मैथिल आँखिक वैश्विक कथाकार छथि कथाकार अशोक
'मातबर' कथा संग्रहक पुनर्पाठ'
समकालीन मैथिली कथाकारमे बेछप नाम छथि कथाकार अशोक। हिनक कथा कें ताकि - तकि केँ पढ़तै रहलहुँ अछि।हिनक कथाक बिषयमे टिप्पणी करब सहज नै छैक। विद्वता आ समीक्षकीय दृष्टिकोण सँ देखल जाय तँ बहुत विशद विश्लेषणक माँग करैत अछि हिनक कथासभ मुदा से अवगति हमरा नहि अछि तथापि हम ई मानैत छी हिनक कथाक भाव,कथ्य आ बहुत हद धरि कथाक अभिष्ट साधारण सँ साधारण पाठक बुझि पबैत छथि ताहि परिप्रेपेक्ष्यमे हिनक दोसर कथा संग्रह 'मातबर' जे बहुत पहिने पढ़ल छल एहि बीच एकर पुनर्पाठ कयलहुँ।ताहि क्रममे इच्छा भेल कियेक ने एहि पोथीपर अपन किछु पाठकीय टिप्पणी राखल जाय।तकरे एकटा प्रयास अछि एहि विशिष्ट कथा संग्रहपर ई दूटप्पी।
हिनक कथा संग्रह पढ़ैतकाल सबसँ पहिने हमरा ई भान भेल जे कथाकार अशोक समयक संग बहुत यथार्थवादी ढंग सँ चलबामे विश्वास करैत छथि।ओ लकीर के फकीर नहि छथि। कथा कहैत नहि छथि, रचैत छथि से सम्पूर्ण तथ्यक संग।भूत,वर्तमानक तालमेल बैसबैत भविष्योन्मूख कथाक सृजनशील्पी छथि कथाकार अशोक। एकैसम शताब्दीक आरंभे मे (२००१ई.)ई कथा संग्रह अबैत अछि।एकैसम शताब्दीक आरंभिक बर्षमे दुनियांमे अनेक परिवर्तन भेल। दुनियाँक कम्युटरीकरण,मुक्त व्यापार समझौता, इंटरनेटक अविर्भावक प्रभाव वैश्विक पड़य लागल।भारत सेहो प्रभावित भेल सहजहि मिथिला सेहो।एहि सभ बातक प्रभाव एहि कथा संग्रहमे संग्रहित कथा सभपर देखल जा सकैछ।
पाठ आ पुनर्पाठ क पछाति हम जे किछु बुझि सकलहुँ तकर ई आत्मिक अनुभूति मात्र थिक। हम सबसँ पहिने एहि संग्रसक 'राँड़' कथापर चर्च करय चाहब।विधवाक जीवनपर मैथिली मे घनेरो कथा लिखल गेल अछि मुदा राँड़ कथा ओहि कथा सभसँ बहुत फराक अछि ,एना कहि जे क्रान्तिकारी अछि तँ बेजाय नहि।ई एकटा विद्यार्थी मनीषक कथा सँ आरंभ होइछ जे वास्तवमे बदलैत परिवेशमे स्त्री- पुरुषक साम्यताक कथा कहैछ।विधवा जीवनमे आयल बदलावक कथा कहैछ।मनीष अपना मामी सँ आत्मिक स्नेह करैत छथि जखन हुनका मामीक वैधव्य हेबाक खबरि भेटैत छनि तँ ओ व्यग्र भ' जाइत छथि जे एतेक सुन्नरि मामी कोना क' उजरा साड़ी पहिरि क' रहती? केहन लगती ? आदि आदि चित्रक मनोदशा बनैत छनि।एहि छण हुनका मोन पड़ैत छथिन अपन विधवा पितामही ,अपन पिसियौत बाल विधबा बहिन। मामाक मृत्यु सँ मनीषक मोन बिचलित होइत छनि आ ओ मामीक लेल मुँगा रंगक शाल ल' जेबाक आ हुनका ओ शाल ओढ़ा देबाक विचार करैत छथि।जखन मनीष मामी सँ भेट करबाक लेल काशी जाइत छथि तँ हुनका मोनमे अतिरिक्त संतोष होइत छनि से मामीक परिधान देखि क' ।मामी आसमानी रंगक नुआ ब्लाउज पहिरने छथि।।