Sunday, October 31, 2021

Ten Maithili Poems of Dilip Kumar Jha

पढ़ल जाय एतय दिलीप कुमार झाक दसगोट टटका कविता। 



चिड़ै आ वानर

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हम खंजनि

हम बुलबुल

हम चहकब

हम फूदकब 

हम नाचब

हमरे सँ खिल- खिल 

हमहीं बतासा 

आमक गाड़ा

मकइक लाबा

खुओने छथि बाबी

भूल्ली महींसक दूध

पिओने छथि बाबा

भरि- भरि डाबा

करेज हमर पुष्ट

बाँहि हमर कस्सल

गात मजगूत

रोकबेँ जे रस्ता रे बनरा

हाथ गोर तोड़ि क',

बना देबौ भूत ।




मुरेठनी

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एखनो एहिना मोन अछि

छिटबला ललका नुआ पहिरने

माथापर ढकिया उठेने

मुरेठनी देने चलि जा रहल छल टँसगर टाहि

लेबै कोबी भाँटा मेरचाई

अपने खेतक उपजाओल तरकारी बेचबा लए

कतेक लय

कतेक आत्मीयता

मुदा एतेक जल्दी मुरेठनीक ढकिया छिना जेतै

जरीना ,फातिमा  बेकाम भ' जेतै  

से त' सोचनहुँ नै रही

वास्तवमे हमर ई दृष्टिदोष छल

जे दिन दुपहरिया

ठहाठहि इजोरियामे

समयकेँ धुँआइत नहि देख सकलहुँ।

बड़ उत्साहसँ कहलनि पुष्पा

अहाँकेँ तरकारी अनबाक कोनो तरदूत नहि

द' जायत सभटा नियंत्रित मूल्यपर

कम्प्युटर तुलापर तौल क'

रेड बास्केटक व्यापारी

पूरा मोहल्ला ओकरेसँ किनतै

मुरेठनी सँ आब कियो नै लेतै  कियो तरकारी

बड़ बेस!  जे सभक विचार

मुदा एकटा बात राखब मोन

ओ सिर्फ मुरेठनीक ढकिया नहि छिनलक अछि

ओ छिनलक अछि

अहाँक डाली - पनपथिया

आगाँ छिन लेत अहाँक 

छिट्टा -खुरपी

चँगेरा- चंगेरी

धुथरी- मउनीक संग

अहाँक भाषा संवेदना 

अहाँक स्मृतिक ओ सभ वस्तु

जकरा अहाँ अपन कहै छियै

अपन कहबा लए शाइत अपन शब्द नहि बाँचत।


उपटि गेल बीट बांस ,कनसुपती भेटत  कौने बजार

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'रहि - रहिक'  आबि रहलए

कोनो  स्त्रीक अन्तर्मनक साधल स्वर

लोक आस्थाक प्रति सम्पूर्ण समर्पणक संगीत

महमहा उठल अछि वातावरण

आठहि काठ के कोठरिया हे दीनानाथ!

रुपहि जड़ल केबाड़

उगियौ जल्दी भेल अरघक बेर

उपटि गेलै एकेटा छलै जे बांसक बीट हे दीनानाथ !

कनसुपति भेटत कौने हाट- बजार

बुढ़िया बाबीक कबुलाक कोना करब निर्वाह

 धन छथि सुन्दर कुम्हार 

जिनका आबामे  एखनो पाकनि एहन गढ़ल कोसिया-कुरबार

एहि शान्त जलमे कतेक रमणगर देखा रहलए बिम्ब 

ठाढ़ भेल ई छड़गर कुसियार

 उठैत - बसैत  मैंया एलि घाटपर

झुनकुट भेलौं काया भेल क्षीण

गाब' लगली सात बेर उठैत बैसैत एलहुं हे दीनानाथ!

उठबै नै छ' कियो हमर भार 

सुनै छथि सकल परिवार

मैंयाक आस्था उमरि आयल फेर

जैह जुड़ल सैह अनलौं हे दीनानाथ !

धियापुता कें ने हुए कुशक कलेप

 छोड़ि देलकै सभ  जोतब कोड़ब खेत पथाड़ हे दीनानाथ!

कोना करब ढकिया ,सूपक उपयोग

नै जे देब ईहो अरघ 

बन्न भ' जायत ईहो उद्योग

कत' सँ आनब अल्हुआ ,सुथनी,आदी आ हरदिक हरियर अरघ हे दीनानाथ!

उपटि गेल नेबो लताम

पड़ती पड़ल अछि सभटा बाड़ी -झाड़ी

 कोना क' करब ओरियान

अपने सं की अछि झांपल हे दीनानाथ!

