समयक संग चलि रहलए कामिनीक कविता
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कामिनी मैथिलीक वरिष्ठ कवयित्री छथि। 'कालचक्रक पटरी तर' हिनक चारिम कविता संग्रह छनि। अपन पहिले कविता संग्रह 'समय सँ संवाद करैत'(२००८) सँ ई चर्चित भ' गेलीह।आरंभे सँ हिनक कविताक हम पाठक छी।हिनक चारू कविता संग्रह हमरा पढ़ल अछि।कामिनि बेछप छथि।से बेछप कियै छथि? एकर दू तीनटा कारण अछि।हिनक जे विचार छनि से कविता सँ जीवन धरि समान छनि।आलोचनाक बिनु परबाहि कयने सोझ-सोझ अपन बात कहै छथि। कविता सँ ल'क'अपन वास्तविक जीवन धरिमे स्पष्टवादी छथि।बेसी घुमा फिरा क'नहि सोझ बात कहै छथि। एहेन लोक साहित्य समाजमे अवडेरल जाइत रहल अछि से कामिनीकें सेहो एखन धरि अवडेरल गेलनि अछि।जहिया साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार आरंभ कयने रहय ताहि दिन ई ओहि वयसक कवयित्री वा लेखिका जे कहि से ई एकमात्र छलीह।हिनक पहिल कविता संग्रह चर्चामे रहनि।हिनक पोथीक भूमिका प्रसिद्ध आलोचक मोहन भारद्वाज लिखने रहथिन।तथापि हिनक संज्ञान नहि लेल गेलनि।ई बात एहि दुआरे लिखलहुं जे ई टीस हमरा एखन धरि अछि आओर सभदिन रहत।प्रसन्नता ई अछि जे कामिनीजीक उत्साहमे कोनो कमी नहि अयलनि आओर सम्प्रति चारिम कविता संग्रह ल' क' उपस्थित भेलीह अछि।माने बुझि गेल हेबै जे कविता लिखबे महत्वपूर्ण नहि छपेनाय सेहो बहुत साहसक काज छैक।सभसँ पहिने एहि साहसिक यात्राक लेल, एहि चारिम कविता संग्रहक लेल बधाइ दैत छियनि।
आब अबैत छी हम हिनक टटका कविता संग्रहपर।प्रस्तुत संग्रहमे ५४गोट कविता अछि।अपन समकालीनता वितानपर कविता सभ मजगूतीसँ ठाढ़ अछि। अपना पिताक प्रति कवयित्रीक मोनमे असीम आदरभाव छनि। पोथी अपन पिताकें समर्पित करैत कवयित्री लिखैत छथि -'पिता जे भोरसँ साँझ धरि/खेतसँ खरिहान धरि/खटैत रहलाह/शीत-रौदमे/भीजैत रहलाह /आ सदिखन हमरे हभ लेल सोचैत रहलाह।से एहि संग्रहमे पितापर छ:गोट कविता अछि।एकटा आस्वस्तिदायक बात जे कवयित्री पिताकें पूरा यश दैत छथि जे पिताक सपनाकें अस्सी प्रतिशत ओ पूरा क' देलनि।से ठीके एकटा ठेठ गृहस्थक पुत्री कवयित्री नीक सँ शिक्षा दीक्षा लेलनि। देश -समाज ओ संस्कृतिक गप अकालनि। भाषाक महत्ता बुझलनि आओर निरन्तर सर्जनामे लागल छथि।कवयित्री कामिनिक एकटा बात जे हमरा सभसँ बेसी प्रभावित करैत अछि से थिक ओ अपनाकें विक्टिम घोषित कहियो नहि केलनि।ओ स्त्री हेबाक कोनो अतिरिक्त लाभ लेबाक कोनो प्रयास कहियो नहि केलनि।जेना कि एखन देखल जाइत अछि कियो आइ जन्म लेलक साहित्यमे आओर जँ महत्वाकांक्षा पूर्तिमे कनियो देरी भेल तँ अरण्यरोदन शुरूह। जाति,धर्म ओ लिंगक सोङरसँ वैतरणी पार करबाक चेष्टा आरंभ।ताहु सँ नहि भेल तँ ठीकेदार सबहक आगाँ-पाँछा।से ई कहियो नहि केलनि तें बाँचल छनि कविताक तेवर।
एकटा कविता अछि 'फाटल वस्त्र' एहि कवितामे राजनीतिक जे अपराधीकरण भ' रहल अछि तकर बहुत सटीक चित्र घिचने छथि-
'जे जरेलक सम्पूर्णो लाइब्रेरी
ध्वस्त केलक स्कूल कालेज
