Saturday, August 26, 2023

The Tradition of Knowledge in Mithila: Context of Ayachi

मिथिला की ज्ञान परम्परा : अयाची प्रसंग


भारत की सभ्यता ,संस्कृति ,ज्ञान-विज्ञान और उसके उत्थान-पतन की जब भी चर्चा होगी आप चाहकर भी मिथिला की उपेक्षा नहीं कर सकते,परंतु  आज की शासन व्यवस्था मिथिला की जितनी उपेक्षा कर सकता था, किया है। जो बात हमे आलेख के अंत में कहना चाहिए था,मैंने प्रारम्भ  में ही कह दिया है क्योंकि मेरे आलेख  लिखने का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है सत्ता  नियामक तक,नीति निर्माताओं तक मिथिला की टीस और पीड़ा पहुंचे।



मिथिला की ज्ञान परम्परा की कुछ दृष्टान्त  प्रस्तुत करने का  प्रयास कर रहा हूँ।सर्वप्रथम मैं म.म.भवनाथ मिश्र का  चर्च करना चाहता हूँ। भवनाथ मिश्र मिथिला के ऐसे विद्वान हुए जिन्होंने बिना किसी राज्याश्रय के ,बिना किसी सहयोग के शास्त्र चिंतन किया,सृजन किया।मिश्र महोदय अपने वासस्थान में बचे हुए शेष भूमि को उपजा कर अपनी जीविका चलाया करते थे।कभी किसी से याचना नहीं की। विद्वानों के लिए अपरिग्रह का ऐसा दूसरा उदहारण  नहीं मिलता है। इसी गुण के कारण वे अयाची के नाम से प्रसिद्ध हैं। सात सौ बर्षों के पश्चात अयाची स्मरण किये जा रहे हैं।अयाची के जन्मडीह मधुबनी जिला के सरिसब  ग्राम में उनकी प्रतिमा स्थापित किया जा रहा है। आगामी 9 सितम्बर 2017 को बिहार के माननीय मुख्यमंत्री प्रतिमा का अनावरण करेंगे। उसी दिन एक दाई (चमाइन)की प्रतिमा  का भी अनावरण  किया जायेगा। इसी दाई ने अयाची मिश्र की पत्नी का प्रसव कराया था ।अभाव के कारण मिश्र जी की पत्नी दाई को कुछ भी  पारिश्रमिक नहीं दे पाई थी,दिया था एक आश्वासन ।  मेरे इस नवजात पुत्र की  पहली कमाई तुम्हारी होगी।

यशस्वी पुत्र शंकर अल्प वयस में ही अपनी योग्यता से पुरस्कार के रूप बहुत सा रत्न प्राप्त किया और कथनानुसार ही सारे रत्न ,स्वर्ण उस दाई को दे दिया गया। उसकी महानता देखिये उस रत्न से वह कोठा,सोफा बनवाती,जमीन जायदाद खरीदती,लेकिन उन पैसों से उसने सार्वजानिक उपयोग के लिए एक तालाब खुदबाई।आज भी वो तालाब सरिसब ग्राम में 'चमाइन डाबर' के नाम से जाना जाता है।  इसलिए  महान है मिथिला की ज्ञान परम्परा। योग्यता और  प्रतिभा समाज के लिए धरोहर हैं।

अयाची वर्तमान  विद्वत समाजके लिए, अन्वेषण,अनुसन्धान करनेवालों के लिए एक उदहारण हैं। अपने चिंतन ,अन्वेषण के लिए भी हमलोग सरकार की ओर ही टकटकी लगाए रहते हैं,उचित नहीं है। कुछ  चिंतन अन्वेषण स्वतःयदि हमलोग  कर सकते हैं तो  करना चाहिए। हमारा विद्वत समाज अपनी व्यक्तिगत मान्यता,  सम्मान और पुरस्कार को लेकर जितना चिंतित रहता है,यदि वह ऊर्जा हम अपने शास्वत चिंतन की ओर लगाएं तो निश्चितरूप से दशा, दिशा  बदलेगी।

सम्प्रति भारत -चीन के मध्य जो तनाव चल रहा है इसी प्रसंग माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी कहते हैं,"भारत तर्क की भूमि है ,न्याय की भूमि है,वाद-विवाद की भूमि।किसी भी समस्या का समाधान बातचीत से संभव है।" पूर्व में जटिल से जटिल समस्या का समाधान मिथिला के नैयायिकों ने किया है।मिथिला के लोक व्यबहार, लोकोक्ति,फकड़ा,किस्से-कहानी का जब आप विशद अध्ययन,अनुशीलन करेंगे तो न्याय शास्त्र की बहुत सी बात आपको स्वतः समझ में आ जायेगी। एक प्रसंग है एकबार मिथिला में क्षयमास पर विद्वानों क बीच वाद -विवाद हो रहा था।मतैक्य नहीं हो पा रहा था।  पं.गोकुलनाथ उपाध्याय का मत अन्य सभी विद्वानों के मत से अलग था।वे क्षय मास का विरोध कर रहे थे।तब समाधान के लिए पं.उमापति उपाध्याय को मध्यस्थ बनाया गया।राजा के द्वारा भी उन्हें विवाद समाधान के लिए अधीकृत किया गया। अपनी बृद्धवस्था और नदी में बाढ़ आने के कारण वे शास्त्रार्थ में भाग नहीं ले सके।उन्होंने निम्न पंक्तियां सभा को प्रेषित की-

"हम अति बुढ़ नदी मरखाहि।

एकटा नाव चढ़ल नहि जाहि।।

हो क्षयमास कहै छथि जत।

से सभ थिक काबिराहक मत।।

गोकुलनाथ कहै छथि जैह।

हमरो सम्मति  जानबओएह।। "


और सभा में विवाद का अंत हो गया।

एक प्रसंग है भारत के महान कवि विद्यपति बारे में।विद्यापति  मिथिला के राजा शिवसिंह के राज्याश्रित कवि थे,वे उनके अनन्य मित्र भी थे।एकबार दिल्ली के सुल्तान ने राजा शिव सिंह को बंदी बना लिया। विद्यपति अपने राजा को छुड़ाने के लिए सुल्तान के दरबार में चले गए।सुल्तान ने विद्यपति को एक बक्से में बंद कर दिया और कहा एक स्त्री आग जलायेगी आप बिना देखे कविता में सटिक वर्णन करिये।यदि इस दृश्य का सटीक वर्णन कर देंगे तो आपके राजा को छोड़ दिया जायेगा,साथ ही राज्य भी वापस कर दिया जायेगा।

"सजनि, निहुरि फुकु आगि

तोहर  कमल भ्रमर मोर देखल,मदन उठल जागि

जौं तोहें भामिनि भवन जयबह,अयबह कओन बेला

जौं एहि संकट सँ जीब बाँचत, होएत लोचन मेला

राजा शिव सिंह बंधन मोचल,तखने सुकवि जिला।"

सुन्दर स्त्री के आग जलाने का एकदम सटीक वर्णन कवि विद्यपति ने कियाऔर सुल्तान की कैद से अपने राजा और राज्य को छुड़ा लाया।ये है मिथिला की ज्ञान परम्परा।

