Wednesday, October 23, 2019

Maithili Book Critics by Dilip Kumar Jha

                                                                 धाराक विरुद्ध - विजेता चौधरी

एहि संग्रहमे कुल सनतावन गोट कविता अछि।कविता पढब नीक लगैत अछि ,से पोथी पढ़ैतकाल पुरा आनंद भेटल अछि। पोथीमे दू कालखंडक कविता बुझाइत अछि। एकटा कालखंड छल ओ जहिया कवयित्री माओवादी आन्दोलन सँ प्रभावित भ' मात्र किछु कविता लिखलनि मुदा किछुए समयक पछाति कम्युनिस्ट आन्दोलनक नेतासभक वास्तविकतासँ सेहो हिनकर सामना भ' गेलनि हिनक कविताक दिशा विचारधाराक कठमुल्लापन सँ बाहर कविक जे अपन नीजी अकाश होइत छैक ओहिमे विचरण करय लागल। तकर पछाति एतेक सुन्दर - सुन्दर ई कविता लिखने छथि जे सहजों मोन के मोहि लैत अछि । किछु कविता बेर- बेर पढ़बापर विवश करैत अछि। जे कवयित्रीक संग्रहक आरंभ कविताक बहन्ने आगि नेशबाक सरंजामक ओरियौन मे लागल रहैत छथि ओएह कवयित्री कनियें आगू बढ़लापर एकटा कविता लिखैत छथि " जीबैत शाली" ई कविता दुनियां अनेक देशक साम्यवादी दलक नेताक हाथमे गेल सत्ताक जे हस्र भेलैक अछि सएह हस्र नेपालक राजनेता सभ सत्ता प्राप्तिक पछाति केलनि से इंगित करैत अछि।।हमरा मोन पड़िये जाइये रोमानियाक शासक चाउसेस्कू जे साम्यवादी सरकारक नामपर की सत्ता ताण्डब केने छल आ जनता ओकर कोनरुपे खबरि लेलकै।अपन जीबैत शाली कवितामे कवयित्री कहैत छथि, जखन आमलोक,जे प्राणपण सँ एहि आन्दोलन के सत्ताक शीर्षपर पहुंचौलक आ पछाति जखन बेर बेगरतामे ओहि नेता सभके हेरलक त'कविता कहैत अछि,"जाह भेटतह करोड़ोक आलीशान लाल बंगलामे
नहि त' चढ़ल भेटतह माओक झंडा फहरबैत /मुस्तांगी लाल भी आइ पी कारमे
तोहर ढोंगी साम्यवादी दूत सभ"।
एहि प्रकारक कविताक पछाति अनेक रंगक कविताक स्वरसभ आयल अछि चाहे ओ नेपालमे बेरोजगाड़ीक हो वा विदेश पलायनक त्रासदी अपन समाजक समस्या सभकेँ कवयित्री खोज खबरि यखैत छथि मुदा हिनक कविताक मूल स्वर अछि प्रेम।प्रेम कविता लिखबाकाल ई प्रेमक बिभिन्न छबि छटापर कविता सभ लिखलनि अछि जे पाठकमे एकटा रोमांच उत्पन्न करैत अछि। हिनक ई कवितासभ पढलाक बाद मानसमे एकटा अलग संसार बनैत छै ओ छैक प्रेमक संसार जे जीवनकें पूर्णता दिस ल' जाइत छैक। एकटा कवितामे सुखायल गुलाबक पत्ती सँ एकाएक झंकृत भ' उठैत छनि" हृदयमे गुम्फित प्रेमक सूफी रोमांच। एकटा कविता अछि 'ओझराहटि' एहि कवितामे नायिका भोगि लेब' चाहैत अछि प्रेमरस मे अभिसिक्त जीवनक एक एक प'ल। कवितामे राधा कृष्ण बनि प्रेमक परिकल्पना अछि मुदा एहि कवितामे विश्वामित्र आ मेनका के आनि एकटा स्वादिष्ट खीरमे जेना आंकर पड़ि गेलसन बुझायल। एकटा सुन्दर कविता आर अछि प्रथम मिलन जाहिमे अभिसारक अनेक रुपक वर्णन करैत,रुप रस आ गंधक स्पर्श सँ प्रेमरसमे पाठक कें सराबोर क' देने छथि।प्रेमरसक पूरा आनन्द दैत अनेक कवितासभ अछि।तेहने एकटा कविता अछि माटिक गमक। प्रेमक कविता हो आ बसंत नहि हो से कोना हैत ,ऋतु उत्सवक एकटा सुन्दर बानगी अछि" 'भेलैए बसन्तक आगमन'।'प्रणय निवेदन'कविता त' शकुन्तला आ दुष्यन्तक प्रेम मोन पाड़ि देलक ई कविता पाठक कें प्रेमक उद्दाम उल्लास आनंदक क्षण समर्पित करैत अछि,अद्भुत। अनेक आर प्रेम कवितासभ अछि मुदा एतय लिखक एकटा सीमा अछि। हं कवयित्री भुकम्प त्रासद क्षणमे सेहो सेहो प्रेमरस नहि बिसरली अछि।चिंता छनि प्रेमक स्मृति स्थलक।वाह!
मधेश आन्दोलनपर कविता अछि। हंसीक विलोपनपर कविता अछि।स्त्रीक स्थान एवं समाजमे भूमिकापर कविता अछि।वि सं २०७२ मे आयल भयानक भुकम्पक त्रासद क्षणक मार्मिक चित्रण अछि। आर अनेक कविता अछि।हमरा कवितास बहुत नीक लागल अछि।
मनुक्खक जीवनक इतिहास छैक प्रेम आ संघर्षक इतिहास ।समाजमे ठाढ़ कयल गेल अनेक प्रकारक मानवीय असमानता आ विद्रुपता सँ, प्राकृतिक दुख दर्द सँ सभदिन मनुक्ख लड़ैत रहल अछि। कविताअदौ सं लड़ैत रहल अछि,अंत धरि लड़त।आ सागरमाथाक सभसँ उँचका चोटीपर चढत।हमरो अभिलाषा अछि हमर ई कवयित्री एवरेस्टपर चढ़ि मैथिली कविताक ध्वजारोहण करथि।जाहि सँ पसरि जाय प्रेम सगरे संसारमे।घृणाक बिया सुखा जाय निरबीज भ' जाय।हमर अनेक शुभकामना अछि एहि कवयित्री कें स्वागत अछि कविता संग्रहक।