थिकहुं जे सनमुख   नाथक नाथ

उगु जल्दी भेल अरघक बेर।

 


माय

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बरकैत  देखने छी माय कें गुड़ जंका

तुमाइत देखने छी तूर जंका

शेष  होइते कलौ

ओरिओन मे लागि जाइत छलि 

रातुक भानसक

किरिन डूब'  सन पहिने

पजरि जाइत  छल चुल्हि

दिन भरि टकुरी जकां नचैत  छलि

तैयो नित्तह पराती गबैत छलि

सभ बेर बेगरता सम्हारैत 

नहि कहिओ परिवार के होब देलनि बेथुत

तैयो पिता सभ तामस माए पर उतारैत छलाह

सगरो सांसारक बीख माए पर झारैत छलाह

मुदा देखले दिनमे समय करोट  ल' लेलकैया

जन्म प्रमाणपत्रमे आगां मायेक नाम भेलेयै

आबि माय! माय छथि

आ पिता! पिता।


विचार जे नहि मरत

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नहि मानि रहलाह अछि अहाँ केँ ओहो लोक 

जे  अहाँक तैलचित्र लगा क' नित्तह चढ़बैत  रहलाहअछि 

भरि -भरि आँजुर फूल

कचनार,गुलाब,सिंगरहार ओ अरहूल

स'ख सँ गेल रही  देखबा लेल अहाँक गाम

कहाँ बाँचल अछि कतहुँ चरखाक नामोनिशान

धिया -पुता सभ त' बुझितो ने अछि

ककरा कहैत छैक अमर चरखा, की बिहार चरखा?

विचारेक फरिछौटमे भेल रहय  एकटा महात्माक हत्या

जिनका सभकेँ  अपने स'ख सँ उत्तराधिकारी बनेलियैन

 सिखेलियनि,पढ़ेलियनि

विचारक आधारे भष्मीभूत क'देलखिन

 ग्रामस्वराजक अवधारणाकें

उनटि देलखिन

खादीसन गमैया उद्योगकेँ रसातलमे पहुँचा देलखिन

 हमरा कान्हपर  जे ई गमछा देखि रहलहुँ अछि

से गाँधीधाम वा गाँधीनगरक उत्पाद नहि थिक

ई गमछा हम अपन गाम  उच्छाल

भाया मधुबनी 

 मिथिला सँ लायल छी 

मिथिलोमे सेहो चाटि पोछि गेलखिन 

आजादीक सरकार

उत्तम खादीक उद्योग आओर व्यापार

खादीए जकाँ उपटैत रहल अछि अहाँक विचार

बदलि गेलनि अछि माननीय लोकनिक ब्यवहार

से भाषा,भूषा सँ भोजन धरि

आइ जँ ग्राम स्वराजपर काज भेल रहैत

 देश विचारक स्तरपर एतेक कमजोर नहि होइत

भवानक स्तरपर देश दिन -दिन

मजगूत हेबाक बदला

भेल जा रहल अछि तन्नुक

कोनो विचार जखन मरैत अछि

बहुतरास वस्तु  बिरहैत अछि

मुदा किछु विचार एहन होइछ जे

मेटेलोपर नहि मेटाइछ

ओ रहैछ शाश्वत

जकर गहींर जड़िमे रहैछ तापस कर्म

जे कोनो तंत्रक बलें नहि

आपना बलें रहैछ  टिकल

जकर अस्तित्व रहैछ सदति अटल

जेना

नष्ट करबाक असंख्य प्रयासक बादो

 टिकल अछि भारत नामक एकटा देश

तंत्र जे रहओ

 सत्ता जेना चलओ

जतबा दबाओल जाय सत्यकेँ

जतेक अधिवक्ता ठाढ़ कयल जाथि

हिंसाक पक्षमे

मुदा सत्य आओर अहिंसा

रहत ठामक ठामहि।



ओ कारी कपड़ावाली छौंड़ी

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सब किछु क्रमशः समाप्त  होइत गेलै

पहिने उद्योग धंधा चौपट भेलै

फेर बनिज- व्यापार

आब खेतीबाड़ी जे एतुका जनजीवनक मूलाधार छै

से समाप्त भ' रहल छै

लाखक लाख नौजवान बहराइत अछि प्रतिबर्ष कालेजसँ

कोटि - कोटि नौजवान ठाढ़ अछि गामक सिमानपर

ताकि रहलए कोनो काज -रोजगार

कतेको नेता एलै बोल भरोस द' क' निकलैत गेलै

आक्रोशमे  कयबेर बदलबो कयलक सत्ता बिहारकें

मुदा सभ एकेरंग

आशा उमेदपर सभ पानि  ढारैत रहलै

निराशा ओ हतासाक वातावरणमे

आइ फेरसँ ठाढ़  अछि

एकटा आर  चुनाव

किंकर्तव्यविमूढ़ अछि लोक

केमहर जाय ?