हाथमे सोनाक चूड़ी आ घड़ी ।ई हमरा समाजमे एकटा पैघ बदलाब भेल अछि।विधवाक जे अभिशप्त जीवन छल ताहिमे बहुत सुधार भेल अछि।आब तँ रहरहां विधवा विवाह सेहो भ' रहल अछि।कथाक माध्यम सँ मिथिलाक विधवा स्त्रीक काशीमे केहन दुर्दशा छलनि तकरो उल्लेख भेल अछि। से लेखक रानी कोठाक'नेपोभाटिन 'क वर्णन आओर विश्वनाथ गलीमे भीख माँगवाली सभक स्थितिक चित्रण सँ बहुत सटीक तुलनात्मक अध्ययन कयलनि अछि। एतबहि नै एहि कथाक माध्यम सँ स्त्री काज क'के अपन पैरपर ठाढ़ हुए।अपन परिश्रमक पाय सँ अपन धियापुताक भरण पोषण करय ।स़गहि अपन स'ख सिंगार पर अपन कमायल किछु टाका व्यय करय। एहिमे बेजाय की? मामीक प्रसंग मनीष कहै छथि अहाँ केँ काजक ईलम अबैये ,तँ अपन सेवा केँ पाय मे किये ने बदलब।सेवाक्षेत्र बहुत दिन धरि उपेक्षित रहलैक अछि।एहि कथाक माध्यम सँ कथाकार सेवाक्षेत्रक महत्वक जे रेखांकण कयल अछि से अति महत्वपूर्ण अछि।आइ सं बीस बर्खक पछाति हम सेवा क्षेत्रक बढ़ैत डेग केँ अकानि सकैत छी।
'मातबर' जे एहि संग्रहक शीर्षक कथा अछि। आइ सभ किछु पु पूंजीपर टिकल अछि।बाप बेटाक सम्बन्ध तक टाकापर आबि क' ठमकि गेल अछि। कोनो धरानी सब मातबर बनय चाहैत अछि।आइ डेग -डेग पर महाराज बैसल अछि।ओकर संग देबाक लेल ,जी हजुरी करबाक लेल कविया आ महबूब सनहक मुँहलगुआक कोनो कमी नहि छैक।मुदा एहिमे पीढ़ीक संघर्ष सेहो देखाइत अछि।हँ, एकटा बात शेख साहेब सन मुँहपर कनियों उचित बजनिहारक दिन- दिन अभाव भेल जा रहल अछि।
एकटा कथा अछि 'दसखत'।एहि कथामे आचार्यजी सन आइ .ए. एस आजुक युगमे भरल पड़ल छथि।भ्रष्टाचार आओर विलासिता आजुक नौकरशाहीक पर्याय भ' गेल अछि।विलासिताक परराकाष्ठा भ' गेल अछि जे आचार्यजी सनक लोक जीवन जे अपन हाथ पैर साफे हिलब' नहि चाहैत छथि।एतय धरि जे फाइलपर दसखतो सांकेतिक करय लगैत छथि।परिणाम एहन- एहन लोकक स्थिति आचार्यजी जकाँ भ' जाइत छनि जे हुनक अंग सब शिथिल भ' जाइत छनि अनेक रंगक व्याधि गछारि लैत छनि।शक्तिहीन भ' टुकुर- टुकुर तकैत रहैत छथि।
'कोठा' आजुक राजनीतिक व्यवस्थाक सटीक चित्रण अछि। आइ डेग डेग पर राजनीतिक व्यवस्थामे रामलाल मंडल सन नेता भरल पड़ल अछि।मजाल छै जे कियो कल्ला अलगा सकय।ई काज जैह किछु साहित्यकारे क' सकैये।से कथाकार बहुत फरिछा क' ,बेकछाक' मंत्रीक किरदानी कें उघार के अछि।ई मात्र मंत्रीक किरदानी नहि आजुक लोकतांत्रिक बेवस्थाक सहज पहिचान भ' गेल अछि।ककरा कहबै?नागनाथ के हटाउ सांपनाथ केँ लाउ ,की बाघनाथ कें लाउ ,सब एके रंग।बदलैल- बदलैत जनताक मोन सेहो अगुताय लागल अछि।जाति धर्मक स्वर्ण तुलापर लौल क' भ्रष्टाचार,आतंकक सबटा सौ फिसदी टंच फार्मूला सभक अविर्भाव नेता लोकनि क' लेलनि अछि। देखियौ कथाकारक पैनी नजरि कोना दौड़ैत छनि," प्यादा,फर्जी,किश्ती ,घोड़ा...।सह आ मात खेलाइत रहैत छथि।ब्रह्मण,दलित,पिछड़ा,मुसलिम...गोटी पर गोटी।तर्जनी आ औंठा।दिमाग के खेल।दिमाग तेज आ बुद्धा प्रखर भेल जाइत छनि।एडभाइस लैत छथि ब्राह्मण सँ।राशि लैत छथि दलित सँ।रोटी बेटी पिछड़ा सँ।सम्मान लैत छथि मुसलिम सँ।"