Maithili Book Critics by Dilip Kumar Jha

                                              ..…...............गुण-कथा : पाठकीय विवेचन......................
डा. शिवशंकर श्रीनिवास मैथिलीक अति प्रतिष्ठित कथाकार छथि।अपना कथाक कारणें मिथिला आ मिथिला क्षेत्र सँ बाहरो अर्चित- चर्चित छथि। हिनक कथा ने फटाफट समाचार अछि ने एलोपैथिक दवाई। हिनक कथामे समाजक छोट -छोट घटनाक बहुत तार्किक आ मार्मिक ढंग सँ विश्लेषण कयल जाइत अछि।प्राय: कथा अपन नव आयाम प्रस्तुत करैत अछि। हिनक कथा एलोपैथिक दवाई जकाँ तत्क्षण रोगक शमन वा दर्द निवारण करबाक उपाय नहि करैत अछि,ने कोनो साइड इफेक्टक खतरा। हिनक कथा केँ हम शुद्ध आयुर्वेदिक औषधि मानैत छी जे सिर्फ इलाज नहि रोगक निदान करैत अछि। कतहुं - कतहुं हम पढ़ैत रहैत छी जे श्रीनिवासजी गामक कथाकार छथि हम एहि बात सँ सहमति नहि रखैत छी।ओ गाममे रहैत छथि तेँ ओ गामक कथाकार भ' गेलाह! ओ मिथिलाक कथाकार छथि, ओ भारतक कथाकार छथि,ओ अखिल विश्वक कथाकार छथि से ओ अपन नीजी वैशिषट्यक संग छथि। वैश्विक जनतब आ ओकर विश्लेषणक संग सभठाम कथामे उपस्थित छथि।ताहिलेल हिनक कथा केँ पढ़' पड़त,गुण' पड़त। सम्प्रति हम गप करय चाहैत छी हिनक चारिम कथा संग्रह " गुण कथा क प्रसंग।
एहि संग्रहक पहिल कथा अछि साहुकारी। बजारवाद कोना सगरे संसारमे पयर पसारि लेलक अछि तकर कथा अछि।टाकाक सोझां व्यक्तिक रुचि, अपना कार्यसँ संतोष ,जीवन मूल्य जेना किछु रहिये ने गेल हो ।प्रस्तुत कथामे गोपीनाथ एकटा शिक्षक छथि आ कहानीकार सेहो।ओ अभावमे रहितो अपना काज सँ संन्तुष्ट छथि मुदा हुनक चारुकातक वातावरण हुनक महत्वक आकलन टाकाक आधारपर करैत अछि।चाहे हुनक सहपाठी अमरनाथ होथि वा हुनक पुत्र छोटे वा पत्नीए किये ने होथि।सभ कियो हिनक कथा के बाजार मूल्यपर तौलबाक ताक' मे लागल रहैत छथि। हिनक कथाक बजारक अतिरिक्त किछु सामाजिक मूल्य नहिअछि। हिनक कथा सभमे मानवीय मूल्यक अवलोकनक फुरसति ककरा छैक?महानगरमे गामक गप शप केँ मीर्च - मशाला बुझल जाइछ। बजारवादक प्रभाव नेना सभपर सेहो बहुत नीक जेकाँ पड़ि रहल छैक।सभ प्रोफेशनल बनय चाहैत अछि ,उद्देश्य टाका कमेनाय।जं कियो देश सेवा करय चाहैत अछि ,ओ प्रहसनक बिषय भ' जाइत अछि।कतेक खराप परस्थिति उत्पन्न भ' गेल अछि से ई कथा स्पष्ट रुपें बाजि रहल अछि। मुदा एकटा बात एतेक भेलाक बादो गोपीनाथसन मास्टरो लागल छथिये,भले कियो मानय वा नहि मानय।