मिथिला के विद्वानों का न्याय और मीमांशा प्रिय विषय रहा है। यहाँ सारे निर्णय तर्क और ज्ञान के आधार पर ही लिए जाते रहे हैं। तुर्क और मुग़ल राज्य से पहले भारत के अधिकांश राजा न्याय व्यवस्था के सञ्चालन के लिए मिथिला के विद्वानों को राज्याश्रय देकर रखते थे या समस्या होने पर विद्वानों को बुलाया  जाता था। मुग़ल सलतनत में न्यायब्यवस्था  अमीन और फौजदार चलाते थे ।यदा-कदा वे भी नैयायिकों की मदद लेते थे। अंग्रेजीराज में तो विद्वानों को विधिवत नियुक्त किया जाता था।म.म सचल मिश्र का लिखा हुआ निर्णय आज भी बिहार रिसर्च सोसाइटी में आज भी सुरक्षित है।

अंगेजों को संस्कृत का ज्ञान नहीं था। 1789ई. में पूर्णिया के कलक्टर Henary Thomas Colebrooke ने धमदाहा निवासी म.म.चित्रपति झाऔर म.म.श्याम सुंदर ठाकुर से संस्कृत सीखी। कोलब्रूक की प्रेरणा से कोलकाता में सर विलियम जोन्स ने कई शीर्षस्थ विद्वानों से न्यायालय के लिए उपयोगी धर्मशास्त्रों को संग्रहित किया। पहले फ़ारसी में फिर अंग्रेजी में उसका अनुवाद कराया।इसी के आधार पर आज भारतीय दण्ड संहिता(IPC) दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC )व्यवहार प्रक्रिया संहिता(CPC) बनाया गया।आज तक इसी आधार पर भारतीय न्याय प्रणाली काम कर रहा है।अंग्रेजों ने तीन सदंर्भ ग्रन्थ भी चयन किये

  1. चंडेश्वर महथा कृत'विवाद रत्नाकर
  2. वाचस्पति मिश्र कृत'विवाद चिंतामणि
  3. मिशरू मिश्र कृत 'विवादचंद्र '

इसी  को आधार मानकर भारतीय संसद ने हिन्दू कोड बिल पास किया।

सम्प्रति मिथिला के लोग अपनी ज्ञान परम्परा से विमुख हुए हैं ,आर्थिक विपन्नता के कारण मिथिला की प्रतिभा यत्र-तत्र भटकने को मजबूर है। जिस भाषा में 800 वर्ष पूर्ब ज्योतिरीश्वर जैसे महान गद्यकार हुए,विद्यापति जैसे महान जनकवि हुए उस भाषा के नौनिहाल मातृभाषा  के पठन -पाठन से वंचित है,जो चिंता का विषय है।उससे भी चिंता का विषय है यहाँ के लोग अपनी भाषा और संस्कृति से तीव्रता से विमुख हो रहे हैं,उन्हें अपने धरोहर पर गौरव गरिमा का बोध समाप्त हो रहा है ।अपनी प्रतिभा और ऊर्जा को अपनी भूमि पर विकसित होने का अवसर मिले ऐसे वातावारण का हम निर्माण करें  जिससे उत्तरोत्तर अपने ज्ञान  का उपयोग कर सकें। दुनियां के समक्ष जो संवाद का संकट  है, असहिष्णुता का संकट है,उसका निवारण हो सके। ये निर्विवाद  है किै दुनियां  के वर्तमान संकट का समाधान भारतीय दर्शन में है। भारतीय दर्शन को ढूंढ़ने के लिए आपको जड़ में आना होगा,मिथिला आना होगा।

आइये अयाची प्रसंग पर विमर्श करते हुए आगे बढ़ें नवीन संकल्प, नये अध्याय का सृजन करें।


Sunday, August 20, 2023

Exploring 'जँ जग जल नहि होइत': A Critique by Dilip Kumar Jha

जँ जग जल नहि होइत


जलमेव जीवनम।जल अछि तँ जीवन अछि।जल अछि तें एहि सुन्नरसन ग्रहपर मनुक्ख निवास क' रहल अछि।जँ जल नहि रहैत तँ की होइत?प्रकृतिक अपन रहस्य छैक जे आठ ग्रह अनेक उपग्रहक बीच मात्र पृथ्वीएपर कियैक जलक स्रोत देलनि।जल कें धारण करबाक संजोगिक' रखबाक एकमात्र क्षमता पृथ्विए कें छनि तें एतय जलक सोता फूटल से अनेक स्रोत सँ जल बहराय लागल।जलक कोनो दोसर विकल्प विकसित नहि भेल आइ धरि हेबो नहि करत।जलक महत्तापर संसारक अनेक भाषामे खूब साहित्य रचल गेल अछि।

सम्प्रति हम बात क' रहलहुं अछि श्री राज किशोर मिश्र रचित' जँ जग जल नहि होइत' खण्डकाव्यक। पोथी मे जलक महिमाक बखान तँ अछिए,जलक संकटपर बात अछि आओर समाधान पर सेहो।ई सम्पूर्ण पोथी जलकें समर्पित अछि।चारि भाग मे समर्पित एहि पोथी मे पहिल भाग अछि जलक महत्व,दोसर भाग अछि जलक स्रोतक वर्णन,तेसर भाग अछि जलक संकट चारिम भाग अछि जल-संकटक समाधान।राज किशोर मिश्र एखन  मैथिलीमे धुरझार साहित्य लिखि रहलाह अछि।दू बर्षक भीतर हिनक ई चौदहम पोथी छियनि।विभिन्न विधामे लिखि रहलाह अछि मुदा बेसी काव्येक पोथी छनि।मैथिली साहित्य मे  कोनो प्राकृतिक समस्यापर खंडकाव्य कहिक' ई पहिले पहल खंडकाव्य दृष्टिगत भेल अछि।




मैथिली मे ऐतिहासिक ,पौराणिक ओ समकालीन बिषयपर अनेक खंडकाव्य लिखल जाइत रहल अछि। एमहर खंडकाव्य लिखबाक परिपाटी कमजोर भेल अछि मुदा पहिने बहुत महत्वपूर्ण खंडकाव्य सभ मैथिली मे लिखल जाइत रहल अछि। किछु खंडकाव्य बिभिन्न भाषासँ अनुदित सेहो अछि मुदा हम एतय मैथिलीक किछु महत्वपूर्ण मौलिक खंडकाव्यक उल्लेख करय चाहब  जेना १९२६ मे रघुनन्दनदासक 'बीरबालक' प्रकाशित  भेल जे लव-कुशक चरितपर लिखल गेल अछि।शरशय्या खंडकाव्य लिखलनि बुद्धिधारी सिंह 'रमाकर' जाहिमे भीष्म पितामहक जीवन ओ उपदेशक वर्णन अछि। समकालीन बिषयपर मथुरानन्द चौधरी खंडकाव्य 'कृषक' बहुत महत्वपूर्ण अछि।कृषकक जीवनपर लिखल एहि खंडकाव्यक बिषयवस्तु एखनो ओहिना जीवन्त अछि।कृषकक दुर्दशा मे एखनो अपेक्षित सुधार कहाँ भेल अछि।

