जँ जग जल नहि होइत
जलमेव जीवनम।जल अछि तँ जीवन अछि।जल अछि तें एहि सुन्नरसन ग्रहपर मनुक्ख निवास क' रहल अछि।जँ जल नहि रहैत तँ की होइत?प्रकृतिक अपन रहस्य छैक जे आठ ग्रह अनेक उपग्रहक बीच मात्र पृथ्वीएपर कियैक जलक स्रोत देलनि।जल कें धारण करबाक संजोगिक' रखबाक एकमात्र क्षमता पृथ्विए कें छनि तें एतय जलक सोता फूटल से अनेक स्रोत सँ जल बहराय लागल।जलक कोनो दोसर विकल्प विकसित नहि भेल आइ धरि हेबो नहि करत।जलक महत्तापर संसारक अनेक भाषामे खूब साहित्य रचल गेल अछि।
सम्प्रति हम बात क' रहलहुं अछि श्री राज किशोर मिश्र रचित' जँ जग जल नहि होइत' खण्डकाव्यक। पोथी मे जलक महिमाक बखान तँ अछिए,जलक संकटपर बात अछि आओर समाधान पर सेहो।ई सम्पूर्ण पोथी जलकें समर्पित अछि।चारि भाग मे समर्पित एहि पोथी मे पहिल भाग अछि जलक महत्व,दोसर भाग अछि जलक स्रोतक वर्णन,तेसर भाग अछि जलक संकट चारिम भाग अछि जल-संकटक समाधान।राज किशोर मिश्र एखन मैथिलीमे धुरझार साहित्य लिखि रहलाह अछि।दू बर्षक भीतर हिनक ई चौदहम पोथी छियनि।विभिन्न विधामे लिखि रहलाह अछि मुदा बेसी काव्येक पोथी छनि।मैथिली साहित्य मे कोनो प्राकृतिक समस्यापर खंडकाव्य कहिक' ई पहिले पहल खंडकाव्य दृष्टिगत भेल अछि।
मैथिली मे ऐतिहासिक ,पौराणिक ओ समकालीन बिषयपर अनेक खंडकाव्य लिखल जाइत रहल अछि। एमहर खंडकाव्य लिखबाक परिपाटी कमजोर भेल अछि मुदा पहिने बहुत महत्वपूर्ण खंडकाव्य सभ मैथिली मे लिखल जाइत रहल अछि। किछु खंडकाव्य बिभिन्न भाषासँ अनुदित सेहो अछि मुदा हम एतय मैथिलीक किछु महत्वपूर्ण मौलिक खंडकाव्यक उल्लेख करय चाहब जेना १९२६ मे रघुनन्दनदासक 'बीरबालक' प्रकाशित भेल जे लव-कुशक चरितपर लिखल गेल अछि।शरशय्या खंडकाव्य लिखलनि बुद्धिधारी सिंह 'रमाकर' जाहिमे भीष्म पितामहक जीवन ओ उपदेशक वर्णन अछि। समकालीन बिषयपर मथुरानन्द चौधरी खंडकाव्य 'कृषक' बहुत महत्वपूर्ण अछि।कृषकक जीवनपर लिखल एहि खंडकाव्यक बिषयवस्तु एखनो ओहिना जीवन्त अछि।कृषकक दुर्दशा मे एखनो अपेक्षित सुधार कहाँ भेल अछि।
उपेन्द्रनाथ व्यासक 'सन्यासी' सेहो बहुत महत्वपूर्ण खंडकाव्य अछि।तहिना केदारनाथ लाभक 'लखिमा रानी' आओर 'भारती' बहुत चर्चित खंडकाव्य अछि। सुरेन्द्र झा सुमन लिखित खंडकाव्य 'उत्तरा' ओ रवीन्द्रनाथ ठाकुर लिखित खंडकाव्य 'पंचकन्या' सेहो बहुत महत्वपूर्ण अछि।मैथिलीमे आर अनेक महत्वपूर्ण खंडकाव्य लिखल गेल अछि मुदा पेशासँ अभियन्ता मुदा हृदयसँ प्रकृतिक महान चिंतक, श्रष्टा श्री राजकिशोर मिश्र विरचित खंडकाव्य 'जँ जग जल नहि होइत' समकालीन बिषयपर लिखल गेल बहुत महत्वपूर्ण खंडकाव्य अछि।काव्यक सौन्दर्यबोध सेहो पाठककें बहुत आकर्षित करतनि से हमरा पूर्ण विश्वास अछि।देखल जाय ई पाँती--