संग्रहक दोसर कथा अछि सहरजमीन, एहि कथाक कथानायक छथि बलदेव जे समाजमे उँच्च जातिक जमिंदार सँ लड़ैत छथि मुदा ओकर दबंगता सँ पीड़ित भ' गाम छोड़ि चलि छाइत छथि।परदेशमे जतय रहैत छथि ओतय अपन गौंआ -घरुआ जे भेटैत छनि सभके यथासंभव मदति करैत छथि। गामक एकटा समांग सोहन जे हुनके लग काज करैत अछि ओ हिनका गाम एबाक लेल बहुत उत्प्रेरित करैत अछि ओ कहैत अछि बड़का जातिक उपर सँ नीचाँ धरि राजपाट खतम भ' गेलै ।गाम बदलि गेलै चलि क' देखहक ।बलदेव चालीस बर्खपर गाम अबैत छथि मुदा गाममे जे पुरनका बात रहै,अपनैती रहय से आब कतहु नहि भेटलनि।अपनत्वक नामपर ओएह गोसाइं पोखरि आ पाकरिक गाछ भेटै छनि। अपने समांग आनंद चौधरी मंत्री बनि जाइत छथि मुदा हुनकर रहन- सहन ,हाव - भाव सँ सभटा ओहने जेहन पुरना जमिंदार सभक रहैत छलै। समाजमे सत्ताक हस्तान्तरण अवश्य भेलैक ।पहिने पंचायत सं संसद धरि सभठां उँच जातिक कब्जा छलैक जे आब पिछड़ा ,दलित लग आबि गेलै मुदा लोक ओहिना अछि।सत्तामे नवब्राह्मणवादक आगमनक अतिरिक्त आर किछु नहि भेलै से ई कथा निर्णायक प्रश्न ठाढ़ करैये।
एहि संग्रहक तेसर कथा थिक सतभैंया । जाति - पातिक समाजमे दुरावस्थाक कथा थिक सतभैंया। समाजमे एखनो जाति पाति छैके मुदा कालक्रमेण समाज बहुत आगु बढ़ल अछि। विनोदक पढ़ल लिखल बेटी अपर्णा अपना मोन सँ अपन विवाह एकटा नीक कलाकार,नीक मनुक्ख जे ओकरा पसिन करैत छैक तकरा सँ करबाक निर्णय लैत अछि।मुदा छैक ओ मुसलमान। विनोद अन्तर्द्वन्द्व मे पड़ल रहैत छथि मुदा समूचा परिवार कोनो सामाजिक रीति रेवाज के बिनु परबाहि कयने बेटीक खुशीक चिंता करैत अछि । ताहि मे सभसँ बढ़ि चढ़ि क' भाग लतै छथि विनोदक माय।ओ कहैत छथि एहि जाति धर्मक हमहूँ मारल छी। हमर सक्क चलय त' ई जाति-पाति- धर्म के चुल्हि मे डिहि दितियै।मात्र मनुक्ख रहितै आर रहितै ओकर गुण। जाति पाति राजनीतिक आ समाजिक मंचपर एखनो अकादारुण जकाँ ठाढ़ अछि।ई कथा समाजक समक्ष एकटा गंभीर बहस त' अबस्से आरंभ करैत अछि।
एकटा महत्वपूर्णकथा अछि एहि पोथीक शीर्षक कथा ' गुणकथा' ।गुणकथा मनुक्खताक गुणक कथा अछि।भीड़ मे रहैत आइ मनुक्ख असगर अछि।अपन झूठक अभिमान आ देखाबाक कारण लोक मनुक्खता बिसरि गेल।एहि कथाक अंजनी देवी जे गाम सँ जयपुर गेलीह त' बेटाक आलीशान बंगला ,सुख सुविधा अछैतो ओ गरीब ,मजदूर लोकक बस्तीमे जाक' बच्चा सभके आखर सिखब' लगली ,ओकरा सभके मिथिला चित्रकलाक प्रशिक्षण सेहो देब'लगली।ओहि सामान्यजनक बीच काज क'क' अंजनी देवी कें अपार सुखक प्राप्ति होइन मुदा अपना के आधुनिक कहयबला बेटा पुतहु के अंजनी देबीक काज सँ मानहानि बुझाय लगलनि।अंजनी देवी गामो मे एहने सामाजिक काजमे लागल रहैत छलि।तेँ अंजनी देवी अपना जीवन सँ प्रसन्न छलि।हिनक सेवाभावनाक कारण गरीब लोकक ई बड़ी माँ भ' गेल छलि मुदा चिंताक बात ई जे हिनक पोता जे अमेरिकामे नामी कंपनीमे काज करैत अछि अपन दादीक कलाप्रेम , शिक्षा आ समाजसेवा सँ ओतेक प्रभावित नहि अछि।ओ हुनक यशक मार्केटिंग करबाक सोचैत अछि।।कथामे मानवीय मूल्यक क्षरण आ निकट सँ निकट सम्बन्धक पहिचान बाजारमूल्पर आँकल जयबाक बात एहि कथामे आयल अछि।संगहि कथामे मातृभाषा प्रेम सेहो यत्र - तत्र झलकैत अछि।