उपेन्द्रनाथ व्यासक 'सन्यासी' सेहो बहुत महत्वपूर्ण खंडकाव्य अछि।तहिना केदारनाथ लाभक 'लखिमा रानी' आओर 'भारती' बहुत चर्चित खंडकाव्य अछि। सुरेन्द्र झा सुमन लिखित खंडकाव्य 'उत्तरा' ओ रवीन्द्रनाथ ठाकुर लिखित खंडकाव्य 'पंचकन्या' सेहो बहुत महत्वपूर्ण अछि।मैथिलीमे आर अनेक महत्वपूर्ण खंडकाव्य लिखल गेल अछि मुदा पेशासँ अभियन्ता मुदा हृदयसँ प्रकृतिक महान चिंतक, श्रष्टा श्री राजकिशोर मिश्र विरचित खंडकाव्य  'जँ जग जल नहि होइत' समकालीन बिषयपर लिखल गेल बहुत महत्वपूर्ण खंडकाव्य अछि।काव्यक सौन्दर्यबोध सेहो पाठककें बहुत आकर्षित करतनि से हमरा पूर्ण विश्वास अछि।देखल जाय ई पाँती--

'तुषार पाग पहिरने गिरिवर

भ'जएतथि सुक्खल पाहन

नहि चीड़, नहि देवदार तरु

नहि नग सँ जल-आवाहन।'

जलक महिमा बखान मनुक्ख कें  तँ करहि पड़तनि। देवी-देवता आओर पितरगण सेहो जलेसँ तृप्त होइत छथि।अथर्ववेद मे एकठाम कहल गेल छै- 

'आपो देवीरूपे ह्वे गाव:पिवन्ति न: / सिन्धुभ्य: कर्त्व हवि:

अर्थ भेल-'हम ओहि जलक अभ्यर्थना करैत छी जे अंतरिक्षक लेल हवि प्रदान करैत अछि तथा जतय हमर इंन्द्री तृप्त होइत अछि।'

महाभारतक शान्तिपर्व मे जलक महिमाक बखान करैत लिखल गेल अछि 'अद्भि: सर्वानि भूतानि जीवन्ति प्रभवन्ति च

तस्मात् सर्वेषु दानेषु पयोदानं विशिष्यते।

संसारक सभ प्राणीकें जलेसँ जीवन भेटैछ तें जलक दान सर्वश्रेष्ठ दान अछि।

जल नहि रहैत तँ एहि संसारक समस्त वैभव, सभ्यताक ओ संस्कृतिक कोना होइत विकास। कवि लिखैत छथि-

'सुखल निर्झरणी तीर पर

कोना जनमैत कोनो सभ्यता?

मेसोपोटिमिया,आर्य संस्कृति

के बुझैत सिंधु-घाटीक पता?'

जल जीवन,जल अछि जिनगी,

जाहि बेगर नहि जड़ि फुनगी।'

कवि कहैत छथि एहि पृथ्वीपर सभसँ दीन-हीन  ओ अछि जकरा लग पीबाक लेल स्वच्छ जलक स्रोत नहि छैक।

 ' सकल संपदा रहितहुँ अछि ओ सभ सँ दीन,

 जकरा घरमे जल नहि, जल सँ अछि जे हीन।'

धरतीपर जँ जल समाप्त भ' जायत तँ कतय सँ लायब जल।जलक जे संकट सगर संसारमे चलि रहल अछि।एक देश सँ दोसर देशक देशक मध्य विशेषकय नदीक जल बँटबाराक लेल अनेक विवाद चलि रहल अछि।अपना देशक मध्य सेहो एक राज्य सँ दोसर राज्यक मध्य जलकें ल' क' बहुत विवाद सभ चलि रहल अछि जेना कर्नाटक-तमिलनाडु क मध्य कावेरी नदीक जल विवाद,दिल्ली हरियाणाक मध्य सतलज-यमुना लिंक नदी जल विवाद।तहिना संसारक विभिन्न देशक मध्य जेना ब्रम्हपुत्र नदीक जल के ल'क' भारत -चीनक मध्य विवाद अछि तहिना भारत-पाकिस्तानक मध्य सिन्ध नदीक जलक विवाद।नील नदीक पानिक के ल'क' मिश्र आओर इथियोपिया के मध्य विवाद चलि रहल अछि। तहिना गाम -गाम ओ टोल-टोलमे जलकें ल'क' अनेक तरहक वाद-विवाद होइत रहल अछि। जलक संकट शनै:शनै: गंभीर रूप धारण क' रहल अछि।तें जल समस्यापर चिंतन आओर लेखन आवश्यक अछि।से एहु दृष्टिसँ ई खंडकाव्य बहुत महत्वपूर्ण अछि।धरतीपर पानि नहि रहत तँ की हैत?

'धरणी पर नहि होइत नीर

तँ पैंच दैत कोनो दोसर ग्रह?

मंगल सँ बालटी भरि-भरि क'

भरितहुं चौरी- चाँचर दह?'

पृथ्वीपर जतेक जल स्रोत उपलब्ध अछि ओहिमे सँ मात्र तीन प्रतिशत जल पीबा योग्य अछि सनतानवे प्रतिशत समुद्रक नोनगर पानि अछि जे जीव-जन्तु किन्नहुं नहि पीबि सकैछ।एखनहुँ मनुक्ख बर्खाक जलक उचित प्रबन्धन नहि क' सकल अछि। बर्षोक जल बेसी बहिक' समुद्रेमे मिलि जाइत अछि।आबो चेतु हे मनुक्ख! जलक अपव्यय सँ बाँचू।जलक संरक्षण करू।से सबटा उपाय एहि पोथी मे  काव्यरूप मे कहल गेल अछि।जलक महिमा सँ कवि सभ रचना करैत रहलाह।कालिदास सन महान कविक विरह दूत छियनि मेघ। कवि लिखैत छथि

'जलवृष्टि लेल,स्वागत-कविताक

छै नाचि रहल अलंकार,छन्द,

सरोज सरोवर मे मुह फोलल

नद मे नीर चलल,स्वच्छन्द।

भरल,जलवृष्टि सँ, चौरी-चाँचर,

धान-पात हरिअर-कचोर,

जूही फूलल,गमकल बेली

हरियर कानन,नाचल मोर।'

दिन-दिन जलक स्रोत सुखा रहल अछि।भुमिगत जल विला रहल अछि।जे बहुत चिंताक बिषय अछि।कतबो शोध करब।कतबो टाका खर्च करब।जलक निर्माण कोनो प्रयोगशाला मे नहि क' सकब।जलक समुचित खर्च,उचित प्रबन्धने सँ जल संरक्षण  भ' सकैत अछि।पोथी मे जल संरक्षणक बिषय मे सेहो बहुत सुझाव देल गेल अछि।कवि लिखैत छथि-

'प्रकृतिक देल अनमोल उपायन

बना सकैत नहि अछि मनुख

भू सँ इतर बूँदो नहि सुनल

घटैत पानि देखि होइत अछि दुख।'

आब वैज्ञानिक लोकनि बहुतरास एहन उपाय सुझौलनि अछि जाहि सँ बहुतरास जल बचाओल जा सकैत अछि।जेना कवि कहैत छथि जलक संचयक लेल ड्रीप विधिसँ  कृषि कयल जाय‌।एहन फसल उपजायल जाय जाहिमे कम जलक खगता छै।जेना मड़ुआ,अल्हुआ,फुटि,मकै आदि। 

