भाग ४
देबु मनोहरसँ पुछलनि-
'मनोहर भाइ! की भेल?'
देबु!अहाँ कहु ने की भेल?
'अहुँ तँ छी पक्का मैथिल ने सोझ मुहें उतारा नहिये ने देब ।'
'ताहिमे कोनो सक ! से तँ छी मैथिले ने।'
'देबु बजलाह! हमर बात सकारात्मक अछि मनोहर भाइ।सेठ कहलक -ए कल सुबह नौ बजे तुम कोठी पर आ जाओ।कार्ड देलकए
हौजखासमे छैक ओकर कोठी।'
मनोहर देबुसँ पुरक प्रश्न पुछैत कहै छथि- 'काज की देत?'
मनोहर भाइ!एकाउण्टक काज लेल बजौने छल तँ एकाउण्टेक काज ने देबाक चाही।
'सेठ कहलकए तोरा कम्पुटर खीख'पड़तौ।इहो कहलकए जे हमर आफिसक लोक तोरा कम्पुटर सीखा देतौ।
मनोहर देबुक बात सुनिक'कहलनि जे अहाँक तँ पक्का बुझू।
अहाँ के की भेल मनोहर भाइ? से तँ कहु
की हैत देबु भाइ?साक्षात्कारमे बहुत गोटे जुटि गेलै।पाँच गोटेकें दोबारा साक्षात्कारक लेल बजेलकै अछि ताहिमे हमरो बजेलक
अछि।मालिकक बेटी छै सबटा कर्ता-धर्ता।
कोन कंपनी छै?
कंपनी नै छै देबू भाइ।प्राइवेट कालेज छै।बहुत स्टाफ छै।हमर सबहक साक्षात्कार मैनेजर लेलक अछि।फाइनल साक्षात्कार मैडम
लेतै।
भोरे सबगोटे संगे चाह पिबैत रहथि से पुकारे झा देबू आओर मनोहर सँ पुछि देलखिन जे अहाँ सब खाली बौआइते छी कि किछु
परिणामो भेट रहल अछि।
मनोहर पुकारे झाक प्रश्नक उत्तर दैत कहलनि -
भैया!हमरा एकटा काज भेट गेलए।
पुकारे झा-कोन काज?
मनोहर उत्तर दैत कहलनि- भैया एकटा प्राइवेट कालेज छै ताहिमे हमरा क्लर्क के नोकरी भेट गेल।आइ चिट्ठी सेहो द' देलक।काल्हिसँ
काजपर बजेलक अछि।
बहुत नीक,हमर शुभकामना अहाँकें।पढ़ल लिखल छी तँ काजो तेहन भेट गेलए।संकट एकेटा छैक जे दिल्लीमे पढ़ल लिखलकें सेहो
बड़ कम दरमाहा दैत अछि।
मनोहर पुकारे झाकें उत्तर दैत कहलनि-करबै की भैया! उपायो तँ कोनो नै छै।
देबू अहाँकें की भेल यौ!
भैया हमहुँ दूठाम इंटरव्यू देलियै अछि।मुदा एखन कतहुँ फाइनल नै भेल अछि।
'ठीक छै,प्रयास जारी राखू।
'पुकारे भैया!एकटा सेठ आइ कोठीपर बजेने छल।बातचीत सब ठीक भेलै।मुदा पुछलक जे तुँ कतय के रहेवला छें?
जखने कहलियै बिहारक छी। ओ किछु सुनबाक लेल तैयार नहि भेल।एकेठाम कहि देलकै जे तुँ जो,हम बिहारीकें नहि राखब।'
पुकारे सांत्वना दैत कहलनि -कोनो बात नै छै।चिंता नहि करू।काल्हि हमरा संगे चलू।एकटा पंजाबी सिक्ख अछि ,हमरा बड़ मानयै।
दोस्ती जकाँ भ' गेल अछि।ओकरा कैकटा प्लाइउड के फैक्ट्री छैक।ओकरा सँ चलिक'बात करैत छी।
देबू पुकारे झाकें कहलनि ठीक छै भैया जेना कही।
काल्हि हम काजपर सँ एक बजे आबि जायब।हम मंगल दिन क' एके बजे तक काज करैत छी।मंगल व्रत रहयै ने।साँझमे कनाट
प्लैसवला हनुमान मंदिर जाइत छी।एतहि पंजाबीबाग मे सेठक आफिस छै।पहिने सेठ सँ भेट करबै फेर हनुमानजीक दर्शन करय
चलब।
बिहान कार्यक्रमानुसार पुकारे झा आ देबू कामति गेलाह पंजाबी सेठसँ भेट करय।
पुकारे झा सेठ के अभिवादन करैत कहलखिन-सत श्री अकाल सरदार जी
सरदारजी- सत श्री अकालजी।
'कैसे हो झाजी?'
पुकारे झा-ठीक हूं सरदार जी।
सरदारजी-कैसे आना हुआ जी?
सरदारजी! ये हैं देबू।मेरे गाँव से आये हैँ।पढ़े -लिखे हैं, अपने फैक्ट्री में कोई काम दे देते इनको।यही निवेदन करने आया हूँ।
सरदारजी-किता पढ़ा है जी?
देबू- बी काम तक पढ़े हैं।
ठीक है झाजी!इसे कल भेज दो। हम एकाउटेंट को बोल देते हैं,इससे वे बात कर लेंगे।फिर जैसा होगा देखते हैं। आप आये हो कुछ
तो होगा ही।आदमी तो पक्का है न जी।
आप निश्चिंत रहो सरदार जी।
बिहान देबू सरदिरजीक फैक्ट्रीपर गेलाह।
एकाउटेंट किछु पुछताछ केलकनि फेर कहकनि-जे आज से ही कामपर लग जाओ।चलो मेरे साथ।कुछ काम समझा देते हैं।
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