सैह बनल शिक्षामंत्री
जे छिनलक थारी महक रोटी
हाथ महक काज
बड़ निर्दयतासँ
मारलक पेटपर लात
सैह बनल खाद्यमंत्री
ई कविता भारतीय लोकतंत्रक एकटा बानगी छी। जतबा हम लोकतंत्रक मुह पोछि ली वास्तविकता इएह अछि। धनतंत्र ओ लाठीतंत्र एहि संसदीय व्वलस्थापर गहींर धरि ढुकि गेल अछि।मुदा तैयो फेर आशा-उमेद करब ककरा सँ ओहि सरकार सँ उमेदो अछि तेंने सरकार शीर्षक कवितामे कहैत छथि-
'हमरा संवेदना नहि
सुरक्षा चाही
हमरा चाही सांस लेबा जोग
स्वच्छ हवा
पाँखि पसारबाक लेल
पैघ आकाश'
कवयित्री चिंतित छथि प्रदुषित होइत नदी सबहक हालतपर।जखन भारतक जीवन रेखा।भारतवासीक आत्माक गह्वरमे पैसल नदी गंगाक हालति एहेन छनि तखन आन नदीक कोन बात।
'आइ गंगा प्रतीक्षा क' रहलीह अछि फेर कोनो भगीरथक जे आबय आओर एहि प्रदूषण भरल जीवनसँ मुक्त कराबय।नमामि गंगा परियोजना एखनो चलिये रहल अछि मुदा अपेक्षित परिणाम कहां भेट रहल अछि।
समाज तीव्र गतिये बदलि रहलए ताहिपर अहाँ परदा नहि ध' सकैत छी। यात्रीजीक लिखल बलचनमा उपन्यासक पड़ताल कवयित्री अपन कविता बलचनमा मे करैत छथि।से कोना करैत छथि से देखल जाय।बलचनमाक धिया पूता एहि स्वतंत्र भारतमे बहुत आगाँ जा रहल अछि से देखि बहुतोकें ठकमूरी लागि रहल छनि।से बरू लागौन मुदा बलचनमाक स्थिति बदलि रहल अछि-
'ककरो खेतेमे
मरुआ धान रोपैवला
ककरो नेनाक
नेकरपन करैवला
बलचनमा आब
दलित परित्रासित नहि रहल
ओ भ' गेल अछि
एहिह परोपट्टाक नामी आफिसर
जेकरा देखतहि
बडका-बड़का लोक
श्रद्धा सँ माथ झुका कहैत अछि
'प्रणाम सर'
हम एहि कविता सँ पूरा सहमति नहि रखैत छी जे दलित समाजमे आब कियो दबल कुचलल वा परित्रासित नहि अछि।एखनो बहुतो लोक अछि बहुत पाछु तकरा देखबाक लेल जाय पड़त कोनो मुसहर टोल वा डोम टोलमे। एखनो ओहि टोलक बहुतो नेना बकरी चरबैत,घोंघा सितुआ बिछैत वा महानगरक सेठक कोनो गुठुल्लामे वा गैरेजमे बाल मजदूरी करैत भेटि जायत।हमर तँ मानब अछि समाजमे एकटा नब दलित वर्ग सेहो जनमि गेल अछि।जे एखनुका कोनो दरिद्र छिम्मरि बभनटोलीमे वा महानगर कोनो जेजे कालोनीमे जा क' सद्य: देखल जा सकैत अछि।
श्रद्धा -विश्वासक नामपर जे देशमे एखन खेल चलि रहल अछि तकरो अपन कवितामे खबरि लैत छथि कामिनी
'आइ कियो हमरो श्रद्धा विश्वासक संग
क' रहल अछि घात
मनक सर्वोच्च आसनपर बैसि
स्वयं भ' गेल अछि पथभ्रष्ट
सोचैत छी
अपन श्रद्धा भक्तिकें
बदलि-बदलि
कोन बरतन कीनब'
अंतमे इएह बात कहब जे कामिनीक कविता मिथिलाक आम जनमानसक बात करैत अछि।सगरे संसारमे मनुक्खतापर आयल संकटसँ अपनाकें संपृक्त रखने छथि कवयित्री ।एकठाम कहितो छथि जँ दुर्वासा ऋषि जकां वाणीमे शक्ति रहितय तँ ओहि व्यवस्थाकें हम ध्वस्त क' दितियै जे छिनि रहलए आम लोकक अधिकार। कोनो खुटामे खुटेसल विचारधारा सँ कतेको डेग आगाँ होइछ मनुक्खाक बात करब।मनुक्खक जीवनमे आयल त्रसद क्षणमे करुणा भाव राखब।मानव समुदायपर आयल संकटपर बिनु कोनो भेदभावकें आम मानव-मानवीक संग बेरपर ठाढ़ रहब।



बहुत सार्थक समीक्षा लिखलहुँ
ReplyDeleteआभार