वातावरणक प्रदुषण सँ धरती निरन्तर गर्म भ' रहल छथि।वैश्विक तापमान बढ़ि रहल अछि।जाहि लेल प्रदुषण कें कम करबे एकमात्र उपाय अछि‌।ताहि मलेल निरन्तर वृक्षारोपण करब सेहो बहुत जरूरी अछि।

मनुक्ख बुझैत अछि जलक सबटा स्रोत पर हमरेटा अधिकार अछि से बात नहि छैक जल सभ जीवक लेल अनिवार्य अछि।प्रकृति पदत्त ई जल सभक लेल सर्वसुलभ हुए तकर प्रयास चलैत रहय।सभ जलचर,थलचर ओ नभचर कें लेल आवश्यक छैक जल।आइ संसारमे नदी जलकें बान्ह-छेक के जे उपक्रम चलि रहल अछि।सभठाम नदी पर बान्ह बनाओल जा रहल अछि।अप्राकृतिक जल स्रोत उत्पन्न करबा लेल अनावश्यक नहर नालाक निर्माण कयल जा रहल अछि।ई सब प्रयोग सँ कोनो इलाका मे सुखार तं कोनो इलाका मे बाढ़ि देखबामे अबैत अछि।नदी कें अपना सहज रूप मे बहय देबय पड़त।मिथिलामे प्राचीन कहाबत छैक।पानि अपन पनिबट स्वयं बना लैत अछि।ओ कृत्रिम बान्ह जखन जल दबाबक कारण टुटैत अछि तँ जल प्रलय ल'क' अबैत अछि।२००८ ई.मे कुसहा(मधेपुरा जिला,बिहार )मे जे बान्ह टुटल से जल प्रलयक भयानक दृश्य उत्पन्न भेल से सर्वविदित अछि।कहल जाइत अछि टिहरीक बान्ह जँ कहियो टूटल तँ देशक राजधानी दिल्ली धरि जल प्रलयमे फँसि जायत।

जल पर सभजीव कें अधिकार छैक।सभ जन्तु  ऋतुक अवसरपर जलक आश लगौने रहैत अछि।

देखल जाय एहि सम्बन्धमे कविक उद्गार-

'कवच घोंघमे तनने कछुआ

ताकि रहल अछि बरखा बाट

पानि बेगर छै घिग्घी लागल

दुबकल डोका पोखरिक घाट।'

आइ संसारक समक्ष जल संकटा सुरसा जकाँ मुहबौने ठाढ़ अछि।जँ समयपर नहि चेतब तँ जीवमात्रक जीवनपर संकटक पहाड़ टुटि पड़त।लोक पानिक एक-एक बुन्दक लेल तरसि जायत।जँ पानि नहि रहत तँ महानगरमे बनाओल ओ बहुमंजिला भवन कोन काजक?गाम मे अरजल खेतक कित्ता सबहक की होयत? तें मैथिली भाषामे लिखल ई खंडकाव्य मात्र मैथिलीए भाषाक लेल वा मिथिलावासीएक लेल उपयोगी नहि अछि।संसारक सभ मनुक्खक लेल एकटा जरूरी पोथी अछि।अनुदित हुए ई पोथी। जिनका भविष्यक चिंता छनि।जिनका एहि सुन्नर धरणीक प्रति मोह छनि।अबैवला पीढ़ीक लेल एकटा सुगम जीवन देबाक उत्तरदायित्व बुझै छथि।जलक एहि संकटपर सगर संसारमे बुझनूक व्यक्ति, पर्यावरविद् सबहक बीच बहस चलि रहल अछि।किछु सुगम उपायो सब आबि रहल अछि।एहनसन वातावरणमे एहि पोथीक महत्ता आर बढ़ि जाइत अछि।एखनो नहि बितल अछि बेर /अवसर ई भेटत नहि फेर ।

तें चलैत रहबाक चाही की?

चल बचत लेल जन-अभियान /नहि छुटय जल बिनु ककरो प्राण ।

अंतमे हम एतबे कहब जे कविताप्रेमी, पर्यावरणप्रेमी साहित्य- संस्कृति प्रेमी लोकनिक लेल बहुत उत्तम पोथी अछि।जलक

सम्बन्ध मे ज्ञानसँ भरल अछि पोथी।छंदबद्ध लिखल गेल अछि।भाषा सजह अछि।कतहुँ-कतहुँ संस्कृताह शब्दक प्रयोग पढ़ै

मे कने दिक करैत छैक।पोथीक शीर्षक बहुत आकर्षक छैक मुदा उप शीर्षक साहित्यिक नहि भ'क' लगैत छैक जेना भूगोलक पोथीक शीर्षक होइ।एहिमे कने विचार आवश्यक छलैक।कतहुँ-कतहुँ पुनरूक्ति दोष सेहो छैक।कोनो एक बिषयपर बिशेषक'जखन पूरा पोथी लिखबै तँ एहन समस्या सोझाँ एबे करत।हम श्री राजकिशोर बाबूक प्रयासक सराहना करैत छियनि।पाठक सब पोथी पढ़थि। बहुत रोचक लगतनि। ज्ञानक तँ भंडार अछि ई पोथी। बहुत-बहुत बधाइ।


पोथी : जँ जग जल नहि होइत

कवि: राज किशोर मिश्र

विधा: खंडकाव्य

प्रकाशक:स्वयं कवि

दाम: ₹ ३००/


                                                                               



Saturday, August 19, 2023

The enlightening literature and culture of Maithili nationalism

मैथिलीक राष्ट्रीय ओ उद्बोधनात्मक साहित्य ओ यदुवर।
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१८५७ के पहिल स्वतंत्रता संग्रामक विफलताक पछाति देशक अनेक प्रान्तमे राजनीतिक ओ सांस्कृतिक जागरण आरंभ भेल। वास्तवमे १८५७ क बादेसँ भारतीय जनगणमे सम्पूर्ण रुपसँ भारत राष्ट्रक अवधारणा विकसित भेल । एहिसँ पूर्व प्रान्त,रिआसत ओ भाषाक नामपर भारतीय समाज बहुत असंगठित छल ,जकर लाभ अंग्रेजी हुकूमत उठबैत रहल।कंपनी शासनक अत्याचार, हड़प  के नीति,किसान सभक शोषण आदिसँ समूचा देश आक्रान्त छल। अंग्रेजीराजक शोषणक विरुद्ध छिटफूट विरोधक स्वर आब' लागल छल मुदा कोनो संगठित स्वर नहि आबि पाबि रहल छल। आब लोकमे ई  भरोस जागल जे देश जँ संगठित भ' जाय तँ अंग्रेजी हुकूमतकें हटाओल जा सकैत।स्वदेशी शासन व्यवस्था कायम कयल जा सकैछ।स्वतंत्रता आन्दोलन रसे- रसे जोड़ पकड़' लागल।देश भरिमे अनेक सामाजिक संगठन बढ़ि-चढ़ि क' हिस्सा लेबय लागल।