"रूमाल" दाम्पत्य जीवनक विलक्षण कथा अछि। बड़ा साहेब,विमलचन्द्र ठाकुर,आ बूढ़ा-बूढ़ीक जोड़ीक तीनटा दम्पतिक कथा अछि।एकटा विलक्षण बिम्ब अछि एहि कथामे 'मात्र कोनो बाँसक खुट्टाक सोंङर पर कोनो टाट ठाढ़ देखलिए? ओहिमे देखू जँ टाट के हटा लेबै त' खुट्टा खसि पड़त आ जँ खुट्टा के हटा लेबै त' टाट खसि पड़त मुदा दुनू दुनू के ठाढ़ केने रहैए'।ई थिक दाम्पत्य जीवनक बेगरता।आपसी प्रेम आ सहयोग सँ चलैत अछि पारिवारिक सम्बन्ध।
एकटा कथा अछि दबाइ।एकटा बंगालिन जे प्रेम विवाह क' के सुखदेवा संगे कलकत्ता सँ आबि गेल।सुखदेब ओकरा आ ओकरा मामीक संग छल केलकै ओ कहलकै जे ओ बाभन अछि मुदा एतय एलाक बाद पता चललै जे ओ दुसाध अछि। बंगालिन के अपना ल' क' कोनो दुख नहि छैक मुदा ओकर मामा -मामी के ई बड़ ठकान ठकलकै से ओकरा बड़ तकलिफ छै।।ई विश्वास तोड़ल जयबाक कथा अछि।एहि कथाक एकटा विलक्षण संवाद जे डा. शिवशंकर श्रीनिवासक नीजी विशेषता छनि अन्यत्र भेटब दुर्लभ ।देखल जाय,"भाउज- दिअरक पहिले भेंट मे झगड़ा! हमर गपपर फुटि क' हँसलि, से लागल जेना फुलही थारी पर दू- चारिटा अठन्नी गुड़कि गेल हो। सुखदेबाक माय सेहो हँसलि रहय।
'उग्रह' कथा आजुक समयक यथार्थ अछि ।आइ लोक अपन स्वार्थ सिद्धिक लेल नैतिक ,अनैतिक कोनो पड़बाह नै करैये । कहनो हथकंडा अपनाबै सँ परहेज,बनहेज नहि ,से जँ कियो निश्छल आ निर्मल अछि त' सहजे कियो ओकरा नहि मानैत छैक।नहि मानैत छैक ताहि लेल कोनो बात ने मुदा ओहि व्यक्तिक नीजी जीवनक सेहो बिनु कोनो परबाहि कयने जँ कोनो प्रकार लाभ कोनो व्यक्ति सँ होइबला अछि त' लाभ लेबाक लेल ओहि व्यक्ति केँ कोन रुप सँ बेवहार कयल जाइछ से एहि कथामे आयल अछि। कथानायक जे स्वयं कथाकार छथि जिनक मित्र अपनहि जिलाक कलक्टर छथिन ओहो कथाकार छथि।दुनू साहित्यकारक मध्य आपकताक बात पसरि गेल । जकरा ककरो लगलै जे हिनका माध्यम सँ कलक्टर सँ हमर काज सिद्ध भ' सकैत अछि से हिनका पाछु लागि गेल।कथानायक त' एकदिन बहुत चिंतित भ' गेल छलाह मुदा रक्ष रहलै विहाने कलक्टर साहेबक बदली दोसरठाम भ' गेलनि। ई गौरवबोध ककरो नहि भेलै जे हमर समाजक एक व्यक्ति एतेक पैघ कथाकार छथि! आ ईहो महत्व नहि बुझलक जे कलक्टर होइतो कलक्टर साहेब अपन साहित्यकारक धर्म के निमाहि रहलाह अछि।आजुक ई सामाजिक सत्य अछि।अहाँ देशक पैघ वैज्ञानिक छी,अहाँ बहुत नीक शिक्षक छी,अहाँ बहुत पैघ साहित्यकार छी।लोकक लेखें धनसन।हँ,अहाँ ककरो बेटा के चाकरी लगा सकैत छी। अहां अपनह रौबदाव सँ ककरो अनर्गल लाभ पहुंचा सकैत छी।नहि त' दसटा लफंगा सभकें संझुका खर्चा द' सकै छी ।त' लिअ ने जे छी से अहीं।