अंन्तमे रामलाल मंडलक पोसल सांप बेसम्हार भ' जाइछ आ सौंसे सांप सरसराइत सनसनाइत रहैत अछि।भ्रष्टाचारक सांप,सामाजिक वैमनस्यक सांप।मुदा जे हौक मंत्री ,संत्रीक कोठा पर कोठा तँ बनिये रहल छैक।
एकटा कथा अछि सहज- असहज' ई दू मित्रक कथा अछि,जे नेनपने सँ मित्रताक बन्हनमे बन्हल छथि ।कामेश्वर चौधरी आ राधेश्याम बाबू दुनू नेनपनेक संगी छथि से संगियारे प्रौढ़ावस्था धरि निमहि रहल छनि।कामेश्वर गामे पर रहि गेलाह ,ओतहि खेतीबारी करैत छथि आ निचैन सँ जीवन गुदस्त करैत छथि।खुलि क' मेहनति करै छथि आ जमि क' भोजन करै छथि।सुख सँ भरि राति सुतै छथि मुदा राधेश्याम पैघ पदाधिकारी छथि,पटना सन नगरमे सभटा सुख सुविधाक अछैत रातिक' निन्न परा गेल छनि।बिनु गोटी खयने आँखि नहि मुनाइत छनि। राधेश्याम पटनामे आलीशान घर बनबै छथि से अपन मित्र केँ देखब' चाहैत छथि।ओ एक तरहें जबरदस्ती कामेश्वर चौधरी केँ अपन घर देखेबाक लेल पटना लबै छथि।कामेश्वर घर देखि क' खूब प्रसन्न होइत छथि।कामेश्वरक खूब आदर सत्कार करैत छथि। कामेश्वर गाम सँ नगर आयल छथि मुदा जीवनचर्या अपनेसन छथि कोनो बदलाब नहि जलखै मे पाँचटा परौठा आ भरि बट्टा तरकारी खाइत छथि।एयरकंडीशन कोठरी सँ निकसि फुजल छतपर अकासक नीचां अखरा पटियापर खूब चैन सँ सुतैत छथि मुदा सबटा सुख सुविधाक अछैत राधेश्याम बाबूक आँखि सँ निन्न परा जाइत छनि।ई कथा मनुक्ख विकसित होइत एकटा नव तरहक जीवन शैली कथा कहि' रहल अछि। सुविधा सँ सुख नै कीनल जा सकैछ।सुख भोगक लेल चाही चैन, से भेटैछ यथालाभ संतोष सँ ।मनुक्ख आब जिनिस' भ' गेल आछि।पाइक हबस मनुक्ख केँ कतय पहुंचा देने छैक? से जिनिस कथामे देखल जा सकैछ।एकबेर जँ गलत काजक दलदलमे फँसलहुँ तँ बाहर निकसब बहुत मोसकिल अछि। रुपा आ सतीशक दाम्पत्य जीवन रुग्ण भ' जाइछ।एहि रुग्णताक कारण कोनो पारिवारिक आ नीजी समस्या नहि अछि।एकर कारण अभाव सेहो नहि अछि। एकर कारण अछि लिप्सा।एकर कारण अछि मुँहमे खून लागब। रुपा ई बुझितो जे श्रम करैये से सुखी रहैये तथापि ओ सतीश पर अनर्गल दबाव बनौने रहैत छथि।एकर कारण स्वयं सतीश छथि ।आइ लोक इमानदारीक टाकापर गुजर करब नहि जनैत अछि वा एना कहि जे एहिपर असोकर्य होइत छैक। उपभोक्तावादी संस्कृतिक दौरमे के बाँचल अछि से कहब कठिन?