'तुषार पाग पहिरने गिरिवर
भ'जएतथि सुक्खल पाहन
नहि चीड़, नहि देवदार तरु
नहि नग सँ जल-आवाहन।'
जलक महिमा बखान मनुक्ख कें तँ करहि पड़तनि। देवी-देवता आओर पितरगण सेहो जलेसँ तृप्त होइत छथि।अथर्ववेद मे एकठाम कहल गेल छै-
'आपो देवीरूपे ह्वे गाव:पिवन्ति न: / सिन्धुभ्य: कर्त्व हवि:
अर्थ भेल-'हम ओहि जलक अभ्यर्थना करैत छी जे अंतरिक्षक लेल हवि प्रदान करैत अछि तथा जतय हमर इंन्द्री तृप्त होइत अछि।'
महाभारतक शान्तिपर्व मे जलक महिमाक बखान करैत लिखल गेल अछि 'अद्भि: सर्वानि भूतानि जीवन्ति प्रभवन्ति च
तस्मात् सर्वेषु दानेषु पयोदानं विशिष्यते।
संसारक सभ प्राणीकें जलेसँ जीवन भेटैछ तें जलक दान सर्वश्रेष्ठ दान अछि।
जल नहि रहैत तँ एहि संसारक समस्त वैभव, सभ्यताक ओ संस्कृतिक कोना होइत विकास। कवि लिखैत छथि-
'सुखल निर्झरणी तीर पर
कोना जनमैत कोनो सभ्यता?
मेसोपोटिमिया,आर्य संस्कृति
के बुझैत सिंधु-घाटीक पता?'
जल जीवन,जल अछि जिनगी,
जाहि बेगर नहि जड़ि फुनगी।'
कवि कहैत छथि एहि पृथ्वीपर सभसँ दीन-हीन ओ अछि जकरा लग पीबाक लेल स्वच्छ जलक स्रोत नहि छैक।
' सकल संपदा रहितहुँ अछि ओ सभ सँ दीन,
जकरा घरमे जल नहि, जल सँ अछि जे हीन।'
धरतीपर जँ जल समाप्त भ' जायत तँ कतय सँ लायब जल।जलक जे संकट सगर संसारमे चलि रहल अछि।एक देश सँ दोसर देशक देशक मध्य विशेषकय नदीक जल बँटबाराक लेल अनेक विवाद चलि रहल अछि।अपना देशक मध्य सेहो एक राज्य सँ दोसर राज्यक मध्य जलकें ल' क' बहुत विवाद सभ चलि रहल अछि जेना कर्नाटक-तमिलनाडु क मध्य कावेरी नदीक जल विवाद,दिल्ली हरियाणाक मध्य सतलज-यमुना लिंक नदी जल विवाद।तहिना संसारक विभिन्न देशक मध्य जेना ब्रम्हपुत्र नदीक जल के ल'क' भारत -चीनक मध्य विवाद अछि तहिना भारत-पाकिस्तानक मध्य सिन्ध नदीक जलक विवाद।नील नदीक पानिक के ल'क' मिश्र आओर इथियोपिया के मध्य विवाद चलि रहल अछि। तहिना गाम -गाम ओ टोल-टोलमे जलकें ल'क' अनेक तरहक वाद-विवाद होइत रहल अछि। जलक संकट शनै:शनै: गंभीर रूप धारण क' रहल अछि।तें जल समस्यापर चिंतन आओर लेखन आवश्यक अछि।से एहु दृष्टिसँ ई खंडकाव्य बहुत महत्वपूर्ण अछि।धरतीपर पानि नहि रहत तँ की हैत?