ककरामे छाप लगाबय

एहनसन निरुत्साही वातावरणमे

बिहारी युवा एखनो नै चिन्ह सकल 

व्यवस्थापर कुंडली मारने ओहि बहिरा करैतकें

चारूभर सह -सह  करैत साँपकें

अबैत छै अजेगरसन किछु नेता

फेरसँ  हँसोथति छैक ओकर पीठ

बात जातिक अस्तित्वक छैक तें 

ई सब,ओ सब सोचबाक बेर नहि

लैह ई किछु रेजकारी राखि लएह

बूथ प्रबन्धनमे काज औतह

एहनसन घुनलग्गू वातावरणमे

मनहूस समयमे

अनचोके जनपथपर ठाढ़ होइये एकटा छौंड़ी

ओ बाजब शुरु करैत अछि एहि घुनलग्गू बेवस्थापर

चीरबाक चेष्टा करैत सौंसे पसरल मरघटक शान्तिकें

साफ करबाक चेष्टा करैत अछि

सभक आँखिपर छिटल

जाति ओ धर्मक मरछाउरकें

एकटा भरोसक संग कहैत अछि

जँ अहाँ सब  एकबेर विश्वास करी तँ

हम बदलि देब एहि निराश ओ हतास भेल वातावरणकें

कायम करब सरिपहुँ एकटा नव सोचक

नव सरकार

जाहिमे हम सभक लेल सृजित करब रोजगार

सभकें भेटतै अवसर

 सभ करत निर्भिकरुपसँ कारोबार

बड़का - बड़का घाघ नेता सभक लेल ओ छौंड़ी

 भ' सकैये ओ एकटा प्रहसन हुए

मुदा एहि अन्हार गुज्ज वातावरणमे

जतय दीप जरेबाक सभटा ब्योंत

असफल भ' गेल अछि

सभटा अस्त्र -शस्त्र अजमायल जा चुकल अछि

तेहनसन समयमे ओ एकटा टिमटिमाइत इजोतक 

रुपमे प्रकट भेल अछि

किछु अँखिगर युवतम पीढ़ीक लोक 

गौरसँ अकानि रहलखिन अछि ओहि नायिकाकें

उत्साहसँ सराबोर अछि ओ  पढ़ल - लिखल नौजवान छौंड़ी

कारी कपड़ावाली छौंड़ी।



गामक कोरेनटाइन सेन्टर सँ

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बौआ! बेर- बेर चिट्ठीमे लिखैत छलहुँ  

चलि आउ  गाम

अहाँ सब बेर एकेटा बात कहैत छलहुँ

माय! बड़ मोन करैत अछि तोरा सँ भेट करबाक

मुदा की करु फुरसतिये नै दैत अछि कंपनी 

तोहर पुतोहु कें  तँ गामक नाम सुनिते उठैत छनि झरकबाहि

हम बेवस भ' गेल छी

माय! शहर छियै लाचारी

एतय मनुक्ख नहि, रहैत छै व्यापारी

से जे से 

आब शहरकें  नहि रहलै  हमर जरुरति

जबाव द' देलकै शहर

गौंआ सब चलि जाए अपन गाम

एहि उजाहिमे हम आबि गेलहुं हमहुँ

घरपर एखन ठहरबाक नै छै अनुमति 

हम ओहि इसकूलमे ठहरल छी

जतय हम सिखने रही ककहारा

मास्टर साहेब ईहो पढ़ाबथि 

'जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी'