एहि कालखंडमे अंग्रेज वायसराय लार्ड रिपनक सुधारवादी काजकें बिसरल नहि जा सकैछ।ओ भारतक शासनमे अनेक सुधार कयलनि जाहिमे भारतीय प्रेस अधिनियमक समाप्ति बहुत महत्वपूर्ण अछि। एहि अधिनयमक समाप्तिसँ भारतमे साहित्य ओ पत्रकारिताकक बहुत विकास भेल।मैथिली पत्रकारिताक आरंभ सेहो एहि कालखंडमे १९०५ई.मे भेल। विभिन्न् प्रान्तक साहित्यिक लोक विशेष कय कविवृन्द अपन ओजस्वी ओ उद्बोधनात्मक रचनासँ गाम -गाममे सामाजिक चेतना जगाब' लगलाह।जे आगाँ चलिक' राष्ट्रीय चेतना बनि गेल। स्वतंत्रता हुनक सभक ध्येय छलनि।पछाति इएह जेतना स्वतंत्रता आन्दोलनक स्वरुप अखिल भारतीय स्वरुप धारण कयलक।भारतक आन-आन भाषाक सदृश्य मैथिली साहित्यमे सेहो स्वाधीनताक लेल जनजागरण हेतु  अनेक कवि सोझा एलाह।जाहिमे धेमुरांचलक दूटा कवि अत्यन्त महत्वपूर्ण छथि--यदुनाथ झा'यदुवर' ओ छेदी झा द्विजवर।यदुनाथ झा 'यदुवर' पुरना भागलपुर सम्प्रति मधेपूरा जिलाक मुरहो गामक रहैवला छलाह। देशक परतंत्र दशाकें देखि क' यदुवरजीक मोन बहुत उद्वेलित ओ व्यथित छलनि ।




अपन पीड़ाकें ओ अपन गीत ओ कविताक माध्यमसँ व्यक्त केलनि। सुतल समाजक जागरण हेतु अपन गीतक माध्यमसँ अलख जगबैत रहलाह।अपन राष्ट्रीय चेतनामूलक गीतक पहिल संग्रह' मिथिला गीतांजलि नामसँ १९२७ई.मे प्रकाशित करबौलनि। गितांजलि भूमिकामे ओ लिखलनि,"आब समय बदलि गेल अछि। वीर भेषमे माता भक्तिपूर्ण गानमे तन्मय हैबाक चाही। एहि संकलनमे देशानुराग, देश ओ समाज ,कुरीतिक सुधार सम्बन्धी उत्साहवर्धनी 
कविता ,विशेषतः गानक संग्रह भेल अछि।

एकटा आरंभिक गीतमे यदुवर जी लीखैत छथि -:

'भारतभूमिक देखि दुर्दशा दया विचारू

हमरा सबकें पतित नरकसँ शीघ्र उबारू।'


गीतांजलिक अतिरिक्त हिनक रचना ओहि समयमे  प्रकाशित पत्रिका 'मिथिला मोद' ओ मिथिला मिहिर मे जतय-ततय छिड़िआयल छनि। बहुतो रचनाकें डा.रमानन्द झा 'रमण' द्वारा संपादित यदुवर रचनावलीमे समेटबाक स्तुत्य प्रयास भेल अछि।

यदुवरजी डाकघरमे काज करैत छलाह,सरकारी कर्मचारी छलाह तथापि ओ प्रखर राष्ट्रवादी ओ प्रगतिशील विचारक लोक छलाह।ओ प्राचीन ओ नवीन रीतिक गीति साहित्यक संगहि 'अन्योक्ति शतक' नामक मुक्तक काव्यक रचना सेहो कयने छलाह। ओ प्रत्यक्ष आन्दोलनमे तँ भाग नहि  सकैत रहथि मुदाअपन रचनाक माध्यमसँ समाजकें जागृत ओ आन्दोलित रखबामे कोनो कसरि नहि छोड़ने छलाह।जतबे ओ भारतक स्वतंत्रताक लेल चिंतित छलाह ओतबे ओ अपन मातृभाषा मैथिलीक दशापर सेहो चिंतित छलाह।ओ समान रुपसँ दुनू बिषयपर लिखलनि।लिखबेटा नहि कयलनि साहित्यकें जन-जन धरि पहुँचेबाक लेल प्रकाशित करबौलनि।गामे गाम प्रचार-प्रसार कयलनि।

जाहि कालखंडमे ओ  काव्य रचैत छलाह ओ अंग्रेजी साम्राज्यक क्रूरतम काल छल।यदुवरजीक जन्म १८८५ई.मे भेल छलनि।ताहिसँ कतेको बर्ष पूर्ब बंगालमे बंगला भषाक कवि,साहित्यकार लोकनि अपन योगदान देब आरंभ क' चुकल छलाह।१८८२ई.मे बंकिंमचन्द्र चटर्जी द्वारा  आनन्दमठ उपन्यास लिखल गेल।आनन्दमठमे प्रकाशित 'वंदे मातरम' गीत भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन मुख्य गीत बनि चुकल छल,जकर प्रभाव मिथिलाक साहित्यकार सबपर सेहो  पड़़लनि।ओहो सब राष्ट्रीय आन्दोलनकें प्रेरित करैवला गीत सभ लिखय लगलाह।वन्दे मातरम गीतमे बंकिंम बाबू  लिखैत छथि -:

सप्तकोटि कण्ठ - कलकल निनाद कराले

द्विसप्त कोटि भुजैर्धुत खरकर वाले

अबला केनोमा तुमि एतो बले 

बहुबल धारणीम नमामि तारणीम

रिपुदल वारणीम मातरम।

स्वतंत्रताक एहि धाराक अनुसरण करैत मैथिली कवि यदुनाथ झा यदुवर  कहि उठैत छथि -:

उठू जागू औ बन्धुगण त्यागू ई बिषधर निन्नकें

कर्तव्यपालनमे लागू भजूमा चरण अरविन्दकें।


ई ओएह कालखंड अछि जाहि समयमे सम्पूर्ण देशमे  स्वतंत्रता आन्दोलनक शंखनाद भ' चुकल अछि।महाराष्ट्रमे बालगंगाधर तिलक आओर एनीबेसेंट के नेतृत्वमे होमरुल आन्दोलन चलि रहल छल।देशमे राष्ट्रीय आन्दोलन दू धारा विभक्त भ' गेल रहय।उदारवादी धारा जकर प्रतिनिधित्व वोमेश चन्द्र बनर्जी,दादा भाइ नौरोजी,फिरोज शाह मेहता ,सुरेन्द्रनाथ बनर्जी आदि क' रहल छलाह।ओमहरर उग्र राष्ट्रवादी धाराक नेतृत्व लाल-बाल ओ पाल क' रहल छलाह।पछाति उदारवादी धारा महात्मा गाँधीक नेतृत्वमे असहयोग आन्दोलन व  सविनय अवज्ञा आन्दोलन  चलेलक।तिलक नारा देलनि जे 'स्वराज हमर जन्म सिद्ध अधिकार अछि ई  हम ल'क' रहब।ओहि समकालमे मिथिलामे धेमूरा नदीक कछेरमे एकटा मैथिली कवि जान मानस  अपन गीतक माध्यमसँ राष्ट्रीयताक प्रति  जोश ओ उर्जा भरि रहल छलाह ओ छलाह यदुनाथ झा 'यदुवर'। ओ देश मुक्तिक लेल भिथिलामे छात्र सभक संगठन बनय तकरो लेल ओ प्रयास कयलनि।कोनो आन्दोलनक रीढ़ हैइछ ओहि समाजक युवजन से ओ नीक जकाँ बुझैत छलाह।अपन गीतांजलिक समर्पण ओ मिथिलाक युवजने सबकें कयने छलाह।