'रसक अर्थ' ई दूटा माम भागिनक कथा अछि।मामा कालीचरण आ भागिन गिरधर। गिरधर माय के फोन करै छथि जे माय हम गाम आबि रहल छी।माय के बहुत खुशी होइत छनि मुदा फेर दोसरे क्षण ओ कहैत छथि माय हम सभदिनक लेल गामे रहबाक लेल आबि रहल छी । बादक गप माय केँ बड़ अनसोंहाँत लगैत छनि।गिरधर गाम रहि क' की करता? हुनका मोन पड़ि जाइत छथिन कालीचरण अपन भाय जे सुन्दर नौकरी छोड़ि क' गाम रहबाक लेल एला खेतीबारी करय लगलाह,किछु दिन बनिज सेहो कयलनि मुदा सफलता नै भेटलनि ।बहुतरास ऋण पैंच क'क' फेर शहर घुरि गेलाह।मुदा गिरधरक पिता एहि सँ प्रसन्न छलाह जे जँ गिरधर सन योग्य व्यक्ति गाममे रहय लगताह त' गामट काया पलट भ' जायत। कहु जँ सभक माय एहिना सोचतै जे हमर बेटा गाम किये रहत? तखन गामक की हेतै?गाम आ शहरक संतुलन बनक चाही। लेखकक ईशारा साफ छनि। गिरधर त' आबि रहलाह अछि से ठीके मुदा भारत सरकार जे हुनका गामे लग वैज्ञानिक अनुसंधान केन्द्र खोललक अछि ओकर मुख्य वैज्ञानिक बनि क' आबि रहलाह अछि‌।वैज्ञानिक संगे चाही किसान,मजदूर,शिक्षक,डाक्टर आर बहुतो पेशाजन्य लोक से गाम के बसेला सँ हेतै उजारला सँ नहि।
मिथिलामे वैज्ञानिक अनुसंधान केन्द्रक स्थापना कथाक एकटा दूरदृष्टि पथ सेहो देखबैत अछि।
जीवनमे राग आ अनुरागक बड़ महत्व होइत छैक। एहि संग्रहमे एकटा कथा छैक अनुराग।अनुराग ओकरे प्रति उमरैत छैक जकरा लेल कोनो व्यक्तिक मोनमे अथाह प्रेम रहैत छैक। ओहि व्यक्ति सं कतेक प्रेम करैत अछि से ओ अपनहुं नहि बुझैत अछि।अनुराग कथामे नरेन्द्रक पीसी कें नरेन्द्र सँ बड़ प्रेम छनि।नेनपने सँ नरेन्द्र के बड़ मानथि पीसी ।जखने नरेन्द्र पीसी सँ भेट करय जाथि पीसीक अनुराग छिलक' लागय।पीसी भातिजक प्रेम के देखि क' कियो ई अनुमान लगा सकैत छल।पीसी बड सुन्दर लिखिया करथि।सभटा चित्र लिखि- लिखि क' रखने जाथि।एक दिन नरेन्द्र जे देखलनि त' आश्चर्यचकित भ' गेलाह! केहन -केहन अवधारणा हिनका मोनमे उपजल छनि।अद्भुत! पीसी ई सभटा चित्र ओरिया क' राखू एकरा हम किताब छपा देब ।जाहि सँ पुरा दुनियांक लोक अहाँक कला के देखि सकत संगहि एकटा मिथिलाक सामान्य नारीक सोच सं सेहो अवगत भ' सकत। युवापनक ई गप नरेन्द्र गिरहस्थ जीवनमे आबि बिसरि गेलाह।मुदा पीसी त' एकटा कलाकार,सृजनधर्मी छलीह।सृजनकर्ताकें जकरापर मोन मानतै छैक तकरे ओ अपन सर्वस्व न्योछाबर क' सकैये।से पीसी के अपन भरल पुरल परिवार अछैत अपन जीवनक सभसं अमूल्य वस्तु नरेन्द्र के देलखिन एहि विश्वासक संग जे ओ हमर सृजन के महत्व देत।बिरहोबांट नहि होब' देत।एकटा लेखक,कवि वा कलाकारक मोल एहने कोनो पारखी जानि सकैये।
'आयास' कथा मे गाममे नेना सभक कमी के रेखांकित कयल गेल अछि,विशेष क' लड़की सभक।भारतमे स्त्री - पुरुष लिंगानुपात बहुत चिंताजनक स्थितिमे छैक से मिथिलामे सेहो।कुमारी भोजन लेल गाममे कुमारि कन्या भेटब दुरूह भ' गेल अछि। ई कथा गाम सं लोकक पलायनक दुरावस्थाक चित्रण करैत अछि।हिनक कथामे गामक बहुतरास दृश्य जे चिंतित करैत छैक मुदा लेखक एक दूटा एहन पात्रक सृजन अवश्य करैत छथि जे गाम के ओ नहि बुड़' देत चाहे ओ भोलानाथ ठाकुर होथि,लाल यादव होथि वा अनुराधा । गाम के हर हालति मे बचेनाय सेहो कथाकारक एकटा आन्दोलन छनि से हमरा फरिछा क' बुझय पड़त।