कोनो चीजक 'हिस्सक' बड़ खराप नीको बातक हिस्सक कखनो -कखनो मनुक्ख केँ संकट मे आनि दैत छैक ।तखन बेजाय काजक कोन बात?भ्रष्टाचार करब, अनैतिक आचरण करब आब लाजक गप नहि रहल।जहल जायब आब मर्यादा हनन के गप नहि रहल।आब लोक भ्रष्ट आचरणक लेल जहल जाइछ आ जखन जमानति पर छुटैत अछि तँ हाथी पर चढ़ि क' जुलूसक रुपमे नगर भ्रमण करैछ। हिस्सक कथा मे एकटा साहेब लाजक परिभाषा बड़ नीक सँ देने छथि,"लाजक एहिमे कोन प्रश्न छैक ? हम सभ जाहि उद्योगमे(भ्रष्टाचारक उद्योग) लागल छी ताहिमे लाजक कोनो महत्व नहि छैक।लाज तँ पहिनहि संग छोड़ि दैत अछि।अथवा लोक लाजेके छोड़ि दैत छैक।लाज धाख त' तोरा सभक लेल अछि"
एहि टाकाक उद्योगमे किछु संभव छैक।जेलमे रहितो जावन्तो सुविधाक उपभोग क' सकैत छी।राति विराइत ज ल सं निकसि क' घुमियो सकैत छी।
'भोज' कथाक माध्यम सँ ब्रह्मण समाजक जे अन्तर्विरोध अछि से फरिछ सँ उजागर कयलनि अछि।एखनो समाजमे छोटका- बड़का लोकक अवशेष बाँचल अछि।मात्र कर्मकांडे धरि ब्राह्मण रहब तँ की भेटत? भोज शीर्षक कथा अनेक तरहक सामाजिक प्रश्न ठाढ़ करैये।
एकटा कथा अछि 'खुशीक प्रश्न' कथा मे बाल मनोविज्ञान प्रयोग कयल गेल अछि मुदा अछि विशुद्ध रुप सँ एकटा शहरी मध्यम वर्गीय परिवारक कथा। शहरी मध्यम वर्ग कोना अपना दैनिक जीवनमे तनाव आ कुंठा सँ जीवन जिवैत अछि जाहिमे नेना लोकनिक कोमल मोनक कोन तरहेँ उपेक्षा होइत अछि।कोना एकटा कवि अपना पुत्र केँ कवि बनबा सँ रोकैत अछि।एहि सवेदना के की कहबै? भगत सिंह होथि मुदा हमरा घरमे नहि से कोना चलत? आजुक समाजक ई चरित्र आम भेल जा रहल अछि।
लोक एतेक तनावमे रहैत अछि।ईर्षा आ द्वेष सँ ततेक ने व्यथित रहैत अछि जे अपन दैनिक जीवनक खौंझ आ तामस कोमल मानसबला नेना सभपर उतारैत अछि।ई कथा एखनुक मध्यमवर्गक सही प्रतिनिधित्व करैत अछि।
'तानपूरा' कथामे कोना लोक अपन अपूर्ण महत्वाकांक्षा के अपन बेटा- बेटी पर लादि रहल अछि से नीक सं देखार भेल अछि। विनोद बाबू अपने संगीत सिखय चाहलनि हुनका अपन पिता सँ सहयोगो भेटलनि मुदा अपन अयोग्यता वा परिश्रम नहि क' सकबाक कारण ओ संगीत नहि सिख सकलाह मुदा जखन हुनक पुत्र गौतमक अभिरुचि संगीत दिस जगलनि तँ ओकरा उत्साह कतय सँ बढ़बितथिन उन्टे ओकरा हतोत्साहित कयलखिन।लोक एखनो बच्चा सभक भविष्य अपना हिसाबें तय करैत अछि।