'प्रियवर मिथिलावासी युवजन हृदय मैथिली अर्पित

अछि भवदीय कमल करमे ई लघु उपहार समर्पित

करू भवदीय  सकल श्रम सार्थक

स्वयं अमूल्य दयासँ

निज भाषा निज देशक रक्षा करू तत्परतासँ।'


यदुवरजीक प्रसंग मैथिलीक प्रसिद्ध साहित्यकार रामकृष्ण झा 'किसुन' लिखने छथि--

'यदुवर जीमे लोक चेतना तथा राष्ट्रीय चेतनाक भावना बड़ उग्र रुपमे छल।पुरान परंपराकें तोड़ि राष्ट्रीय कार्यक सुत्रपात संगहि संगीतक रागपाशसँ मैथिली कविताकें सर्वप्रथम यदुवरेजी मुक्त कयने छलाह।प्रो.मायानन्द मिश्र तँ हुनक कालखंडक काव्यकें 'यदुवर युग' नामसँ सम्बोधित करैत छथि यदुवरजीक बिषयमे लिखैत छथि," स्मरणीय जे मैथिलीक आधुनिक काव्य सामाजिक चेतनासँ राष्ट्रीय चेतना तथा राष्ट्रीय चेतनासँ व्यक्तिवादी चेतना केर यात्राक काव्य थिक। चन्द्र युगक सामाजिक चेतनाक काव्य अगिला युगमे राष्ट्रीय चेतनाक काव्य बनि गेल। जकर प्रेरणा सूत्र रहलाह यदुनाथ झा'यदुवर'।वस्तुतः यदुवरजीक मैथिली गीतांजलि ओहि युगक काव्य गीता थिक।"

यदुवरजीक समयमे हिनक गाम मुरहो  बिहारक राष्ट्रीय आन्दोलनक केन्द्रमे  छल।प्रसिद्ध स्वतंत्तता सेनानी रास बिहारी मंडल एहि गामक छलाह।एतय देशक बड़का-बड़का आन्दोलनी नेता सब अबैत रहैत छलाह।तकरो प्रभाव यदुवरजीपर सेहो पड़ल होयतनि।

यदुवरजी स्वतंत्रता आन्दोलन, मातृभाषा मैथिलीक संरक्षण।मिथिलाक ओ भारतक दुर्दशाकें लक्ष्य क कें अनेक राग-भासपर गीत सब लिखैत रहलाह

 बटगमनी

 स्वर्ग सदृश सुखदायक सजनी 

सब विधि भारत देश

नन्दन वन सम सुन्दर सजनी 

मोहथि देखि सुरेश

एकबेर हेरिय जनक दुलारी

मिथिला देश भेल नीन्दारत

देखिय नयन उघारि |


राग भैरवी (प्राती)

भेल भोर उठु मिथिलावासी,आबहु निद्रा त्यागू

जागत लोक सबहि पशु-पक्षी,निज कर्तव्यहि लागू

झट उठि मातृभूमि भाषा ओ जाति अनुरागू

यदुवर करू उद्धार हिनक सब नहि तँ भिक्षा माँगू |


फागु

बन्धु आब पावन फागु खेलाउ

स्वदेशक म।दंग झांझ ओडम्फ सितार बजाउ

सभ मिलि प्रेम हृदय हर्षित एके तान लगाउ

देशक दुःख बेगि मिटाउ।


अनेकानेक गीतक रचना कय भारतवासी ओ मिथिलावासीकें जगेबाक आ स्वतंत्रता प्राप्त करबाक लेल आह्वान करैत रहलाह।कहैत छथि -:

'कहु अहाँ जन्म कथि लेल लेल

जँ उपकार देश ओ जातिक किछुओ ने अहाँसँ भेल

जननी जन्मभूमि नित कानथि,किन्तु ध्यान ने देल।’


मैथिली भाषाक प्रचार -प्रसारक लेल सेहो निरंतर आह्वान करैत रहलाह।बिनु सांस्कृतिक चेतनाक एकटा राष्ट्र ,राष्ट्र नहि कहा सकैत अछि।सांस्कृतिक चेतनाक सबसँ पहिल शर्त थिक भाषिक चेतना,ताहि भाषिक चेतनाक संग यदुवरजी अपन काव्यक संग यत्र-तत्र समुपस्थित छथि।कहैत छथि-- भए कटिबद्ध उठु मैथिलगण !शीघ्र

कय भाषाक प्रचार

राज-काज ओ विद्यालय हो सर्वत्र हिनक सत्कार।

एखन धरि मैथिली प्राथमिक पाठशालामे नेना सबकें नहि पढ़़ाओल जाइछ।सरकारी राजकाजमे मैथिलीक कोनो स्थान नहि भेटि सकल अछि।ताहि बातकें ल' क' आइयो मिथिलाक लोक संघर्षरत छथि।बिडंवना ई जे जाहि बातक संघर्ष हमसब अद्यावधि क' रहल छी ताहि ज्वलंत मुद्दा यदुवरजी अपन कवितामे बहुत पहिनहि  राखि चुकल छलाह।निश्चितरुपसँ जहि सिद्ध होइछ जे ओ एकटा पैघ मातृभाषा प्रेमी आओर आन्दोलनी सेहो छलाह जे परतंत्र भारतमे सेहो अपन मातृभाषाक माँग बहुत साहसक संग रखैत ररहलाह।

मिथिला भूमिसँ अनन्य प्रेम छनि कवि यदुवरकें।

जयति जय विदेह भूमि आनन्द सुखराशी

पूर्व कौशिकीक धार,पश्चिम गंडकि किनार

कमला इत्यादि बहथि मध्य दुःख ह्रासी

ज्ञानक चर्चाविशेष शिष्य जनिक आनदेश

यदुवर नहि तुअ समान तीर्थराज काशी

मंगलमयि मैथिली महरानी

मंगलमयि मिथिला भूमिक जे स्वसिनि गुणखानी।


यदुवरजीक रचनाक अवलोकनसँ बहुत फरीछसँ हम देखि पबैत छी जे भारतक स्वाधीनताक लेल कविक मोनमे बहुत अकुलाहटि छलनि,छटपटाहटि छलनि। यदुवरजी जतबा राजनीतिक स्वतंत्रताक लेल ग़भीर छलाह ओतबहि ओ सांस्कृतिक स्वतंत्रताक लेल सेहो चिंतित छलाह।जे एकटा स्वतंत्र राष्ट्रहिमे संभव भ'सकैत अछि।ओ समस्त भारतवासीमे प्रगतिशील शिक्षाक प्रसार देखय चाहैत छलाह।सिग्नल नामसँ एकटा कविता छनि।तकर ई पाँती--

' देखि रेलक सिग्नल तक तों झुकि जाइत छह

 की शिक्षा किछु एकरासँ संसारी जीब पबइ अछि नीक।'

 यदुवरजीसँ प्रारंभ भेल मैथिलीमे राष्ट्रीय चेतनाक काव्य आगाँ बढ़ैत गेल।हिनक समकालीन महत्वपूर्ण कवि ओ  आन्दोलनी छेदी झा द्विजवर अपन कविता  'चरखा चौमासा'  मे लिखैत छथि -:

'अहाँ मन दय पीर बाँटू,सूत काटू देसिया

देशक सब धन बाँचत, अरि दूर थरथर काँपत।’

आगाँ मैथिली साहित्यक काव्यधारा राष्ट्रीय चेतनाक प्रति आर मुखर होइत गेल।  राष्ट्रीय आन्दोलनमे मैथिली भाषाक साहित्यकारक योगदान आन भाषाक साहित्यकारसँ कनियों कमतर नहि अछि।सरस कवि ईशनाथ झा भारतवासीक तुलना  सिंह शावकसँ करैत छथि -:

' की केहरि शिशु केहनो निर्बल

नहि कुदि पड़य गजवर सिरपर

निज जन्म सिद्ध अधिकार हेतु

यदि मरब मरब नहि बनब अमर।’

तहिना आगाँ मैथिली कवितामे राष्ट्रीयताक प्रमुख स्वर आरसी प्रसाद सिंह कहैत छथि -:

'स्वाधीनता हमर अछि अधिकार जन्मजाते

के दस्यु ल' सकैत अछि एकरा उधार खाते

हम ऐक्य सूत्र बान्हल जन कोटि-कोटि  बासी

युग आइ रचि रहल छी

नव सर्जना करैत छी

हे जन्मभूमि भारत हम वन्दना करैत छी।'

कवि यदुनाथ झा'यदुवर' जे राष्ट्रीय चेतनाक काव्यधारा आरंभ कयल से अद्यावधि चतरि-पसरि रहल अछि।मिथिला आइयो भारतीय राष्ट्रीयताक मजगूत केन्द्र अछि। भारतीय संविधानक मूल तत्व एना कही जे प्राणतत्व अछि  राष्ट्रीय एकता -अखंडता, सांस्कृतिक ओ भाषाइ विविधता,सर्वधर्म समभाव जकर अनुपालन बहुत चैतन्यतासँ मिथिलावासी क' रहल छथि। यदुवरक रचनामे राष्ट्रीयताक भावना कुटि-कुटि भरल अछि। जाहिसँ राष्ट्रीय एकता मजगूत भेल अछि। यदुवर तँ भारतकें स्वतंत्र स्वयं नहि देखि सकलाह।हुनक निधन १९३५ई.मे भ' गेलनि मुदा हमरा लोकनि हुनक वंशज आइ हुनके सभक कर्मक प्रतापें स्वतंत्र भारतमे खुलि क' साँस ल' रहल छी।जे नहि बजबाक सेहो सब बाजि रहल छी।

मैथिली साहित्यक इतिहासमे डा. जयकान्त मिश्र यदुवरजीक बिषयमे लिखैत छथि -:

'Under the influence of new conditions,A growing body of poets  which are calculated to  arose the the people of Mithila. They realised that poetry could no longer be written to please  it has no interest too. Two remarkabke anthologies Mithila Gitanjali edited by  Yadynath Jha 'Yaduvar' and Maithili Sandesh edited by Shyamand Jha ,where published in the twenties Which expressedly announced the birth of these spirit.'

मैथिलीक अनेको आलोचक,विद्वान लोकनि यदुवरजीकें  राष्ट्रीय चेतनाक महत्वपूर्ण कवि मानलनि अछि। मैथिलीक मान्य आलोचक आओर यदुवर रचनावलीक संपादक डा. रमानन्द झा 'रमण' यदुवर जीक बिषयमे लिखैत छथि,"  हमर ई मान्यता  आओरो पुष्ट भए गेल अछि जे मैथिली साहित्यकें अपन देश कालसँ जोड़बाक जे प्रवृत्ति कवीश्वर चन्दा झासँ चलल ओहिपरसँ धार्मिक लेप पोछि राष्ट्रीय ओ देशोत्थान बिषयक रचनाक परिपाटी यदुनाथ झा यदुवरक रचनेसँ प्रारंभ भेल अछि। राष्ट्रीय चेनतामूलक स्वर कंपनकें एक सबल रुप प्रदान करबाक गरिमा यदुवरकें प्राप्त छनि।

एतावता,यदुवरजीक उपलब्ध रचनाक अध्ययनसँ स्पष्ट अछि जे मैथिली साहित्यमे राष्ट्रीय चेतनाक महत्वपूर्ण कवि छथि।हिनक सबटा रचना अद्यावधि उपलब्ध नहि  भ' सकल अछि।हिनक यत्र-तत्र छिड़िआयल ,अनुपलब्ध रचनाक खोज ओ अनुशीलन  आवश्यक अछि।हिनक रचनापर अनुसन्धानपरक काज सेहो हेबाक चाही।अनुसंधानसँ नव -नव बात उजागर होयत।


Sunday, August 6, 2023

समयक संग चलि रहलए कामिनीक कविता

 समयक संग चलि रहलए कामिनीक कविता

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कामिनी मैथिलीक वरिष्ठ कवयित्री छथि। 'कालचक्रक पटरी तर' हिनक चारिम कविता संग्रह छनि। अपन पहिले कविता संग्रह 'समय सँ संवाद करैत'(२००८) सँ ई चर्चित भ' गेलीह।आरंभे सँ हिनक कविताक हम पाठक छी।हिनक चारू कविता संग्रह हमरा पढ़ल अछि।कामिनि बेछप छथि।से बेछप कियै छथि? एकर दू तीनटा कारण अछि।हिनक जे विचार छनि से कविता सँ जीवन धरि समान छनि।आलोचनाक बिनु परबाहि कयने सोझ-सोझ अपन बात कहै छथि। कविता सँ ल'क'अपन वास्तविक जीवन धरिमे स्पष्टवादी छथि।बेसी घुमा फिरा क'नहि  सोझ बात कहै छथि। एहेन लोक साहित्य समाजमे  अवडेरल जाइत रहल अछि से कामिनीकें सेहो एखन धरि अवडेरल गेलनि अछि।जहिया साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार आरंभ कयने रहय ताहि दिन ई ओहि वयसक कवयित्री वा लेखिका जे कहि से ई एकमात्र छलीह।हिनक पहिल कविता संग्रह चर्चामे रहनि।हिनक पोथीक भूमिका प्रसिद्ध आलोचक मोहन भारद्वाज  लिखने रहथिन।तथापि हिनक संज्ञान नहि लेल गेलनि।ई बात एहि दुआरे लिखलहुं जे ई टीस हमरा एखन धरि अछि आओर सभदिन रहत।प्रसन्नता ई अछि जे कामिनीजीक उत्साहमे कोनो कमी नहि अयलनि आओर सम्प्रति चारिम कविता संग्रह ल' क' उपस्थित भेलीह अछि।माने बुझि गेल हेबै जे कविता लिखबे महत्वपूर्ण नहि छपेनाय सेहो बहुत साहसक काज छैक।सभसँ पहिने एहि साहसिक यात्राक लेल,  एहि चारिम कविता संग्रहक लेल बधाइ दैत छियनि।