'पितामही' कथा आजुक नगरीय जीवनमे जे पारिवारिक टुटन अछि,घुटन अछि तकर कथा अछि।पोता - पोती के बाबा -बाबी बड़ प्रिय से सभदिना। असली दुलार त' लोक अपन पितामही- पितामहे सँ पबैत अछि। से पोती स्वातीक व्यथा सुनि विश्वेश्वरजी आ हुनक पत्नी के बड़ भावुक क' दैत छनि।से कथा पढ़निहार के सेहो।ओह! की भावुकताक कथा अछि ई। एहन घटना अपना समाजमे घनोरो होइत रहैत अछि।एहि कथा के कहबाक जे शैली , शब्दक जे गढ़नि आ वाक्य विन्यासक कमाल हमरा मोन के छहोछित्त क' देलक।एहि कथा के पढलाक बाद बस आर किछु नहि !लेखकक कलमक नीचां हम नतसिर भ' जाइत अछि।
धार नहि मजरलै एहि संग्रहक एकटा महत्वपूर्ण कथा अछि।ई रुपनी नामक एकटा विधवाक कथा थिक। एकटा एहन स्त्रीक कथा जे कमे उमेरमे विधवा भ' जाइत अछि।ओकरा एकटा संतान सेहो होइछ ,तैयो दोसर विवाहमे कोनो रुकावट नहि छलै।माय -बाप विवाह करेबाक लेल तैयार छलै मुदा अपना सासु ससुर के हालति देखि नै केलक।लागि गेल सासु ससुर आ बेटाक लालन - पालन मे।एकटा समय एहनो एलै जे अधवयसमे जखन बेटा ओकर कोनो छौंड़ीक संग भागि गेलै।ओ असकरुआ भ' गेल।असकरुआपनक अवसाद घेरि लेलकै।ओहि समयमे ओकरा भेटै छथि विराटबाबू सन पुरुख जे जिनक आकर्षण सं रुपनीक मोनमे वैधव्यक पछाति पहिलबेर हलचल मच' लगलै । पाठक कें लगैत छैक जे फेर सँ रुपनीक नव जीवन आरंभ हेतै से नहि भेलै आ भेबो केलै। रुपनी एकटा गाय आ बाछीक वात्सल्यमे फेर रमि गेल।धार नहि मजरलै। ई कथा एकटा अन्तर्द्वन्द्व उत्पन्न करैछ। रुपनी एकटा नव जीवन आरंभ करैत विराट बाबूक संग से सभटा तैयारी भेलाक बाद नहि भ' सकलै। मुदा भ' सकैयै ओकर आगांक जीवन आओर खराप भ' जइतै।तखन जे निर्णय लेलनि से नीके लेलनि।
मनुक्ख नदी थिक भारतीय समाजक बदलैत परिवेशक कथा थिक। समाज जे सय बर्ख पहिने छल से आब नहि अछि।भेष भूसा,खान पीन सँ ल' क' सभ किछु बदलि गेलैक अछि। एक संस्कृति सँ दोसर संस्कृति मे मिश्रण पुरान पीढ़ी कें असहज करैत छैक।मुदा वरिष्ठ लोकनि कें श्यामजी जकाँ पहाड़ नहि नदी बनय पड़तनि, कारण मनुक्ख नदी थिक।सभ नदीक अपन बाट होइछ। सभके अपना बाटे बहबाक आजादी देबहि पड़तै।
तखने नवपीढ़ी आ पुरान पीढ़ीक अंतर पाटल जा सकत। कथा नीक अछि।
एहि संग्रहक तेरहो कथा पढलाक बाद पाठकीय दृष्टिकोण सँ हम ई मजगुती सँ कहि पाबि रहल छी जे ' गुणकथा ' समकालीन मैथिली कथाक प्रतिनिधि पोथी अछि।हमरा लग एहन उँच्च कोटि कथाकार छथि ,तकर हमरा गौरव अछि।आइ मैथिली कथा भारतीय कथा साहित्यक समक्ष एकटा महत्वपूर्ण स्थान रखैत अछि ताहिमे डा.शिवशंकर श्रीनिवास बहुत महत्वपूर्ण छथि। हिनक कथा गढ़बाक अपन नीजी शिल्प आ शैली छनि। गुण- कथा मैथिली कथाक महत्वपूर्ण संग्रह अछि।

