Wednesday, October 23, 2019

Maithili Book Critics by Dilip Kumar Jha

                                                            बिछड़ल कोनो पिरित जकाँ- विद्यानन्द झा                

जीवन खाली आमे जामुन टा नहि होइछ,से साँचे जीवन खाली आमे जामुन जीवन नहि थिक। अपना परिवेशमे घटित अनेक घटना- परिघटना के अखियास करब ओकर नीक स्मृति कें सहेजब आ जे गप नीक बेजाय जे बुझाय ताहिपर बेरपर बाजब से थिक जीवन।हम गप क' रहलहुँ अछि प्रिय कवि श्री विद्यनन्द झाजीक टटका कविता संग्रह "बिछड़ल कोनो पिरीत जकाँ" के प्रसंग। विद्यानन्द झा मैथिलीक अपना शैलीक बेछप कवि छथि,हमरा बहुतो कारण सँ विद्यानन्द झा पसिन छथि जाहिमे हिनक अपादमस्तक मैथिलपन सभसँ बेसी घिचैये हमरा।कोनो लोक भाषाक सर्जकक सभसँ महत्वपूर्ण गहनो त' ओएह छियै। तेँ ने जनभाषाक सुच्चा कवि छथि बिनु कोनो राष्ट्रीय,अन्तर्राष्ट्रीय बनबाक सेहन्ता के। बाना धरबाक प्रयास सँ परहेज हिनक एकटा फराक विशेषता छनि से कवियेके नहि कवितो के छनि से हमरा पसिनक एकटा फराक कारण अछि। तेँ ने अपन भाषा के वितान पैघ करैत लिखैत छथि-गुगलक पार/ मोन मे बसल/ जीहपर लपपाइत सूच्चा लोकभाषा थिक हमर भाषा। जखन कवि कोनो शब्द बिसरैत छथि त' शब्दकोशक सहायता नहि अपना माय सँ पुछैत छथि ओ शब्द जे बनैत अछि कविताक भाषा। अनेक कविता जे जनाभिमुख भ' लोकक संकट आ लोक समस्याक बात अपना शब्द आ लय के माध्यम सँ संवाद स्थापित करैत अछि। भारतमे किसान आ किसानीक सीदित हालति सँ कवि अपन अनेक कवितामे मुठभेर करैत रहलाह अछि सभटा वस्तुक मूल्य जखन बजारक अधीन तखन कृषि उत्पादनक मूल्य किसानक हाथ कियेक नहि? समर्थन मूल्यपर कहिया धरि खेपता किसान? दीदारगंजक यक्षी कविता हमरा बेस आकर्षित कयलक अछि।सुन्दरताक मूर्ति केँ स्त्रीक अधिकार सँ जोड़नाय हिनकेसन कवि क' सकैत अछि।
ठाढ़ छथि मौर्यकाल सँ आइ धरि
हाथ मे च'र नेने
अपरुप सुन्नरि
पटना संग्राहलयक दीदारगंजक यक्षी ।
स्मृतिशेषक अनेक कविता छनि से मैथिलीमे एखनुक समयमे हेबे करत।कारण स्पष्ट अछि मिथिलाकअपन नीजी पहिचान (वस्तु ,विचारक ) दुनू स्तरपर दिनानुदिन क्षरण भ' रहल अछि ,तेँ कवि केँ लबान मोन पड़ि रहलनि अछि ,ओकरा संग नबका चूड़ाक सुगन्धि मोन पड़ब उचिते अछि।
मुइल लोक सँ कवि सेहो संवाद स्थापित कयलनि बहुतरास बात साझी कयलनि अछि मुदा एकटा प्रश्नत' तखन उठैये जखन अपन अग्रज कवि कुलाबाबू सँ पुछैत छथि , कतय पहुंचल अछि मैथिली कविता बीस साल मे?
सम्प्रति मिथिला बाढ़िक बिभिषीका सँ ग्रसित अछि एहेने परिप्रेक्ष्यमे लिखल हिनक कविता 'कृष्णजन्म' आकर्षित करैत अछि--
कोना बाँचत शिशु हमर
रोग आ व्याधि सँ
बाढ़िक प्रकोप सँ
राजाक दुरभि चक्र सँ
चिंतित देवकी।
कवि के मिथिलाक हर वस्तुक चिन्ता छनि, मिथिलाक नीजी पहिचानक उद्विगनता छनि। चाहे एतुका भाषा हो वा मिथिलाक लोकक प्रवासमे केस पाकब हो।परमानपुरबालीक पीड़ा केँ कोना बेकछाक' देखलनि अछि।कवि जीवनानन्द दास केँ टहलाब' चाहैत छथि मिथिला ।देखाब' चाहैत छथि एतुका सुन्दरता,जे आब बेसी स्मृति शेषमे जिनिहारक भूमि रहि गेल अछि तथापि कविकें अपना भूमिक प्रति आस्था आ विश्वास हमरा मजगुत करैया।हिनक ई संग्रह समकालीन मैथिली कवितामे हलचल अबस्स उत्पन्न करत।हँ ,हिनक कवितापर एकटा गप।जँ आम पाठक मोजर दैत हेथिन तखन ।हिनक किछु कवितापर दुर्वोध हेबाक आरोप लगैत छनि से पछिला संग्रहमे हमरो लागल छल जे एहि संग्रहमे बहुत कम लागल अछि ,तथापि किछु हमरो अनुभव भेल अछि।समवेत कविता खूब निमन आ निस्सन अछि।शुभकामना अग्रज।एहिना चलैत रहय ई यात्रा।


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