'धरणी पर नहि होइत नीर
तँ पैंच दैत कोनो दोसर ग्रह?
मंगल सँ बालटी भरि-भरि क'
भरितहुं चौरी- चाँचर दह?'
पृथ्वीपर जतेक जल स्रोत उपलब्ध अछि ओहिमे सँ मात्र तीन प्रतिशत जल पीबा योग्य अछि सनतानवे प्रतिशत समुद्रक नोनगर पानि अछि जे जीव-जन्तु किन्नहुं नहि पीबि सकैछ।एखनहुँ मनुक्ख बर्खाक जलक उचित प्रबन्धन नहि क' सकल अछि। बर्षोक जल बेसी बहिक' समुद्रेमे मिलि जाइत अछि।आबो चेतु हे मनुक्ख! जलक अपव्यय सँ बाँचू।जलक संरक्षण करू।से सबटा उपाय एहि पोथी मे काव्यरूप मे कहल गेल अछि।जलक महिमा सँ कवि सभ रचना करैत रहलाह।कालिदास सन महान कविक विरह दूत छियनि मेघ। कवि लिखैत छथि
'जलवृष्टि लेल,स्वागत-कविताक
छै नाचि रहल अलंकार,छन्द,
सरोज सरोवर मे मुह फोलल
नद मे नीर चलल,स्वच्छन्द।
भरल,जलवृष्टि सँ, चौरी-चाँचर,
धान-पात हरिअर-कचोर,
जूही फूलल,गमकल बेली
हरियर कानन,नाचल मोर।'
दिन-दिन जलक स्रोत सुखा रहल अछि।भुमिगत जल विला रहल अछि।जे बहुत चिंताक बिषय अछि।कतबो शोध करब।कतबो टाका खर्च करब।जलक निर्माण कोनो प्रयोगशाला मे नहि क' सकब।जलक समुचित खर्च,उचित प्रबन्धने सँ जल संरक्षण भ' सकैत अछि।पोथी मे जल संरक्षणक बिषय मे सेहो बहुत सुझाव देल गेल अछि।कवि लिखैत छथि-
'प्रकृतिक देल अनमोल उपायन
बना सकैत नहि अछि मनुख
भू सँ इतर बूँदो नहि सुनल
घटैत पानि देखि होइत अछि दुख।'
आब वैज्ञानिक लोकनि बहुतरास एहन उपाय सुझौलनि अछि जाहि सँ बहुतरास जल बचाओल जा सकैत अछि।जेना कवि कहैत छथि जलक संचयक लेल ड्रीप विधिसँ कृषि कयल जाय।एहन फसल उपजायल जाय जाहिमे कम जलक खगता छै।जेना मड़ुआ,अल्हुआ,फुटि,मकै आदि।
वातावरणक प्रदुषण सँ धरती निरन्तर गर्म भ' रहल छथि।वैश्विक तापमान बढ़ि रहल अछि।जाहि लेल प्रदुषण कें कम करबे एकमात्र उपाय अछि।ताहि मलेल निरन्तर वृक्षारोपण करब सेहो बहुत जरूरी अछि।
मनुक्ख बुझैत अछि जलक सबटा स्रोत पर हमरेटा अधिकार अछि से बात नहि छैक जल सभ जीवक लेल अनिवार्य अछि।प्रकृति पदत्त ई जल सभक लेल सर्वसुलभ हुए तकर प्रयास चलैत रहय।सभ जलचर,थलचर ओ नभचर कें लेल आवश्यक छैक जल।आइ संसारमे नदी जलकें बान्ह-छेक के जे उपक्रम चलि रहल अछि।सभठाम नदी पर बान्ह बनाओल जा रहल अछि।अप्राकृतिक जल स्रोत उत्पन्न करबा लेल अनावश्यक नहर नालाक निर्माण कयल जा रहल अछि।ई सब प्रयोग सँ कोनो इलाका मे सुखार तं कोनो इलाका मे बाढ़ि देखबामे अबैत अछि।नदी कें अपना सहज रूप मे बहय देबय पड़त।मिथिलामे प्राचीन कहाबत छैक।पानि अपन पनिबट स्वयं बना लैत अछि।ओ कृत्रिम बान्ह जखन जल दबाबक कारण टुटैत अछि तँ जल प्रलय ल'क' अबैत अछि।२००८ ई.मे कुसहा(मधेपुरा जिला,बिहार )मे जे बान्ह टुटल से जल प्रलयक भयानक दृश्य उत्पन्न भेल से सर्वविदित अछि।कहल जाइत अछि टिहरीक बान्ह जँ कहियो टूटल तँ देशक राजधानी दिल्ली धरि जल प्रलयमे फँसि जायत।