Maithili Book Critics by Dilip Kumar Jha

                                                            बिछड़ल कोनो पिरित जकाँ- विद्यानन्द झा                

जीवन खाली आमे जामुन टा नहि होइछ,से साँचे जीवन खाली आमे जामुन जीवन नहि थिक। अपना परिवेशमे घटित अनेक घटना- परिघटना के अखियास करब ओकर नीक स्मृति कें सहेजब आ जे गप नीक बेजाय जे बुझाय ताहिपर बेरपर बाजब से थिक जीवन।हम गप क' रहलहुँ अछि प्रिय कवि श्री विद्यनन्द झाजीक टटका कविता संग्रह "बिछड़ल कोनो पिरीत जकाँ" के प्रसंग। विद्यानन्द झा मैथिलीक अपना शैलीक बेछप कवि छथि,हमरा बहुतो कारण सँ विद्यानन्द झा पसिन छथि जाहिमे हिनक अपादमस्तक मैथिलपन सभसँ बेसी घिचैये हमरा।कोनो लोक भाषाक सर्जकक सभसँ महत्वपूर्ण गहनो त' ओएह छियै। तेँ ने जनभाषाक सुच्चा कवि छथि बिनु कोनो राष्ट्रीय,अन्तर्राष्ट्रीय बनबाक सेहन्ता के। बाना धरबाक प्रयास सँ परहेज हिनक एकटा फराक विशेषता छनि से कवियेके नहि कवितो के छनि से हमरा पसिनक एकटा फराक कारण अछि। तेँ ने अपन भाषा के वितान पैघ करैत लिखैत छथि-गुगलक पार/ मोन मे बसल/ जीहपर लपपाइत सूच्चा लोकभाषा थिक हमर भाषा। जखन कवि कोनो शब्द बिसरैत छथि त' शब्दकोशक सहायता नहि अपना माय सँ पुछैत छथि ओ शब्द जे बनैत अछि कविताक भाषा। अनेक कविता जे जनाभिमुख भ' लोकक संकट आ लोक समस्याक बात अपना शब्द आ लय के माध्यम सँ संवाद स्थापित करैत अछि। भारतमे किसान आ किसानीक सीदित हालति सँ कवि अपन अनेक कवितामे मुठभेर करैत रहलाह अछि सभटा वस्तुक मूल्य जखन बजारक अधीन तखन कृषि उत्पादनक मूल्य किसानक हाथ कियेक नहि? समर्थन मूल्यपर कहिया धरि खेपता किसान? दीदारगंजक यक्षी कविता हमरा बेस आकर्षित कयलक अछि।सुन्दरताक मूर्ति केँ स्त्रीक अधिकार सँ जोड़नाय हिनकेसन कवि क' सकैत अछि।
ठाढ़ छथि मौर्यकाल सँ आइ धरि
हाथ मे च'र नेने
अपरुप सुन्नरि
पटना संग्राहलयक दीदारगंजक यक्षी ।
स्मृतिशेषक अनेक कविता छनि से मैथिलीमे एखनुक समयमे हेबे करत।कारण स्पष्ट अछि मिथिलाकअपन नीजी पहिचान (वस्तु ,विचारक ) दुनू स्तरपर दिनानुदिन क्षरण भ' रहल अछि ,तेँ कवि केँ लबान मोन पड़ि रहलनि अछि ,ओकरा संग नबका चूड़ाक सुगन्धि मोन पड़ब उचिते अछि।
मुइल लोक सँ कवि सेहो संवाद स्थापित कयलनि बहुतरास बात साझी कयलनि अछि मुदा एकटा प्रश्नत' तखन उठैये जखन अपन अग्रज कवि कुलाबाबू सँ पुछैत छथि , कतय पहुंचल अछि मैथिली कविता बीस साल मे?
सम्प्रति मिथिला बाढ़िक बिभिषीका सँ ग्रसित अछि एहेने परिप्रेक्ष्यमे लिखल हिनक कविता 'कृष्णजन्म' आकर्षित करैत अछि--
कोना बाँचत शिशु हमर
रोग आ व्याधि सँ
बाढ़िक प्रकोप सँ
राजाक दुरभि चक्र सँ
चिंतित देवकी।
कवि के मिथिलाक हर वस्तुक चिन्ता छनि, मिथिलाक नीजी पहिचानक उद्विगनता छनि। चाहे एतुका भाषा हो वा मिथिलाक लोकक प्रवासमे केस पाकब हो।परमानपुरबालीक पीड़ा केँ कोना बेकछाक' देखलनि अछि।कवि जीवनानन्द दास केँ टहलाब' चाहैत छथि मिथिला ।देखाब' चाहैत छथि एतुका सुन्दरता,जे आब बेसी स्मृति शेषमे जिनिहारक भूमि रहि गेल अछि तथापि कविकें अपना भूमिक प्रति आस्था आ विश्वास हमरा मजगुत करैया।हिनक ई संग्रह समकालीन मैथिली कवितामे हलचल अबस्स उत्पन्न करत।हँ ,हिनक कवितापर एकटा गप।जँ आम पाठक मोजर दैत हेथिन तखन ।हिनक किछु कवितापर दुर्वोध हेबाक आरोप लगैत छनि से पछिला संग्रहमे हमरो लागल छल जे एहि संग्रहमे बहुत कम लागल अछि ,तथापि किछु हमरो अनुभव भेल अछि।समवेत कविता खूब निमन आ निस्सन अछि।शुभकामना अग्रज।एहिना चलैत रहय ई यात्रा।