ओहि हिसाबे बच्चाक व्यक्तित्वक निर्माण करय चाहैत अछि जाहिमे ओकरा बेस टाका भेटै,ओकर ख्याति आ रौबदाव होइ।बच्चाक अभिरुचिक कोनो महत्व नहि। एहि तरहक कुंठित शिक्षासँ समाज के उबरबाक बेगरता छैक।गौतम के संगीतक प्रति एतेक उत्साह रहितो एकटा तानपूरा ओ नहि किनैत छथि।ई एकटा सामंतवादी सोच अछि।एहि संग्रहमे एकटा महत्वपूर्ण कथा अछि 'हरिसिंहदेवी'। सामन्तवादी समाजमे एहन- एहन वर्गीकरण कयल गेल जे समाज बँटल रहय आ शोषणक कारखाना चलैत रहय।समाज अनेक जातिमे तँ बँटले छल फेर अनेक उपजाति बनाओल गेल ताहिमे ब्राह्मण आ कायस्थ वर्गक लेल जे पंजी ब्यवस्था बनाओल गेल ताहि बेवस्थापर एहि कथाक माध्यम सँ बेस धरगर प्रहार कयल गेल अछि। एहि बेवस्थाक सभटा अवगुणे रहल।अन्तत: एहि वर्गीकरण सँ समाजिक एकता कमजोर भ' गेल आओर बेवस्था लागू करयबला राजा हरिसिंदेव के स्वयं तुगलक आक्रमणक सामना नहि क' भेलनि आ हारि क' जंगल दिस परा गेलाह।जँ समाज एकताबद्ध रहितय तँ हुनका एहन स्थितिक सामना नहि करय पड़तनि। पंजी बेवस्था मे जाति -उपजातिमे विभाजन सँ समाजकमे झूठक देखाबटी,एक दोसराक उपहास करब,हीन बुझब एहि सबसँ सामाजिक तानी भरनी बहुत तन्नुक होइत गेल।अन्तत: एकैसम शताब्दीयो मे मिथिलामे जातिक श्रेष्ठताक दंभ एखनो बहुत किछु बाँचल अछि। बुड़ि कहाइयो क' सोति बनल रहब ई कोन श्रेष्ठता भेल ? एहि कथाक माध्यम सँ कथाकार जाति बेवस्थामे श्रेष्ठताक झूठक दंभ पाल'बला लोक सभकेँ नीक सँ देखार करबामे बहुत सफल भेलाह अछि।
एहि संग्रहमे एकटा कथा अछि 'सीवन रजकक हितचिन्तक' सीवन रजक धोबि जातिक अछि ।मैट्रिक पास अछि।बैंक मे आदेशपाल अछि।एतय तक बड़ बढ़ियां मुदा जखने ओ प्रोन्नत भ'क', रोकड़पाल (कैसियर) भ' जाइए।होब' लगैत छैक ओकर उखाही से गामक बाबू भैया सँ आफिसक बाबू आ आफिसर सभ अपना -अपना तरीका सं सीवनकें उपेक्षा आ तिरस्कार करैये।सीवन ईमानदारी सँ कैसियरक काज करैत रहैत अछि ताहिपर ककरो धियान नहि जाइत छैक। बैंकक फिल्ड आफिसर द्वारा जे ऋण लेबा मे किसानक सभक शोषण कयल जाइत अछि तकर सीवन विरोध करैत अछि।सीवन चेयरमैन रामदहिन मिश्रक बड़ आदर करैत अछि।हुनका कहला पर ओ शराब पिअब छोड़ि दैत अछि। सीवन नीक लोक भ' जाइत अछि मुदा ओ अपन स्वाभाविक क्रिया- कलाप बिसरि जाइए से एहि बात केँ ओकर पत्नी तक अकानि लैत छैक। सीवनक पत्नी कहैत छै,' हँसियो करै छियै तँ मुसकिया दै छै।