक मुख सँ सुनि-सुनि सब आश्चर्य चकित आनन्दित छल
सुनि सीता सुयश रामदृगसँ झहरैत नोर दुखकर देखल
अबधक नारायणकें लक्ष्मी बिनु शोकाकुल मुनिवर देखल।
सीतायन मैथिली साहित्यक एकटा अनुपम ग्रन्थ अछि।एहि ग्रन्थमे सीताक उदात्त चरित्रक सांगोपांग वर्णन भेल अछि।कल्पनोमे जँ एहन सीता,जनकलली भेल छलीह तँ हमर ई दाबी अछि संसारक कोनो भाषाक साहित्यमे एतेक महान  ओ एहन आदर्श स्त्री पात्रक सृजन कियो कवि नहि क'सकल छथि।वास्तवमे रामायणमे सीताक भूमिका राम सँ बराबरीक अछि।कोनो चरित्र ककरो सँ झूस नहि।तथापि जखन एकटा साहित्यकारक रूपमे वाल्मीकि जीक ग्रन्थक आलोचकीय दृष्टि सँ देखैत छी तँ सीताक उदात्त चरित्र विराट छनि।महान छनि।
'मिथिलाक सिया धिया जगत जननी भेलीह धरणी बनल सुरधाम यौ।'
क्रमश:
दिलीप कुमार झा
dilipKumarjha4169@gmail.com

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