Saturday, October 5, 2019

Maithili Book Critics by Dilip Kumar Jha

                                                                           अकाल में उत्सव- पंकज सुबीर

कएक बर्खक पछाति हिन्दीक कोनो नव उपन्यास पढ़बाक अवसर भेटल।उपन्यास अछि "अकाल में उत्सव",लेखक छथि श्री पंकज सुबीर।शिवना पेपर बैक्स जिला सीहोर,म.प्र सँ प्रकाशित भारतीय किसानक स्थिति परिस्थितिपर विचार करैत बहुत विलक्षण उपन्यास अछि। उपन्यास पढ़ैतकाल सहजहि कालजयी कृति गोदानक चित्र मानसमे नाच' लगैत अछि।गोदान जे स्वतंत्रता सँ पूर्ब१९३६ मे लिखल गेल आ प्रस्तुत उपन्यास२०१६ मे आयल अछि।दूनू फराक भावभूमिमे लिखल गेल अछि मुदा गोदानक होरी आ अकाल में उत्सवक राम प्रसादक स्थितिमे कोनो विशेष अन्तर नहि भेल अछि। होरीक जीवन संघर्ष करैत ,कष्ट भोगैत समाप्त भ' जाइत अछि मुदा राम प्रसाद के त' आत्महत्या करय पड़ैत छैक। की भेलै आजाद भेला सँ किसान के? ककरा लेल क' रहल अछि एतेक प्राणोत्सर्ग? सरकार आ समाजक लेल धनसनि।संवेदन शून्यताक स्थिति त' इएह अछि जे अकाल पड़ौ वा अबौ बाढ़ि उत्सवधर्मी समाजकें एहि सँ कोन फर्क !अन्न नै भारतमे उपजतै त' दोसर देश सँ आबि जेतै मुदा बात एतेक आसान नहि छैक।जेँ किसान आ किसानी एखनधरि बाँचल अछि, ओहिपर एतेक नितराहटि अछि। भारत सँ भारतीय पद्धतिक किसानीक समाप्तिक संग भारतीय संस्कार आ संस्कृतिक अन्तिम अध्याय लिखबामे बेसी समय नहि लागत। उपन्यासक एखन धरि नौ संस्करण भ' चुकल अछि ,लोकप्रियता एहि सँ आँकल जा सकैछ। लेखक केँ बधाइ।शुकामना।

हिन्दी रुपान्तरण

----------------- कई बर्षों के बाद हिन्दी में कोई कायदे का उपन्यास पढ़ने को मिला। हिन्दी के चर्चित लेखक श्री पंकज सुबीर द्वारा लिखित 'अकाल में उत्सव' एक विलक्षण उपन्यास है। शिवना पेपरवैक्स ,सीहोर,मध्य प्रदेश से प्रकाशित प्रस्तुत उपन्यास भारतीय किसान और किसानी का पूरा शल्यक्रिया करने में सक्षम हुआ है।लेखक बधाई के पात्र हैं। उपन्यास को पढ़ते समय प्रेमचन्द का उपन्यास गोदान और उसका पात्र होरी बरबस ही अपनी ओर ध्यान खींचता है।१९३६ में प्रकाशित गोदान और२०१६ में प्रकाशित इस उपन्यास के पात्र राम प्रसाद में सहज ही तुलनात्मक अध्ययन करना पड़ता है।कहाँ खड़ा है आज भारत का ?होरी तो पीड़ा भोगते हुए स्वाभाविक मृत्यु को प्राप्त करता है परन्तु राम प्रसाद को आत्महत्या करना पड़ता है,आत्महत्य!
आजादी के सत्तर बर्षो के बाद कहाँ खड़ा है भारत का किसान? किसान पुत्र होने के नाते मैं इतना कह सकता हूं कि खेती -बाड़ी ही हमारा मूल है यदि बँचा सकें तो हमें बँचा लेना चाहिए किसानी ,भारतीयता के संग। खेती तो बदले रूप में रहेगा ही जिसमे भारत का किसान नहीं होगा ।भारत का किसान नहीं होगा तो हमरी सांस्कृतिक पहचान नहीं होगी।कहने का अर्थ हमारे होने न होने का कोई अर्थ नहीं होगा।
एक अच्छी उपन्यास के लिए मैं पंकज सुबीर जी को बधाई देता हूं।आदरणीया उषा दीदी को धन्यवाद देता हूं जिन्होने मुझे इस उपन्यास को पढ़ने की सलाह दी ।



जे.जे. कॉलोनी: भाग ४

  भाग ४   देबु मनोहरसँ पुछलनि- 'मनोहर भाइ! की भेल?' देबु!अहाँ कहु ने की भेल? 'अहुँ तँ छी पक्का मैथिल ने  सोझ मुहें उतारा नहिये न...