एना किये भ' गेलैए चुनियाक बाप के?आब बजबो कम करै छै।ठहक्का त' एकदम बिसरि गेलैए।धौर एहिसँ त' पहिने नीक रहै।' भाय रामलखन त' ओकरापर सोझे सोझ आरोप लगा दैत छैक जे ओ आब बड़का लोक नाहित गप करैये। सीवन कें एकाएक अपन स्थितिक भान होइत छैक।ओ फेर सँ अपन पुरना सहजतामे आपस आबि चाहैये।निश्चय करैये जे ओ पहिने जकाँ हँसत ,बाजत ,गप करत।जीवनमे आगू बढ़ब बेजाय नहि मुदा ओहि संग अहाँक बदलैत सहजता अहाँकें जीवन राग सँ बहुत दूर धकेलि सकैया।
'महतो'बदलैत कुदृष्टि कथा थिक।अपना राज्यक कार्यालयी संस्कृति केँ जीवन्त वर्णन करयबला कथा अछि।सरकारी कार्यालय कोना निठल्लापनक अड्डा अछि।कियो बिना पेपरवेट के काज करबाक लेल तैयार नहि अछि।ईमानदार आ सोंझ लोक कें बुरबक,बेहूदा बुझल जाइछ।जेना एहि कथाक महतों केँ बुझल जाइत छैक।अपने कार्यालयमे पी. एफ सँ अग्रिमक लेल कोन दशा होइत छैक महतोक।कोना कार्यालय मे काजक अतिरिक्त सबटा मसखरापन होइत रहैत छैक।हद तँ तखन भ' जाइत जखन कार्यालयक स्टाफ गुलाबरतन बड़ा बाबूक सहयोग सँ साहेबक पत्नीक सम्बन्ध मे अश्लील बात करय लगैत अछि ।तखन महतो सभटा बिसरि क' गुलाबरतन कें कालर पकड़ि क' तीन- चारि चमेटा घींचि दैत अछि।ई छियै बेहूदा लोकक प्रति प्रतिरोध थिक।कखनोकाल महतो सन सुधुआ व्यक्ति कें जखन बात हद सं आगां बुझाइत छैक त' एहने प्रतिक्रिया दैत अछि।ओतय जं कियो पढ़ल लिखल काबिल व्यक्ति रहैत त' हें हें हें क'क' अपन काज निकलबा लैत।
'सनेश' कथा बहुत मार्मिक कथा अछि।अपना समाजमे एखनो सभटा जातिक नपनापर नापल जाइए।अपना जातिक स्वर्ण तुलापर लौलल जाइए मुदा बात सांच ओतय छैक जे कोनो गरीबक अपना जातिक धनीक वा बड़का लोकक समक्ष कोनो सम्मान नहि छैक ।चाहे ओ मिसरजी होथि वा दिवाकर रविदास। ई सभ जनितो तैयो सभ भरिदिन जाति- जाति खेलाइत रहैत अछि।मिसरजी आ रविदासजी संगे रहैत छलाह।एक दोसरापर खर्च करैत छलाह। बात आयल गेल भ' गेल।एकदिन दिवाकर रविदास मिसरजीक ओतय पुरना स्टीरलक औंठी जे हुनका मिसरजी देने छलखिन।ओहि नापक एकटा सोनाक अंउठी लाल पाथर लागल मिसरजीक ओतय एकटा पत्रक संग दिवाकर द' गेलाह। एहि सनेशपर मिसरजीक प्रतिक्रिया आ पत्रक मजमून दुनू सोचबापर विवश करैत अछि। आखिर हम सब कतय जा रहल छी?