 तकर शहरी दुधिया इजोतमे  कहाँ किछु  आभास रहय

माय तों आबि जो गामक कोरेटाइनसेन्टरमे

एक अझक तोरा हम देख लेब' चाहैत छी

 रास्तामे भरि कोनो अनहोनीक आशंकासँ मोन कोनादन करैत छल

मुदा एतय अबिते मातर हुबगर लाग' लगलहुँ अछि

हमरा भीतर बहुत भरोस जागल अछि

 हम एहि संकल्पक संग घुरलहुं अछि

जँ जिनगी जान बाँचि गेल

किन्नहु नहि घुरब ओहि नगरमे

जकरा हमर नहि 

मात्र हमर श्रमक जरुरति छै

हमरा एला सं सहमल- सहमल अछि गाम   

जकरा उपहारमे हमरा लोकनि 

द' रहल छी  ई लसहरि रोग

तैयो गाम कें हमर चिंता छैक

गाम पूरा स्वागत सँ रखने अछि

हमरा सबकें कोरेनटाइन सेन्टर मे

बाउ ! तों सब घबरा नहि

किछु नहि हेतह तोरा सबकें

गाममे एखनो बहुत क्षमता छै

प्रतिरोध सहबाक

हमरा लोकनि सबदिन दैत रहलियै अछि  नगरकें खोरिस

लै जाह एकटा नव संकल्प

सृजन ठरब एकटा नब विकल्प ।



भूमिका

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एकटा प्रहसन

जतय  बौक छै विरोध

निर्वातमे डुब्बी मारैत प्रतिपक्ष

चारिम खाम्हमे ध' नेने नीक जकां घुन

आब खसत खाम्ह कि तब खसत

जेना  सांझे सकाल

अनचोके मे ढहि गेल पुल मायानगरीमे

कियो जम्मेवारी गछनिहार नै

गनल जा रहल अछि सिर्फ लहास

तहिना एकटा- एकटा स्तम्भ

ढहबाक क' रहल छी प्रतीक्षा

मारने छी गुम्मी!

जहिया ध्वस्त भ' जायत 

चारूपाया 

गनैत रहब तरेगन

एखन त' सभकें 

किछु ने किछु

लाभर - जीभर

भेटिये रहल अछि।



ओ गाम सँ शहर भ' गेलाह

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हित छथि,मीत छथि

सम्प्रति

शाइत सुहिरदय छथि

हँ, शंका भेल अछि

हिनक सुहृदयतापर

पहिने खेती करैत छलाह

गाछ रोपैत छलाह

गाम - गाम बुलैत छलाह

हवा बसात लगैत छलनि

निरोग छलाह

बेवहार निश्छल छलनि

विचार निर्मल छलनि

पहिने खेती सँ मोन उचटि गेलनि

फेर गाछ सँ

पछाति गाम सँ

आब हुनका अमृत सँ कष्ट भ' रहलनि अछि

अमृत सँ तात्पर्य देवासुर संग्रामबला अमृत सँ नहि अछि

पानि सँ अछि

ओ शहर आबि गेलाह

कंक्रीट सिमेन्टक बनिज करय लगलाह

पहिने गाछ जकाँ सोचैत छलाह

आब ओ पाथर जकाँ सोचय लगलाह

पहिने आद्राक पहिल बर्षा सँ

हिनक मोन मयुर भ' जाइत छलनि

आब  ओएह पानि हिनक बनिज के बाधा पहुंचबैत छनि

घरक सोझांमे थाल खिच सँ मोनमे रोष भ' जाइत छनि

अनायासे बाजि उठैत छथि एहि पानिक कोन खगता

साओनक मेघ देखि पहिने एहन झरकबाहि नै उठै छलनि

 मोन कलशल रहैत छलनि

 गामक धारमे ओ माछ मार' जाइत छलाह

उत्साह सँ  गमैया आयोजनमे भाग लैत छलाह

मजुरक रोगाह नेना सभकेँ

उठाक' अस्पताल ल' जाइत छलाह

 आब खाली ओ कंक्रीट ,सिमेन्टक बजार भावमे लागल रहैत छथि

ओ पाथर बेचैत -बेचैत पाथरसन भ' गेलाह

ओ गाम सँ शहर भ' गेलाह।



युवा

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युवा दुनियाक ओज

लोकक ऊर्जा 

मानवताक पुर्जा

समकालीन गीत

भविष्यक उत्साह

दीन- हीनक मीत

युवा कोसी,ह्वांगहोक शोक नहि

टेमस्क कछेरकेँ दूधिया इजोतमे नहबैवला स्रोत थिक

गंगाक जबकल  पानिकें

निर्मल करैेवला 

भविष्यक लोक थिक

युवा! पुनः बसाओत ओ गाम

 जे बाढ़िमे बोहिया गेल

जे गाम भूइकम्पमे ढहि-ढ़नमना गेल

करत दुनियाके निःशस्त्र

 आइ धरि जकरा जीवनमे नहि भेलै

एकोपच्छ इजोर

ओकरो लेल बन्दोबस्त करत

भोजन,वस्त्र।

जे.जे. कॉलोनी: भाग ४

  भाग ४   देबु मनोहरसँ पुछलनि- 'मनोहर भाइ! की भेल?' देबु!अहाँ कहु ने की भेल? 'अहुँ तँ छी पक्का मैथिल ने  सोझ मुहें उतारा नहिये न...