जल पर सभजीव कें अधिकार छैक।सभ जन्तु ऋतुक अवसरपर जलक आश लगौने रहैत अछि।
देखल जाय एहि सम्बन्धमे कविक उद्गार-
'कवच घोंघमे तनने कछुआ
ताकि रहल अछि बरखा बाट
पानि बेगर छै घिग्घी लागल
दुबकल डोका पोखरिक घाट।'
आइ संसारक समक्ष जल संकटा सुरसा जकाँ मुहबौने ठाढ़ अछि।जँ समयपर नहि चेतब तँ जीवमात्रक जीवनपर संकटक पहाड़ टुटि पड़त।लोक पानिक एक-एक बुन्दक लेल तरसि जायत।जँ पानि नहि रहत तँ महानगरमे बनाओल ओ बहुमंजिला भवन कोन काजक?गाम मे अरजल खेतक कित्ता सबहक की होयत? तें मैथिली भाषामे लिखल ई खंडकाव्य मात्र मैथिलीए भाषाक लेल वा मिथिलावासीएक लेल उपयोगी नहि अछि।संसारक सभ मनुक्खक लेल एकटा जरूरी पोथी अछि।अनुदित हुए ई पोथी। जिनका भविष्यक चिंता छनि।जिनका एहि सुन्नर धरणीक प्रति मोह छनि।अबैवला पीढ़ीक लेल एकटा सुगम जीवन देबाक उत्तरदायित्व बुझै छथि।जलक एहि संकटपर सगर संसारमे बुझनूक व्यक्ति, पर्यावरविद् सबहक बीच बहस चलि रहल अछि।किछु सुगम उपायो सब आबि रहल अछि।एहनसन वातावरणमे एहि पोथीक महत्ता आर बढ़ि जाइत अछि।एखनो नहि बितल अछि बेर /अवसर ई भेटत नहि फेर ।
तें चलैत रहबाक चाही की?
चल बचत लेल जन-अभियान /नहि छुटय जल बिनु ककरो प्राण ।
अंतमे हम एतबे कहब जे कविताप्रेमी, पर्यावरणप्रेमी साहित्य- संस्कृति प्रेमी लोकनिक लेल बहुत उत्तम पोथी अछि।जलक
सम्बन्ध मे ज्ञानसँ भरल अछि पोथी।छंदबद्ध लिखल गेल अछि।भाषा सजह अछि।कतहुँ-कतहुँ संस्कृताह शब्दक प्रयोग पढ़ै
मे कने दिक करैत छैक।पोथीक शीर्षक बहुत आकर्षक छैक मुदा उप शीर्षक साहित्यिक नहि भ'क' लगैत छैक जेना भूगोलक पोथीक शीर्षक होइ।एहिमे कने विचार आवश्यक छलैक।कतहुँ-कतहुँ पुनरूक्ति दोष सेहो छैक।कोनो एक बिषयपर बिशेषक'जखन पूरा पोथी लिखबै तँ एहन समस्या सोझाँ एबे करत।हम श्री राजकिशोर बाबूक प्रयासक सराहना करैत छियनि।पाठक सब पोथी पढ़थि। बहुत रोचक लगतनि। ज्ञानक तँ भंडार अछि ई पोथी। बहुत-बहुत बधाइ।
पोथी : जँ जग जल नहि होइत
कवि: राज किशोर मिश्र
विधा: खंडकाव्य
प्रकाशक:स्वयं कवि
दाम: ₹ ३००/

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