राग - बिराग बहुत हल्लुकसन कथानक कें कथा बनाओल गेल अछि।एहि कथाकेँ पढलाक पछाति हमरा लागल जे एकटा मांजल कथाकार कतेक आसानी सँ अपन कथानकक चयन करैत छथि।एहि कथामे कथानायक कें पटना सँ दरभंगाक यात्राक क्रममे एकटा सहयात्रीक संग जे संवाद होइत छनि ओकरे महीनी सँ कथा मे परिवर्तित क' दैत छथि। एकटा सोझमतिया लोक कें कोना साकांक्ष कयल जा सकैछ। कथा बहुत रोचक ढंग सँ लिखल गेल अछि।
'आबेस' आइ धियापूताक कैरियरक प्रति लोक बेस साकांक्ष भ' गेल अछि , से नीक बात मुदा कैरियरक अतिरिक्त जीवनमे आर बहुत किछु छैक,जे सिखबाक अनुभव करबाक दरकार रखैत अछि।लोक बुझै अछि बच्चा पढ़ि लिखि लेत नीक नौकरी- चाकरी भ' जेतै बस आर की ?मुदा बात ओतहि धरि सीमित नहि रहि गेल छैक।उचित संस्कार प्राप्त करब,जीवन संघर्षमे आगां उत्पन्न होइबला समस्या सभ सँ कोना लड़ल जाय? ई सभ भेटैत छैक पारिवारिक आ सामाजिक जीवनक अनुभव सँ।मुदा आजुक जे संस्कृति विकसित भ' रहल अछि ताहिमे बच्चाक गलती कम आ अभिभावक बेसी बुझना जाइछ।आबेस आ दुलारओतबय जतेक आवश्यक।जतय हटन- डटन जरुरी ओतय ओहो हुए।अज्ञाकारिता,नम्रता मनुक्खक जीवनक आभूषण अछि।दिनेश बाबू आओर अनिता अपन बेटा केँ घ'र ल' जेबाक लेल गेल छथि। कएक घंटा सं टीशनपर प्रतीक्षामे बैसल छथि। आओर बिनु बेटाक नेनहि टिशनपर सँ घर आपिस आबि जाइ छथि ।हुनक पुत्र महेश अपन संगी प्रशान्तक संगे बतिआइत रहि जाइये। माय बापक कोनो परबाहि नै करैत देखाइये।ओकर चालि- चलनिमे माय- बापक प्रति कतहुँ अनुराग नहि झलकैत छैक।ई बहुत चिंताक बिषय छैक आजुक पीढ़ीक लेल।सब चाहैत अछि हमर बेटा दूर ,बहुत दूर देश चलि जाय,खूब टाका कमाय।समाजमे एहि रुपमे हमर चर्चा होइत रहय जे फल्लां बाबूक बेटा युरोप,अमेरिकामे एतेक अमेरिकन डालर कमाइत छनि ।फल्लां बाबू खुशी सँ फुइट जकाँ फटैत रहैत छथि।अवस्था खसलापर ओएह बेटा घुमियो क' जखन नहि देखैत छनि फेर आहि अबैत छनि।आबेस एतबय जते जरुरी। 'बूढ़ा जिबैत रहलाह' एकटा विलक्षण कथा अछि।एहि कथामे लोक बूढ़ा केँ बेबकूफ बूझैत अछि मुदा हमरा जनैत बूढ़ा सभकेँ बेबकूफ बुझैत छथि।समाज कतेक संवेदहीनअछि? हुनक परिवारमे एतेक गोटा मरि जाइये तैयो बूढ़ा जिबैत छथि।ई बूढ़ाक जिजीबिषा छनि। से बुझबाक ज्ञान एखनो हमरा समाजमे विकसित नहि भेलैक अछि वा लोप भ' गेलैक अछि ।से जे कही।बूढ़ा एहु अवस्थामे लोकक स्वागत- सत्कार करैत छथि।उपकार करैत छथि।मुदा बूढ़ा समाजक चालि चरित्र कें नांगट सेहो करै छथि।ओ अठारह बर्षक युवती सँ विवाह करबाक घोषणा करैत छथि।ने अठारह सँ कम आ ने बेसी।किये जँ उनैस बरखक युवती सँ विवाह करितथि तँ जुलूम भ' जइतै? वास्तवमे बूढ़ा केँ विवाह नै करबाक छनि।