आब अबैत छी हम हिनक टटका कविता संग्रहपर।प्रस्तुत संग्रहमे ५४गोट कविता अछि।अपन समकालीनता वितानपर कविता सभ मजगूतीसँ ठाढ़ अछि। अपना पिताक प्रति कवयित्रीक मोनमे असीम आदरभाव छनि। पोथी अपन पिताकें समर्पित करैत कवयित्री लिखैत छथि -'पिता जे भोरसँ साँझ धरि/खेतसँ खरिहान धरि/खटैत रहलाह/शीत-रौदमे/भीजैत रहलाह /आ सदिखन हमरे हभ लेल सोचैत रहलाह।से  एहि संग्रहमे पितापर छ:गोट कविता अछि।एकटा आस्वस्तिदायक बात जे कवयित्री पिताकें पूरा यश दैत छथि जे पिताक सपनाकें  अस्सी प्रतिशत ओ पूरा क' देलनि।से ठीके एकटा ठेठ गृहस्थक पुत्री कवयित्री नीक सँ शिक्षा दीक्षा लेलनि।  देश -समाज ओ संस्कृतिक गप अकालनि। भाषाक महत्ता बुझलनि आओर निरन्तर सर्जनामे लागल छथि।कवयित्री कामिनिक एकटा बात जे हमरा सभसँ बेसी प्रभावित करैत अछि से थिक ओ अपनाकें विक्टिम घोषित कहियो नहि केलनि।ओ स्त्री हेबाक कोनो अतिरिक्त लाभ लेबाक कोनो प्रयास कहियो नहि केलनि।जेना कि एखन देखल जाइत अछि कियो आइ जन्म लेलक साहित्यमे आओर जँ महत्वाकांक्षा पूर्तिमे कनियो देरी भेल तँ अरण्यरोदन शुरूह। जाति,धर्म ओ लिंगक सोङरसँ वैतरणी पार करबाक चेष्टा आरंभ।ताहु सँ नहि भेल तँ ठीकेदार सबहक आगाँ-पाँछा।से ई कहियो नहि केलनि तें बाँचल छनि कविताक तेवर। 



एकटा कविता  अछि 'फाटल वस्त्र'  एहि कवितामे राजनीतिक जे अपराधीकरण भ' रहल अछि  तकर बहुत सटीक चित्र घिचने छथि-

'जे जरेलक सम्पूर्णो लाइब्रेरी

ध्वस्त केलक  स्कूल कालेज 

सैह बनल शिक्षामंत्री

जे छिनलक थारी महक रोटी

हाथ महक काज

बड़ निर्दयतासँ

मारलक पेटपर लात

सैह बनल खाद्यमंत्री

ई कविता भारतीय लोकतंत्रक एकटा बानगी छी। जतबा हम लोकतंत्रक मुह पोछि ली वास्तविकता इएह अछि। धनतंत्र ओ लाठीतंत्र एहि संसदीय व्वलस्थापर गहींर धरि ढुकि गेल अछि।मुदा तैयो फेर आशा-उमेद करब ककरा  सँ ओहि सरकार सँ  उमेदो अछि तेंने सरकार शीर्षक कवितामे कहैत छथि-

'हमरा संवेदना नहि

सुरक्षा चाही

हमरा  चाही सांस लेबा जोग

स्वच्छ हवा

पाँखि पसारबाक लेल

पैघ आकाश'

कवयित्री चिंतित छथि प्रदुषित होइत नदी सबहक हालतपर।जखन भारतक जीवन रेखा।भारतवासीक आत्माक गह्वरमे पैसल नदी गंगाक हालति एहेन छनि तखन आन नदीक कोन बात।

'आइ गंगा प्रतीक्षा क' रहलीह अछि फेर कोनो भगीरथक जे आबय आओर एहि प्रदूषण भरल जीवनसँ मुक्त कराबय।नमामि गंगा  परियोजना एखनो चलिये रहल अछि मुदा अपेक्षित परिणाम कहां भेट रहल अछि।

समाज तीव्र गतिये  बदलि रहलए ताहिपर अहाँ परदा नहि ध' सकैत छी। यात्रीजीक लिखल बलचनमा उपन्यासक पड़ताल कवयित्री अपन कविता बलचनमा मे करैत छथि।से कोना करैत छथि से देखल जाय।बलचनमाक धिया पूता एहि स्वतंत्र भारतमे बहुत आगाँ जा रहल अछि से देखि बहुतोकें ठकमूरी लागि रहल छनि।से बरू लागौन मुदा बलचनमाक स्थिति बदलि रहल अछि-

'ककरो खेतेमे 

मरुआ धान रोपैवला

ककरो नेनाक

नेकरपन करैवला

बलचनमा आब

दलित परित्रासित नहि रहल

ओ भ' गेल अछि

एहिह परोपट्टाक नामी आफिसर

जेकरा देखतहि

बडका-बड़का लोक

श्रद्धा सँ माथ झुका कहैत अछि

'प्रणाम सर'

हम एहि कविता सँ पूरा सहमति नहि रखैत छी जे दलित समाजमे  आब कियो दबल कुचलल वा परित्रासित नहि अछि।एखनो बहुतो लोक अछि बहुत पाछु तकरा देखबाक लेल जाय पड़त कोनो मुसहर टोल वा डोम टोलमे। एखनो ओहि टोलक बहुतो नेना बकरी चरबैत,घोंघा सितुआ बिछैत वा महानगरक सेठक कोनो गुठुल्लामे वा गैरेजमे  बाल मजदूरी करैत भेटि जायत।हमर तँ मानब अछि समाजमे एकटा नब दलित वर्ग सेहो जनमि गेल अछि।जे एखनुका  कोनो दरिद्र छिम्मरि बभनटोलीमे  वा महानगर कोनो जेजे कालोनीमे जा क' सद्य: देखल जा सकैत अछि।

श्रद्धा -विश्वासक नामपर जे देशमे एखन खेल चलि रहल अछि तकरो अपन कवितामे खबरि लैत छथि कामिनी

'आइ कियो हमरो श्रद्धा विश्वासक संग

क' रहल अछि घात

मनक सर्वोच्च आसनपर बैसि 

स्वयं भ' गेल अछि पथभ्रष्ट

सोचैत छी

अपन श्रद्धा भक्तिकें

बदलि-बदलि

कोन बरतन कीनब'

अंतमे इएह बात कहब जे कामिनीक  कविता मिथिलाक आम जनमानसक बात करैत अछि।सगरे संसारमे मनुक्खतापर आयल संकटसँ अपनाकें संपृक्त रखने छथि कवयित्री ।एकठाम कहितो छथि जँ दुर्वासा ऋषि जकां वाणीमे शक्ति रहितय तँ ओहि व्यवस्थाकें हम ध्वस्त क' दितियै जे छिनि रहलए आम लोकक अधिकार। कोनो खुटामे खुटेसल विचारधारा सँ कतेको डेग आगाँ होइछ मनुक्खाक बात करब।मनुक्खक जीवनमे आयल त्रसद क्षणमे करुणा भाव राखब।मानव समुदायपर आयल संकटपर बिनु कोनो भेदभावकें आम मानव-मानवीक संग  बेरपर ठाढ़ रहब।


जे.जे. कॉलोनी: भाग ४

  भाग ४   देबु मनोहरसँ पुछलनि- 'मनोहर भाइ! की भेल?' देबु!अहाँ कहु ने की भेल? 'अहुँ तँ छी पक्का मैथिल ने  सोझ मुहें उतारा नहिये न...