ओ समाजक चरित्र केँ देखार करय चाहलनि अछि।ताहिमे ओ सफल भेलाह अछि।कथाकार सेहो सफलतापूर्वक कथा केँ बुनाबटि मे, ओहिमे रंगटीप देबै बहुत सफल रहलाह अछि।एकटा कथा अछि 'प्रतिलोम' ई कथा एकदिस कथाकार श्रोत्रीय समाजक यथास्थितिवादिता पर धरगर प्रहार केलनि अछि तँ दोसर दिस समाजमे जे जातीय दुर्भावना चरमपर अछि तकर नमूना सेहो भेटैत अछि।अर्जुन के जीह कटबाक के प्रयास करैत छैक? ओकरे जातिक लोक।ओहि जातिक कहबैका सभ अर्जुन सनक नि:सहाय लोकक लेल किछु जीविकाक ओरियान किये ने करैत छथि? कियेक नहि अर्जुक कें पढ़बाक लिखबाक ओरियान समाज करैये?तखन पेट पालैक लेल जत' कतौ कियो चाकरी करैये तकर मजाक उड़बैवला ,ओकरा प्रताड़ित करैबला ई केहन समाज अछि? ई द्वैध बहुत भयंकर अछि।से सभ जातिमे बरोबरिये अछि। श्रोत्रीय समाजक भोजक वर्णन अद्भुत अछि एहि कथामे।भोज खेबाक आ करबाक संस्कृति श्रोत्रीय ओ ब्राह्मण समाजमे कने बेसिये अछि। से व्यंग्यात्मक शैलीमे भोजकअद्भुत संगीतात्मक वर्णन केलनि अछि।
" भोज शुरु भेलैक त' प्रारंभमे वातावरण गभिनायल छल।क्रमश: मुसकी,कनफुसकी,टोकाटोकी,हंसी,ठट्ठ,ठहक्का,पिहकारी,सात सुर बाज' लागल।आस्ते -आस्ते भोजमे एकटा आलाप आयल।......... आरोह वा अवरोह मे दही,अम्मट,श्रीखण्ड,लड्डू,रसगुल्ला आ पायसक स्वाद वातावरण मे पसरैत रहल ।भोज एकदम संगीतमय भ' उठल।" कथाकार एतय व्यंग्यमे जे संगीतात्मकता उत्पन्न केलनि अछि तखन सहजहिं प्रो. हरिमोहन झा मोन पड़य लगैत छथि।
से सब त' ठीक मुदा कथाक अंत प्रदीप लग आबि क' होइये ।ओएह प्रदीप जे 'दास- दासिनक' दानक प्रतीक प्रावधानक विरोध कयलनि।हलांकि हुनक विरोध यथास्थितिवादक छत्तातर झपा गेल।भले झपा गेल, विरोध त' भेल।
एहि संग्रहक अठारहो कथा पढ़लाक पछाति बहुत आनंदक अनुभव क' रहल छी ।हमरा गर्वानुभूति भ' रहल अछि जे हमरा बीच मैथिली भाषामे एहन उद्भट्ट कथाकार सब छथि।कथाकार अशोकजीक जे छबि हमरा मोनमे अंकित अछि 'जे ओ मैथिली कथा कें लोकल सँ ग्लोबल बना देलनि अछि।ई धरणा एहि पोथीक पुनर्पाठ सं कने बेसी मजगुत भेल अछि।हेबनिमे हिनक प्रकाशित कथासंग्रह 'डैडीगाम'पढलाक पछाति जे आर आस्वस्ति भेटल छल से 'मातबर' कथा संग्रहक पुनर्पाठ सँ हमर धारणा आर बहुत बेसी मजगूत भेल अछि।बीस बर्ख पहिने प्रकाशित एहि पोथीक कथासभ एखनो टटका बुझा रहल अछि। प्रस्तुत पोथी दीर्घ अवधि धरि मैथिली कथाक प्रतिनिधित्व करैत रहत ,तकर हमरा पूरा भरोस अछि।।जे पाठक वा कथाकार एहि पोथी कें नहि पढ़ने होइ कृपया अपने अवश्य पढ़ी से विनम्र आग्रह।
सधन्यवाद।


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